नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र से अलग संसद भवन में ही आज केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में बुधवार को नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी मिल गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई इस बैठक में नागरिकता संशोधन बिल पर मुहर लग गई है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद जल्‍द ही गृह मंत्री अमित शाह इस बिल को संसद में पेश करेंगे। इस विधेयक से मुस्लिम आबादी बहुल पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर मुस्लिमों (हिंदु, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी व इसाई) को भारतीय नागरिकता देने में आसानी होगी। मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल (जनवरी में) इसे लोकसभा में पास करा लिया था। लेकिन विपक्षी दलों के विरोध के कारण राज्यसभा में अटक गया था।

दरअसल, विपक्षी दलों ने धार्मिक आधार पर भेदभाव के रूप में नागरिकता विधेयक की आलोचना कर चुके हैं। बिल को लेकर असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों ने आपत्ति जताई थी और कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए थे।

भारतीय जनता पार्टी की तरफ से अपने सभी सांसदों को संसद में उपस्थित रहने के लिए कहा गया है। साफ है कि अगर बिल को लोकसभा या राज्यसभा में पेश किया जाता है, तो इस पर चर्चा के बाद तुरंत वोटिंग होगी। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने इस कानून को लाने का वादा किया था। ऐसे में राजनीतिक तौर पर भी बीजेपी के लिए ये बिल काफी अहम है।

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय जनता पार्टी की संसदीय दल की बैठक में सांसदों से कहा था कि अनुच्छेद 370 बिल के बाद ये बिल काफी अहम है, ऐसे में सभी सांसदों का सदन में रहना काफी जरूरी है।

मोदी सरकार नागरिकता विधेयक 1955 में बदलाव करने की तैयारी में है, नए बिल के तहत नागरिकता को लेकर कई नियमों में बदलाव होगा। अगर बिल पास होता है तो पड़ोसी देशों से भारत में आकर बसने वाले शरणार्थियों को नागरिकता देने में आसानी होगी, लेकिन ये नागरिकता सिर्फ हिंदू, जैन, पारसी, बौद्ध धर्म के शरणार्थियों को ही दी जाएगी।

कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां इस मसले पर मोदी सरकार का विरोध कर रही हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि मोदी सरकार बिल के जरिए धर्म के आधार पर बांट रही है। क्योंकि नागरिकता के लिए मुस्लिम शरणार्थियों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। साथ ही नागरिकता मिलने का आधार 11 साल से घटाकर 6 साल कर दिया जाएगा।

नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए नागरिकता संशोधन बिल 2019 पेश किया जा रहा है। इससे नागरिकता देने के नियमों में बदलाव होगा। इस संशोधन विधेयक से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारत की नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा। भारत की नागरिकता हासिल करने को अभी देश में 11 साल रहना जरूरी है, लेकिन नए बिल में इस अवधि को 6 साल करने की बात कही जा रही है।