नई दिल्ली: आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना से बीमा कंपनियों एवं बड़े अस्पतालों को लाभ पहुंचने का दावा करते हुए भारतीय चिकित्सा परिषद (आईएमए) ने सरकारी अस्पतालों को इस योजना के दायरे से बाहर रखने की रविवार को मांग की और कहा कि सरकारी अस्पतालों को सीधे आर्थिक मदद पहुंचायी जा सकती है।

आईएमए के प्रमुख डॉ शांतनु सेन यहां संवाददाताओं से कहा कि स्वास्थ्य देखभाल के लिए ‘‘बीमा का एक विफल मॉडल है’’ और भारत सरकार को उपचार के लिए इस मॉडल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘‘बीमा कंपनियों से सांठगांठ करने’’ से लक्ष्य लोगों का बेहतर इलाज करने के बजाय लाभ कमाना हो जाएगा।

सेन ने मांग की कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को निजी अस्पतालों तक सीमित किया जाए, क्योंकि सरकारी अस्पतालों को इसमें शामिल करने से लोगों को अतिरिक्त फायदा नहीं मिलने वाला है जो पहले ही लोगों का निशुल्क इलाज करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार सरकारी अस्पतालों का वित्त पोषण करना चाहती है तो उसे सीधे उन्हें पैसा देना चाहिए। आईएमए के मानद महासचिव डॉ अशोकन ने कहा कि संगठन मांग करता है कि सरकार को ‘लाभ के लिए’ बीमा मॉडल’ के बजाय करदाताओं के पैसे से पोषित सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज योजना लानी चाहिए।

आईएमए के प्रमुख ने दावा किया कि योजना के तहत बीमा दावे का निपटान करने के लिए समयबद्ध व्यवस्था नहीं है जिससे छोटे और मंझोले अस्पतालों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्होंने दावा किया कि इसके अलावा, इसमें किसी बीमारी के उपचार के लिए एक ही दाम तय किया गया है लेकिन कोई बीमारी किसी व्यक्ति को बिना जटिलता के हो सकती है जबकि अन्य व्यक्ति को जटिलता के साथ हो सकती है। इसलिए एक ही बीमारी से पीड़ित दोनों व्यक्तियों के इलाज पर अलग अलग खर्च आएगा।

आयुष्मान भारत योजना या प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, मोदी सरकार की एक महत्वकांक्षी स्वास्थ्य योजना है, जिसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर लोगों, खासकर बीपीएल धारक को स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराना है।