नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद 370 के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम फैसला दिया है। अब इस मामले की सुनवाई पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ अक्टूबर में करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की उस दलील को मानने से इनकार कर दिया है जिसमें वार्ताकार के नियुक्तर करने की मांग की गई थी। कश्मीर टाइम्स के एग्जीक्यूटिव एडिटर अनुराधा भसीन की मांग पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। उन्होंने अदालत से इंटरनेट, लैंडलाइन और दूसरे संचार साधनों पर लगी पाबंदी में ढील देने की बात अर्जी लगाई थी। इस विषय पर अदालत ने सात दिनों के अंदर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की पीठ ने सीपीआई के महासचिव को जम्मू-कश्मीर जाने की इजाजत दी है। लेकिन यह साफ कर दिया है कि वो अपने दोस्त तारिगामी से मिल सकते हैं। इसके साथ ये भी कहा कि वो अपनी यात्रा का राजनीतिकरण न करें। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं लगाई गई हैं। इनमें से कुछ याचिकाओं में कश्मीर में लगाई गई पाबंदियों को हटाने के संबंध में है। केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ अलग अलग लोगों ने कहा था कि मनमाने ढंग से जम्मू-कश्मीर के लोगों को विश्वास में लिए बगैर फैसला किया गया।
सुप्रीम कोर्ट में ये याचिकाएं अवकाश प्राप्त जस्टिस हसन मसूदी, शेहला रसीद, सीताराम येचुरी, अकबर लोन की तरफ से लगाई गई हैं। ध्यान देने वाली बात ये है कि इन याचिकाओं में अलग अलग मुद्दे शामिल हैं। कुछ याचिकाओं में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का विरोध है तो कुछ याचिकाओं में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन पर सवाल है। इसके साथ ही कुछ याचिकाओं में पाबंदियों का जिक्र है बता दें कि इन सभी मामलों की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ करेगी।
विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि जो लोग अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के विरोध में हैं उन्हें कम से कम ये बताना चाहिए कि स्पेशल स्टेटस से किसे फायदा मिला था। अगर उससे कोई फायदा हुआ तो विरोध करने वाले लोगों ने अनुच्छेद 370 को स्थाई क्यों नहीं किया गया। वो कहते हैं कि सच ये है कि जिन लोगों को 370 हटाए जाने पर विरोध है उन्हें इस बात का डर है कि उनकी राजनीतिक जमीन खतरे में है। वो बताना चाहते हैं कि स्पेशल स्टेटस से ज्यादा नुकसान जम्मू और लद्दाख का था। अब समय आ चुका था जब इस विषय पर महत्वपूर्ण फैसला लेना था।
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