बसपा सुप्रीमो ने संगठन में किया बदलाव, यूपी को चार सेक्टरों में बांटा

लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।लोकसभा चुनाव में गठबंधन फेल होने के बाद बसपा की सुप्रीमो मायावती ने सपा मुखिया अखिलेश यादव से सियासी नाता तोड़ एकला चलो वाले फ़ार्मूले पर चलने का फ़ैसला लिया था जिसके बाद अखिलेश यादव ने भी मजबूरन एकला चलो पर ही चलने का रोड मैप बनाया जिसमें सपा को कामयाबी और मायावती को नाकामी मिली थी जिसके बाद से क़यास लगाए जा रहे थे कि अब बसपा में बड़े पैमाने पर बदलाव किया जाएगा वही हुआ भी| उपचुनावों में मिली करारी हार से सबक़ लेते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने संगठन में बहुत कुछ बदलाव किए हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान कुंवर दानिश अली को हटाने के फ़ैसले को भी वापस लिया, अब कुंवर दानिश अली लोकसभा में बसपा संसदीय दल के नेता फिर बनेंगे । मायावती ने लखनऊ स्थित मॉल एवेन्यू कार्यालय पर समीक्षा बैठक में मुसलमानों पर डोरे डालते हुए कहा कि कुछ ताक़तें है जो मुसलमानों और हमारे बीच दूरियाँ बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे मैं कामयाब नहीं होने दूँगी। मायावती के तेवर आज बहुत तीखे थे, मायावती ने बसपा में अब कोओर्डिनेटर का पद समाप्त कर दिया है अब सिर्फ़ प्रदेश अध्यक्ष का पद होगा इसके साथ ही संगठन में ज़ोनल इंचार्ज का पद और मंडलवार व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया है।

पूरे प्रदेश को चार सेक्टरों में बाँटा गया है

बसपा की मालकिन मायावती ने अब बसपा में सेक्टर व्यवस्था लागू की है पूरे प्रदेश के संगठन को चार सेक्टरों में बाँटा गया है पाँच-पाँच मंडलों के के दो सेक्टर बनाए गए हैं और चार-चार मंडलों के दो-दो सेक्टर बनाए गए सेक्टर व्यवस्था के तहत यूपी को चार सेक्टरों में बाँटकर बसपा अब काम करेगी| बैठक के दौरान मायावती ने 2022 के मद्देनज़र अभी से तैयारी करने के निर्देश दिए हैं। बैठक में बसपा की मालकिन मायावती ने बूथ और सेक्टरों की कमेटियों को सक्रिय करने का फ़ैसला लिया गया है इतना ही नहीं मायावती ने जलालपुर विधानसभा सीट पर हुई हार की बारीकी से समीक्षा की| जिन मंडलों को बनाकर यूपी को सेक्टरों में बाँटा है उनमें सहारनपुर , मुरादाबाद , मेरठ , बरेली , व लखनऊ को एक सेक्टर में रखा गया है दूसरे सेक्टर में आगरा , अलीगढ़ , झाँसी , कानपुर व चित्रकूट तीसरे सेक्टर में इलाहाबाद , मिर्ज़ापुर , फ़ैज़ाबाद , व देवीपाटन चौथे सेक्टर में वाराणसी , आज़मगढ़ , गोरखपुर व बस्ती मंडलों को शामिल किया गया है।

अब सवाल उठता है कि क्या यह सब करने से बसपा को सफलता मिल सकती है या नहीं। बसपा की सुप्रीमो को बहुत ही गंभीरता पूर्वक चलना होगा नहीं तो संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त लोगों ने आम जन के दिमाग़ में बसपा के ख़िलाफ़ बहुत ज़हर भर दिया है जो पहले भी था लेकिन अब जो हो रहा है उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं, वैसे हालात ख़राब होने में बसपा की मालकिन मायावती का बड़ा रोल रहा है, सही लोगों से दूर रहना सच न सुनना ज़रा सी देर में किसी को भी बाहर कर देना कोई भी फ़ैसला लेना कुछ भी बयान देना जैसे 370 पर विपक्ष विरोध कर रहा था क्यों उसके पक्ष में आए क्या कोई सियासी लाभ था ऐसा भी लगता है लेकिन फिर भी तीन तलाक पर मोदी की भाजपा और अपने वोटबैंक को सिर्फ़ यह दिखाना चाहती थी कि देखो हमारी सरकार है बस और कुछ नहीं वह कोई मुस्लिम औरतों को न्याय दिलाने की बात नहीं कर रही थी उस पर भी ग़लत संदेश गया| क्या मिला यह सब करके सिवाय नुक़सान के| मुसलमानों में खूब प्रचार किया गया कि बसपा और इसकी मालकिन मायावती भरोसे के लायक़ नहीं है यह सब ध्यान में रखकर सियासत करनी होगी और भी बहुत कुछ बदलाव करने होंगे जैसे टिकटों का वितरण में आम धारणा बन गई है कि वहाँ का टिकट तो बिकता है ये नहीं होना चाहिए जबकि सच ये भी है कि सभी दलों में पैसा चलता है लेकिन वो मुद्दा नहीं बनेगा क्योंकि उन दलों को अगडी जातियाँ चला रही है मीडिया में भी वही लोग हावी है जिसकी वजह से बसपा की बात को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है।