नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 पर केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंगलवार को सुनवाई की। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सभी याचिकाओं का जवाब देने के लिए 28 दिन का समय दिया। अब इस मामले पर 14 नवंबर को सुनवाई होगी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में अब इस मसले से जुड़ी कोई नई याचिका दाखिल नहीं की जाएगी। पीठ ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को धारा 370 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाबी हलफनामा दायर करने की भी अनुमति दी।

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं की दलील को खारिज कर दिया कि जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को दो सप्ताह से अधिक समय नहीं दिया जाना चाहिए। साथ ही शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 370 के हनन पर संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली किसी भी नई रिट याचिका को दाखिल करने पर भी रोक लगा दी।

बेंच ने जस्टिस एस के कौल, आर सुभाष रेड्डी, बी आर गवई और सूर्यकांत ने कहा, "हमें केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को जवाबी हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देनी चाहिए अन्यथा हम इस मामले पर फैसला नहीं कर सकते।"

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई के लिए शनिवार को एक संविधान पीठ गठित की थी। पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत शामिल हैं।

दरअसल, 28 अगस्त को इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजने का फैसला किया गया था। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने जम्मू कश्मीर में किये गये संवैधानिक बदलावों के बाद पैदा हुए मसलों से संबद्ध अन्य याचिकाओं पर विचार करते हुए सोमवार को कहा कि इस प्रकार के सभी मामलों पर न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ अब फैसला करेगी।

जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के केंद्र के 5 अगस्त के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में लोगों की हिरासत, बच्चों की हिरासत और ब्लैकआउट को लेकर याचिकाएं शामिल हैं। केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद बच्चों को अवैध तौर पर हिरासत में लिए जाने के खिलाफ याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल है। पिछली सुनवाई में शीर्ष अदालत ने राज्य की ज्वुनाइल जस्टिस कमेटी से रिपोर्ट मांगी थी। ये याचिका एनाक्षी गांगुली और शांता सिन्हा ने दाखिल की है।

वहीं, पत्रकार अनुराधा भसीन और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता डॉ. समीर कौल की याचिका भी शामिल है। भसीन की याचिका पर पिछली सुनवाई में कोर्ट में बताया गया कि घाटी में अभी ना इंटरनेट है, ना ही संचार माध्यम की कोई सुविधा है और मीडिया काम नहीं कर पा रहा है। हालांकि, अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया था कि श्रीनगर-जम्मू में लगातार अखबार छप रहा है।

सोमवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि उसने घाटी में नाबालिगों की अवैध हिरासत के बारे में जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति से एक रिपोर्ट प्राप्त की है। पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं। पीठ ने बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से कहा, ‘‘रिपोर्ट आ गई है। हम इस विषय को कश्मीर पीठ (न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ) को भेजेंगे। ’’
अदालत ने एक चिकित्सक द्वारा दायर एक अलग याचिका भी तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेज दी। चिकित्सक ने जम्मू कश्मीर में पाबंदियों के चलते कश्मीर में मेडिकल सुविधाओं की कमी होने का दावा किया है।