नई दिल्ली: केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कोयले से चलने वाले थर्मल पॉवर प्लांट्स से होने वाले वायु प्रदूषण के तय मानकों को बढ़ाने को मंजूरी दे दी है। मंत्रालय ने बीती 17 मई, 2019 को मंत्रालय के संयुक्त सचिव रितेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला लिया। द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, नए नियमों के अनुसार, अब थर्मल पॉवर प्लांट्स से निकलने वाली जहरीली गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड की सीमा 450 mg/Normal Cubic Meter कर दी गई है, जबकि पहले यह सीमा 300 mg/Normal Cubic Meter थी। गौरतलब है कि सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) द्वारा इस फैसले का विरोध किया गया था। हालांकि अंततः प्रदूषण के मानकों को बढ़ाने का फैसला किया गया।

गौरतलब है कि सीपीसीबी ने पर्यावरण मंत्रालय की बैठक से पहले देश के 7 थर्मल पॉवर प्लांट का निरीक्षण किया था। इस निरीक्षण में 7 में से सिर्फ 2 यूनिट में तय मानकों से अधिक प्रदूषण हो रहा था। उल्लेखनीय है कि जिन दो यूनिटों में तय मानक से ज्यादा प्रदूषण हो रहा था, वो दोनों ही यूनिट अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड के स्वामित्व वाली थीं। यूनिटों का निरीक्षण सीपीसीबी और ऊर्जा मंत्रालय की सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) द्वारा मिलकर किया गया था।

पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 7 दिसंबर, 2015 को थर्मल पॉवर प्लांट से होने वाले वायु प्रदूषण का मानक 300 mg/nm3 तय किया गया था। साल 2003 से साल 2016 के बीच लगने वाले थर्मल पॉवर प्लांट के लिए यह मानक तय किया गया था। हालांकि ऊर्जा मंत्रालय द्वारा इसका विरोध किया गया था। लेकिन अंतत उसे लागू कर दिया गया था।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सीपीसीबी और सीईए के निरीक्षण में पता चला था कि अडानी पॉवर प्लांट की राजस्थान स्थित दोनों यूनिट्स से 509 mg/nm3 और 584 mg/nm3 नाइट्रोजन ऑक्साइड निकल रही थी, जो कि तय मानकों से काफी ज्यादा थी। वहीं बाकी के पावर प्लांट्स द्वारा तय मानकों के तहत ही जहरीली गैस छोड़ी जा रही थी।

उल्लेखनीय है कि नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस लोगों में सांस संबंधी बीमारी पैदा करती है और इसकी अधिक मात्रा से फेफड़ों की गंभीर बीमारी हो सकती है। वाहनों के बाद थर्मल पॉवर प्लांट द्वारा ही सबसे ज्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस छोड़ी जाती है।