नौशाद संगीत केन्द्र की ओर से कलामण्डपम में ‘याद ए खय्याम’ का हुआ आयोजन
लखनऊ: संगीतकार खय्याम को आज शाम यहां कलामण्डपम प्रेक्षागृह में भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। नौशाद संगीत केन्द्र की ओर से आयोजित इस ‘याद ए खय्याम’ कार्यक्रम में उनके संगीतबद्ध गीतों के साथ ही उनपर मुम्बई के कलाकार की नृत्य प्रस्तुतियां जहां उपस्थित संगीतप्रेमियों को एक अलग अहसास दे गईं तो विद्वानों के संस्मरण और विचार भावविह्वल कर गये। विख्यात फिल्म संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम का निधन दस दिन पहले 19 अगस्त को 92 वर्ष की अवस्था में लम्बी बीमारी के बाद मुम्बई में हो गया था।
हिन्दी उर्दू अवार्ड कमेटी, नार्थ इंडिया जर्नलिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन व अदबी संस्थान के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में मशहूर शायर हसन काजमी ने उनके सरल व्यक्तित्व और कृतित्व पर रोशनी डाली। उनके संचालन में चले इस कार्यक्रम में उमराव जान के गीत- ये क्या जगह है दोस्तो….के हवाले से फिल्म में काम कर चुकी अभिनेत्री फरूख जाफर ने कहा संगीत उनकी रग-रग में था, इसके बावजूद वे अपने संगीत में माहौल, वक्त और नजाकत भरना जानते थे। खय्याम को नौशाद अवार्ड से सम्मानित कर चुके नौशाद संगीत केन्द्र के अध्यक्ष अतहर नबी ने बताया कि उनकी पहली मुलाकात गीतकार साहिर लुधियानवी के घर पर हुई थी। तबसे बीते तीन दशकों में उनका मेरे साथ ही लखनऊ और यहां के खाने के प्रति एक लगाव बराबर बना रहा।
पूर्व डीजीपी रिजवान अहमद ने कहा कि उनका यादगार संगीत प्रशंसकों के दिलों में उन्हें हमेशा जिन्दा रखेगा। रंग निर्देशक विलायत जाफरी ने कहा कि उनका संगीत हमेशा किरदार और हालात के अनुरूप रहा तो उनके संगीत में ढला हर एक गीत अपने आप में मुकम्मल है। उनके संगीतबद्ध किये उमराव जान के गानों हालात को जिन्दा करने वाले है तो उनमें लखनवियत भी रची बसी है। लगभग सात दशक फिल्मों में अपने अलग संगीत से एक खास मुकाम बनाने वाले पदमभूषण खय्याम के बारे में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अनीस अंसारी का कहना था कि खय्याम ने कम फिल्मों में संगीत दिया पर उनका संगीत यादगार और अमर है। डा.साबिरा हबीब ने कहा उनकी कुछ यादगार फिल्में गिनाते हुए कि वे अपने अमिट संगीत के लिए संगीतप्रेमियों के दिल में और अपने मिलनसार व्यक्तित्व के लिए फिल्मोद्योग में हमेशा जाने जायेंगे। नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह ने उन्हें यादगार संगीत देने वाला म्यूजिशियन बताया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में खय्याम के दस गीतों के टुुकडों से सजे मैडले पर मुम्बई की फरहाना फातिमा ने दर्शनीय नृत्य प्रस्तुतियां दीं तो इससे पहले सुगरा ख़ान और मिथिलेश लखनवी ने मुसलसल उनके गीतों की पेशकश रख समा बांध दिया। सुगरा खान ने शुरुआत- ‘बहारो मेरा जीवन भी संवारो….’, ‘जुस्तजू जिसकी थी….’, ‘ तुम अपना रंजो गम…..’ सरीखे गीतों से की तो मिथिलेश के साथ- ‘ये मुलाकात इक बहाना है….’ जैसे गीत सुनाये। मिथिलेश ने अपनी पुरकशिश आवाज में- ‘करोगे याद तो हर वक्त…..’, ‘ऐ दिले नादां….’, ‘आई ज़ंजीर की झंकार……’, ‘सीने में जलन…..’, ‘जिंदगी जब भी तेरी बज्म में…..’ व ‘फिर छिड़ी बात रात फूलों की….’ जैसे कई गीतों की झड़ी लगा दी।
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