इंस्टैंटखबर ब्यूरो

नई दिल्ली: अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर आने वाले फैसले से पूर्व जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने मुसलमानों और देश के सभी लोगों से फैसले का सम्मान करने की अपील की है। जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि जो भी फैसला आता है, उसका मुसलमानों और पूरे देश को सम्मान करना चाहिए साथ ही जमात उलेमा-ए-हिंद ने ये भी कहा है कि विवादित जमीन पर मुसलमानों का दावा ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित है।

आज नई दिल्ली में आयोजित पत्रकार वार्ता में जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा, 'मुसलमानों का दावा ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित है| हम अपने दावे को एकबार फिर दोहराते है बाबरी मस्जिद का निर्माण बिना किसी हिंदू मंदिर को गिराये हुआ। इस विवाद में सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आता है उसे हम स्वीकार करेंगे और देशवासियों से भी अपील करते हैं कि फैसले का सम्मान करें।'

मौलाना मदनी ने कहा कि देश का हर न्यायप्रिय व्यक्ति यह चाहता है कि फैसला तथ्यों और सबूतों की बुनियाद पर हो न कि आस्था पर क्योंकि यह टाइटल सूट का मामला है और सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को तस्लीम भी कर चूका है| मौलाना अरशद मदनी ने फैसले को लेकर देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बरक़रार रहने की अपील की |

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अयोध्या विवाद पर फैसले के बाद के हालात में मुस्लिम समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की, उन्होंने कहा अपनी धार्मिक पहचान की वजह मुसलमानों को निशाना बनाया जा सकता है, पूरे देश में आज खौफ का माहौल बना हुआ है |

बता दें कि ये उम्मीद जताई जा रही है कि इसी महीने 17 नवंबर को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के रिटायर होने से पहले इस मामले में फैसला आ सकता है। हालांकि, फैसले की तारीख अभी तय नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने पिछले ही महीने इस मामले की लगातार सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच न्यायधीशों की पीठ ने 40 दिन तक लगातार सुनवाई की थी। इस पीठ में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।