नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संकेत दिए हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) में कुछ बदलाव किए जा सकते हैं। शाह ने इस बिल के विरोध में पूर्वोत्तर में जारी विरोध प्रदर्शनों के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया।

शाह ने कहा कि वह असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के लोगों को आश्वस्त करना चाहते हैं कि उनकी संस्कृति, भाषा, सामाजिक पहचान और राजनीतिक अधिकार इस बिल से प्रभावित नहीं होंगे।

शाह ने झारखंड विधानसभा चुनावों के लिए शनिवार को गिरिडीह में आयोजित एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है।'

सीएबी के पास होने के बाद अपनी पहली चुनावी जनसभा को संबोधित कर रहे शाह ने कहा कि मेघालय के मुख्यमंत्री कानराड संगमा और उनके कैबिनेट के मंत्रियों ने शुक्रवार इस मुद्दे पर चर्चा के लिए उनसे मुलाकात की।

शाह ने कहा, 'उन्होंने कहा कि मेघालय में समस्या है। मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की, कोई समस्या नहीं है। लेकिन फिर भी उन्होंने मुझसे कुछ बदलाव (बिल में) करने का निवेदन किया। मैंने संगमा जी से कहा कि क्रिसमस के बाद जब उनके पास समय हो तो वे मेरे पास आएं और हम मेघालय के लिए कुछ रचनात्मक समाधान निकाल सकते हैं। किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है।'

अमित शाह ने कहा कि सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को हिंदू-मुस्लिम की राजनीति करने की आदत है। उन्होंने कहा कि चाहे तीन तलाक पर प्रतिबंध हो या आर्टिकल 370 हटाना, या अब सीएबी, कांग्रेस हर चीज का विरोध करती है और वोट बैंक के लिए हर चीज को मुस्लिम विरोधी करार देती है।

उन्होंने बाद में ट्वीट किया, 'कांग्रेस ने सालों से हिंदू-मुस्लिम राजनीति की है और नक्सलवाद और आतंकवाद को बढ़ावा दिया है। जब नरेंद्र मोदी जैसे मजबूत प्रधानमंत्री आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हैं तो कांग्रेस उन पर वोट बैंक और तुष्टिकरण का आरोप लगाती है'

शाह ने राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए कहा कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष को इतिहास की जानकारी नहीं है और इसलिए वह शोर मचा रहे हैं क्योंकि उनके पास 'इटैलियन चश्मा' है।

सीएबी को संसद से मंजूरी मिलने के बाद से ही असम समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में इसे लेकर भारी विरोध प्रदर्शन जारी है और अब तक असम में तीन लोगों की मौत हो चुकी है।

इस नए कानून में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आने वाले गैर-मुस्लिम छह समुदायों (हिंदू, पारसी, सिख, जैन, ईसाई और बौद्ध) के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इसी बात से पूर्वोत्तर में उबाल है, जो लंबे समय से अपनी सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा की मांग कर रहा है।