नई दिल्ली: गुजरात के बनासकांठा जिले में स्पेशल जज ने साल 2018 से तीन अलग-अलग फैसलों में समाज कल्याण विभाग को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के तहत दलितों को दिए गए मुआवजों की वसूली करने का निर्देश दिया है। इस फैसले के बाद गुजरात सरकार के साथ ही समाज कल्याण विभाग को कुछ सूझ नहीं रहा है।

अत्याचार निवारण कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें दिए गए मुआवजे की रकम को फिर से वसूल किया जा सके। इस मामले फिलहाल सरकार ने हाईकोर्ट में अपील करने का निर्णय किया है। दीसा स्पेशल कोर्ट में विशेष जज चिराग मुंशी ने इस सभी तीन मामले में फैसला सुनाया था। इनमें से दो मामले में महिलाओं ने ऊंची जाति के लोगों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

अत्याचार निवारण कानून के तहत आरोप गलत पाए गए थे। विशेष जज ने मुआवजा वसूलने का आदेश सुनाया। आदेश में कहा गया कि दलितों पर अत्याचार के तहत दर्ज कराए गए फर्जी मामले में मुआवजा हासिल करने की ‘बुराई’ को सरकार ‘नजरअंदाज नहीं’ कर सकती है। अदालत के इस आदेश को लागू कराने के लिए फैसले की एक प्रति बनासकांठा के जिला मजिस्ट्रेट और समाज कल्याण विभाग के उप निदेशक को भेजी गई।

यह तीन मामले साल 2014, 2016, और 2017 में दर्ज हुए थे। इनमें से दो मामलो में महिलाओं ने ऊंची जाति के पुरुषों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था। वहीं तीसरे मामले में दलित में व्यक्ति ने ऊंची जाति के व्यक्ति पर सड़क हादसे में उसकी पत्नी को घायल करने और अभद्र टिप्पणी करने का आरोप लगाया था।

पहले दो मामलों में शिकायत झूठी पाए जाने के बाद अदालत ने आरोपियों को बरी कर दिया था। तीसरे मामले में पीड़ित को 75000 रुपये मुआवजा मिला था। इस मामले में भी अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया। मुआवजा वापिस लिए जाने के मुद्दे पर इस साल जून में मुख्यमंत्री विजय रूपानी की अध्यक्षता में हुई बैठक में भी चर्चा हो चुकी है।