नई दिल्ली: जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने सोमवार को देश के 47वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) पद की शपथ ली. उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसलों में अहम भूमिका निभाई और हाल ही में अयोध्या के विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ करने के फैसले में भी वह शामिल रहे हैं.

63 वर्षीय न्यायमूर्ति बोबड़े मौजूदा प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई का स्थान लिया. माना जा रहा है कि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति या उनके नाम को खारिज करने संबंधी कोलेजियम के फैसलों का खुलासा करने के मामले में वह पारंपरिक दृष्टिकोण अपनाएंगे.
नामित प्रधान न्यायाधीश बोबडे ने कहा कि लोगों की प्रतिष्ठा को केवल नागरिकों की जानने की इच्छा पूरी करने के लिए बलिदान नहीं किया जा सकता. देश की अदालतों में न्यायाधीशों के खाली पड़े पदों और न्यायिक आधारभूत संरचना की कमी के सवाल पर न्यायमूर्ति बोबडे ने अपने पूर्ववर्ती सीजेआई गोगोई की ओर से शुरू किए गए कार्यों को तार्किक मुकाम पर पहुंचाने की इच्छा जताई.

न्यायमूर्ति गोगोई ने अदालतों में भर्तियों और आधारभूत संरचनाओं की कमी पर संज्ञान लिया और सभी राज्यों तथा संबंधित हाईकोर्टों को जरूरी कदम उठाने के निर्देश देने के साथ खुद निगरानी भी की थी. अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला देकर 1950 से चल रहे विवाद का पटाक्षेप करने वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ में न्यायमूर्ति बोबडे भी थे.

अगस्त 2017 में तत्कालीन सीजेआई जे. एस. खेहर की अध्यक्षता में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने एकमत से निजता के अधिकार को भारत में संवैधानिक रूप से संरक्षित मूल अधिकार होने का फैसला दिया था. इस पीठ में भी न्यायमूर्ति बोबडे शामिल थे.

न्यायमूर्ति बोबड़े की अध्यक्षता में ही सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय समिति ने सीजेआई गोगोई को, उन पर न्यायालय की ही पूर्व कर्मी द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप में क्लीन चिट दी थी. इस समिति में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी शामिल थीं.

न्यायमूर्ति बोबडे 2015 में उस तीन सदस्यीय पीठ में शामिल थे जिसने स्पष्ट किया कि भारत के किसी भी नागरिक को आधार संख्या के अभाव में मूल सेवाओं और सरकारी सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता.

हाल ही में न्यायमूर्ति बोबडे की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का प्रशासन देखने के लिए पूर्व नियंत्रक एवं महालेखाकार विनोद राय की अध्यक्षता में बनाई गई प्रशासकों की समिति को निर्देश दिया कि वे निर्वाचित सदस्यों के लिए कार्यभार छोड़े.

न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे का जन्म 24 अप्रैल 1956 के दिन महाराष्ट्र के नागपुर शहर में हुआ. वे वकील परिवार से आते हैं और उनके पिता अरविंद श्रीनिवास बोबडे भी मशहूर वकील थे. न्यायमूर्ति शरद बोबड़े ने नागपुर विश्वविद्यालय से कला एवं कानून में स्नातक की उपाधि हासिल की.

वर्ष 1978 में महाराष्ट्र बार परिषद में उन्होंने बतौर अधिवक्ता अपना पंजीकरण कराया. बंबई हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में 21 साल तक अपनी सेवाएं देने वाले न्यायमूर्ति बोबड़े वर्ष 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता बने. न्यायमूर्ति बोबड़े ने 29 मार्च 2000 में बंबई हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ ली.

16 अक्तूबर 2012 को वह मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. 12 अप्रैल 2013 को उनकी पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में हुई. वरिष्ठता क्रम की नीति के तहत निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने उनका नाम केंद्र सरकार को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर भेजा था.

न्यायमूर्ति बोबडे को सीजेआई पद पर नियुक्त करने के आदेश पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दस्तखत किए जिसके बाद विधि मंत्रालय ने उन्हें भारतीय न्यायपालिका के शीर्ष पद पर नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की. न्यायमूर्ति बोबडे 17 महीने तक सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश पद पर रहेंगे और 23 अप्रैल 2021 को सेवानिवृत्त होंगे.