मस्जिद की शरई हैसियत पर नहीं उसकी शहादत पर बहस होनी चाहिए: एडवोकेट निज़ाम पाशा

नई दिल्ली: अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को 34 वें दिन की सुनवाई हुई. अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में मुस्लिम पक्षकारों की दलील पूरी होने के बाद हिंदू पक्षकारों की ओर से परासरण ने जवाब शुरू किया. परासरण ने कहा कि हिन्दू मान्यताओं में परम ईश्वर तो एक ही है लेकिन लोग अलग-अलग रूप, आकार और मंदिरों में उसकी अलग-अलग तरह से पूजा-उपासना करते हैं. हिन्दू उपासना स्थलों के आकार-प्रकार और वास्तु विन्यास अलग-अलग हैं, कहीं मूर्तियों के साथ तो कहीं बिना मूर्तियों के. कहीं साकार तो कहीं निराकार रूप में उपासना की पद्धति प्रचलित है. बस इन विविधताओं के बीच समानता यही है कि लोग दिव्यता या देवता की पूजा करते हैं. मंदिरों के वास्तु और पूजा पद्धति भी अलग-अलग है. आप एक खांचे या फ्रेम में हिन्दू मंदिरों को नहीं बांध सकते.
जस्टिस बोबड़े ने परासरण से कहा कि आप न्यायिक व्यक्तित्व को साबित करने के ‘देवत्व' पर जोर क्यों दे रहे हैं? इसकी आवश्यकता नहीं है. अगर ये कोई वस्तु है, या उत्तराधिकार का मामला है तो न्यायिक व्यक्तित्व की आवश्यकता है. हम देवत्व में क्यों आ रहे हैं? परासरण ने कहा कि हमें देवता के बारे में ध्यान करने को कोई आधार चाहिए. ताकि हम आध्यात्मिक दिव्यता की ओर जा सकें. के परासरण ने कहा कि हिंदू धर्म में ईश्वर एक होता है और सुप्रीम होता है. अलग रूप में अलग प्रकार से अलग-अलग मंदिरों में पूजा होती है.

राजीव धवन ने परासरण की दलील पर विरोध किया. उन्होंने कहा ये जो उदाहरण दे रहे हैं इसका इस केस से कोई लेना-देना नहीं हैं. इन्होंने हमारे उठाए सवाल का जवाब नहीं दिया. परासरण ने कहा कि धवन ने हमारे सवालों पर चार दिन जवाब दिया, लेकिन मेरे बोलने पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. मैं जो भी बोल रहा हूं उसका मतलब है.

परासरण ने कहा कि स्वयंभू दो प्रकार के होते हैं, एक तो मूर्ति रूप में, दूसरे जो स्वयं प्रकट होते हैं. हमारे यहां भूमि भी स्वयंभू होती है. परासरण ने जमीन की दिव्यता के बारे में बताते हुए कहा कि जरूरी नहीं कि भगवान का कोई निश्चित रूप हो, लेकिन सामान्य लोगों को पूजा करने के लिए एक आकृति की ज़रूरत होती है जिससे लोगों का ध्यान केन्द्रित हो.

जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि आपको इस जमीन को ज्यूरिस्टिक पर्सन बताने के लिए दिव्य साबित करने की जरूरत क्यों पड़ रही है. एक जहाज भी न्यायिक व्यक्ति होता है लेकिन वो दिव्य नहीं होता. परासरण ने कहा कि सामान्य लोगों को पूजा करने के लिए भगवान के एक रूप की जरूरत पड़ती है जबकि जो लोग आध्यात्म में काफी ऊपर उठ चुके होते हैं उनके लिए ये जरूरत नहीं पड़ती.

परासरण ने कहा कि जब तक न्यायिक व्यक्तित्व नहीं ठहराया जाता, भगवान की रक्षा नहीं की जा सकती. मूर्ति स्वयं ज्यूरिस्टिक व्यक्तित्व नहीं है बल्कि इसके अभिषेक के बाद यह न्यायिक व्यक्ति के रूप में विकसित होती है.इसकी पूजा का उद्देश्य है, जो इसे एक न्यायिक व्यक्ति बनाता है.

कोर्ट ने कहा कि गुरुवार को भोजनावकाश से पहले तक हिन्दू पक्षकार अपनी दलीलें खत्म कर लें. निर्मोही अखाड़ा को गुरुवार दोपहर बाद एक घंटा मिलेगा. मुस्लिम पक्षकार धवन शुक्रवार की सुबह सूट 4 पर बहस शुरू करेंगे. कोर्ट ने कहा कि अब सबको अलग-अलग सुनने का समय नहीं है. आप हमसे वो चीज़ (समय) मांग रहे हो जो हमारे पास है ही नहीं.

इससे पहले मुस्लिम पक्ष की ओर से निजाम पाशा ने कहा कि वज़ू के बारे में हदीस में कहा गया कि यह बेहतर होगा कि वजू घर से करके मस्जिद आया जाए. हिन्दू पक्ष की दलील थी कि बाबरी मस्जिद में वज़ू करने की कोई जगह नहीं थी जिस पर निज़ाम पाशा ने जिरह की. निज़ाम पाशा ने कहा कि हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह और अजमेर में दरगाह के पास कब्र मौजूद है और दोनों दरगाहों के पास मस्जिद भी है तो यह कहना कि बाबरी मस्जिद के पास कब्र थी और वह मस्जिद नहीं थी यह गलत है. अगर एक व्यक्ति भी मस्जिद में नमाज पढ़ता है तो उसके मस्जिद होने का स्टेटस बरकरार रहेगा. यह कहना कि बाबरी मस्जिद में सिर्फ दो वक्त की नमाज होती थी इसलिए उसका मस्जिद होने का स्टेटस खत्म हो गया, यह गलत है.

पाशा ने कहा कि कुरान और हदीस के मुताबिक भी कोई कैसे भी मस्जिद बना सकता है. किसी भी जमीन पर बिना मीनार और वजूखाना के मस्जिद बनाई जा सकती है. पहले कभी मंदिर भी रहा हो वहां भी मस्जिद बनाई जा सकती है. मस्जिद में कहीं मूर्ति भी हो या दीवारों खंभों में नजरों में न आने वाली तस्वीरें या मूर्तियां बनी हों तो भी नमाज जायज होती है.

पाशा ने कहा कि मस्जिदों में घंटियां इसलिए मना हैं क्योंकि रसूल को घंटियों की आवाज पसंद नहीं थी. इब्ने बतूता ने भी लिखा है कि भारत में मस्जिदों में भी कई जगह घंटियां थीं. बाबर पानीपत की लड़ाई जीतने के बाद निज़ामुद्दीन और कुतुब साहब की दरगाह पर गया. यह कहना गलत है कि इस्लाम मे कहीं भी कब्र को मत्था टेकने की इजाजत नहीं है. अगर एक बार मस्जिद बन जाए, फिर इमारत गिर भी जाए तो वह मस्जिद ही रहती है.

जस्टिस बोबड़े ने कहा कि लगातार नमाज की शर्त नहीं है? पाशा ने कहा, एक आदमी भी नमाज़ पढ़े तो मस्जिद का अस्तित्व रहेगा. ये कहना भी गलत है कि मस्जिद में सोना और खाना बनाना मना है. यह सामाजिक और सांस्कृतिक स्थल है. जमात में आने वाले यहां रुकते हैं. जस्टिस नज़ीर ने कहा यह इस्लाम का इंडियन वर्जन है.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि अयोध्या मामले में समय का ध्यान है. अगर जरूरत हुई तो शनिवार को भी सुनवाई करेंगे.