नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो (ISRO) को अपना यान चंद्रमा पर उतारने में कामयाबी नहीं मिली, लेकिन इस हद तक की कोशिश भी बड़ी कामयाबी है। विक्रम लैंडर को चांद पर उतारने के लिए उसकी रफ्तार 6048 किलोमीटर प्रति घंटा से घटाकर 7 किलोमीटर प्रति घंटा या उससे भी कम ले जानी थी। वह भी 15 मिनट के भीतर।

सब ठीक भी चल रहा था, लेकिन 13वें मिनट में ही संचार संपर्क टूट गया। बैंगलुरु के ISRO Telemetry, Tracking and Command Network में बैठे वैज्ञानिकों को डाटा मिलना बंद हो गया। लिहाजा विक्रम लैंडर की रफ्तार को उस स्तर तक कम नहीं किया जा सका कि चांद पर उसकी सॉफ्ट लैंडिंग कराई जा सके।

6-7 सितंबर की दरमायनी रात में 1.38 बजे विक्रम की चढ़ाई शुरू हुई। 1.51 पर उससे संपर्क टूट गया। उस समय विक्रम चांद की सतह से केवल 2.1 किलोमीटर दूर था। इसरो चेयरमैन के. सिवन सहित तमाम वैज्ञानिकों का चेहरा उतर गया। सिवन ने मायूसी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जानकारी दी। पीएम मोदी करीब सवा बजे ही वहां पहुंच गए थे।

प्लान था कि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को 14 दिन चांद की सतह पर रख कर आंकड़े जुटाए जाएं, प्रयोग किए जाएं। चंद्रयान 2 का ऑरबाइटर कंपोनेंट सही काम कर रहा था और कंट्रोल रूम को सिग्नल भेज रहा था। विक्रम लैंडर ने भी रफ्तार कम करने के लिए अपनी गति की दिशा में चार थ्रस्टर्स सफलतापूर्वक फायर किए। संपर्क टूटने से पहले विक्रम ने परवलायाकार रास्ते पर करीब 585 किलोमीटर का फासला तय किया। चांद की सतह पर उतरने से पहले होवर को लैंडिंग के लिए सही जगह तलाशना था। कुछ ही सेकंड में यह प्रक्रिया होने वाली थी, पर उससे पहले ही संचार संपर्क टूट गया और कोशिश नाकामयाब हुई।