नई दिल्ली: बहुचर्चित अयोध्या भूमि विवाद मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की विशेष बेंच ने ऐतिहासिक फैसले में रामलला विराजमान को विवादित जमीन सौंपने का आदेश दिया। साथ ही मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में 5 एकड़ की वैकल्पिक जमीन दी जाएगी। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि 3-4 महीने में राम मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाया जाए। इससे पहले कोर्ट ने जमीन पर निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि हम फैसले का स्वागत करते हैं लेकिन हम संतुष्ट नहीं हैं। आगे क्या किया जा सकता है, इस पर हम विचार करेंगे।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि फैसले आस्था और विश्वास, दावे के आधार पर नहीं दिए जा सकते। ऐतिहासिक दस्तावेज दिखाते हैं हिंदुओं का विश्वास कि अयोध्या भगवान राम का जन्मस्थान है, यह निर्विवाद है। पांच जजों की इस पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 16 अक्टूबर को 40 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

कोर्ट ने कहा कि इसके सबूत हैं कि राम चबूतरा, सीता रसोई पर अंग्रेजों के आने से पहले हिंदू पूजा करते थे। रिकॉर्ड में सबूत दिखाते हैं कि विवादित स्थल के बाहर हिंदू पूजा करते थे।

कोर्ट ने कहा कि मस्जिद मुस्लिमों द्वारा छोड़ी नहीं गई थी। हिंदुओं ने राम चबूतरे पर पूजा करना जारी रखा लेकिन उन्होंने गर्भगृह पर भी दावा किया।

कोर्ट ने कहा कि हिंदुओं का विश्वास है कि भगवान राम का जन्म गुंबद के नीचे हुआ था। उनकी धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं। मुस्लिम इसे बाबरी मस्जिद कहते हैं। हिंदुओं का यह विश्वास कि भगवान राम का अयोध्या में जन्म हुआ था, यह निर्विवाद है। आस्था निजी मामला है। चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट को आस्था और विश्वास को स्वीकार करना चाहिए। कोर्ट को बैलेंस बनाना चाहिए।

चीफ जस्टिस ने कहा कि बाबरी मस्जिद मीर बाकी द्वारा बनवाई गई। धर्मशास्त्र के क्षेत्र में जाना कोर्ट के लिए सही नहीं होगा। शिया वक्फ बोर्ड की 1946 की फैजाबाद कोर्ट की याचिका खारिज हुई।