नागपुर। एंटी करप्शन ब्यूरो ने पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार को सिंचाई घोटाले के मामले में 'क्लीन चिट' दी है। टेंडर प्रक्रिया, खर्च मंजूरी आदि से संबंधित कानूनी पहलुओं की पड़ताल की जवाबदेही जल संसाधन विभाग के सचिव और विदर्भ सिंचाई विकास महामंडल के कार्यकारी संचालक की है।

इन दोनों ने अजित पवार को इस मामले में अंधेरे में रखा। एंटी करप्शन ब्यूरो ने बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में पेश हलफनामा में कहा है कि तत्कालीन उपमुख्यमंत्री अजित पवार को सिंचाई परियोजनाओं के किसी भी गलत कार्य के लिए दोषी करार नहीं दिया जा सकता।

एंटी करप्शन ब्यूरो की पुलिस अधीक्षक (नागपुर) रश्मि नांदेड़कर के मार्फत यह हलफनामा पेश किया गया है। इसके पूर्व इस विभाग ने 26 नवंबर 2018 को उच्च न्यायालय में पेश हलफनामा में कहा था कि अजित पवार सिंचाई घोटाले के लिए जवाबदार हैं।

हलफनामा में बताया गया था कि महाराष्ट्र गवर्नमेंट रूल्स ऑफ बिजनेस एंड इन्स्ट्रक्शन के नियम 10 के तहत संबंधित मंत्री उनके विभाग के सभी कार्यों के लिए जवाबदार होते हैं।

हलफनामा में जानकारी दी गई थी कि पवार के जल संसाधन मंत्री पद के कार्यकाल में विदर्भ व कोंकण सिंचाई विकास महामंडल के अंतर्गत विविध सिंचाई परियोजनाओं की जांच अनियमितता पाई गई। मोबिलाइजेशन एडवांस और अन्य कुछ मंजूरी के नोटशीट्स पर पवार ने हस्ताक्षर किए हैं।

नया हलफनामा: इसके बाद विभाग ने अब यह हलफमाना पेश किया है। इसमें पवार को निर्दोष करार दिया गया है। महाराष्ट्र गवर्नमेंट रूल्स ऑफ बिजनेस ऐंड इंस्ट्रक्शन के नियम 14 के अनुसार संबंधित विभाग के सचिव को टेंडर से संबंधित आवश्यक मामलों की पड़ताल के बाद ही उसकी जानकारी संबंधित मंत्री और मुख्य सचिव को देनी थी।

हलफनामा में स्पष्ट किया गया है कि जल संसाधन विभाग के सचिव और विदर्भ सिंचाई विभाग महामंडल के कार्यकारी संचालक का दर्जा, कर्तव्य तथा जवाबदेही समान है। इसलिए सिंचाई परियोजनाओं के टेंडर व खर्च मंजूरी में अवैधता की पड़ताल करने का दायित्व इन दोनों अधिकारियों का था।

उनको संबंधित अवैधता की जानकारी पवार को देनी चाहिए थी। उन्होंने अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया है। इसलिए पवार पर घोटाले की जवाबदेही तय नहीं की जा सकती।