नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ने विमल जालान समिति की सिफारिशों को अमल में लाते हुये सोमवार को रिकार्ड 1.76 लाख करोड़ रुपये का लाभांश और कैश रिजर्व मोदी सरकार को ट्रांसफर करने का फैसला किया। जानकार मानते हैं कि इससे नरेंद्र मोदी सरकार को राजकोषीय घाटा बढ़ाए बिना सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद मिलेगी। हालांकि, रिजर्व बैंक के कई टॉप पूर्व अधिकारियों ने ऐसा न करने की चेतावनी दी थी।

यह मुद्दा काफी वक्त तक वित्त मंत्रालय और केंद्रीय बैंक के बीच खींचतान की वजह बना। आरबीबआई के अतिरिक्त फंड का सरकार को ट्रांसफर के विचार का पूर्व गर्वनर डी सुब्बाराव और वाईवी रेड्डी खुलकर विरोध कर चुके हैं। वहीं, पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा था कि ऐसा करना वैसा ही ‘विनाशकारी’ साबित हो सकता है, जैसा कि अर्जेंटीना में हो चुका है।

विरल ने अर्जेंटीना का उदाहरण देते हुए यह साबित करने की कोशिश की थी कि केंद्रीय बैंक के कामकाज में दखल का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बेहद घातक असर पड़ सकता है। पिछले साल अक्टूबर में आचार्य ने यहां तक कहा था कि सरकार टी-20 तो आरबीआई टेस्ट मैच खेल रही है। विरल ने बताया था कि 6.6 बिलियन डॉलर की रकम अर्जेंटीना के केंद्रीय बैंक से देश के खजाने में ट्रांसफर के बाद देश का ‘सबसे बुरा संवैधानिक संकट’ उत्पन्न हुआ।

बता दें कि केंद्रीय बैंक ने सोमवार को एक बयान में कहा कि गवर्नर शक्तिकांत दास की अगुवाई में रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल ने 1,76,051 करोड़ रुपये सरकार को ट्रांसफर करने का फैसला किया है। इसमें 2018-19 के लिए 1,23,414 करोड़ रुपये का अधिशेष और 52,637 करोड़ रुपये अतिरिक्त प्रावधान के रूप में चिन्हित किया गया है। अतिरिक्त प्रावधान की यह रकम आरबीआई की आर्थिक पूंजी से संबंधित संशोधित नियमों Economic Capital Framework (ईसीएफ) के आधार पर निकाली गई है।

वहीं, फरवरी में रेड्डी ने आरबीआई के खजाने पर सरकार की नजर की आलोचना करते हुए कहा था कि सरकार ने ऐसा करके उस स्थापित सिस्टम को खतरे में डाल दिया है, जिसके तहत सरकार केंद्रीय बैंक से वक्त वक्त पर अस्थाई लोन लेती थी। उनके मुताबिक, यह रकम भविष्य के इंश्योरेंस के तौर पर काम करती है और इसे जमा करके रखने की जरूरत है, न कि बांट दिए जाने के। उनके मुताबिक, अगर सरकार की बैलेंस शीट कमजोर है तो ऐसे हाल में केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट मजबूत होना जरूरी है।

इससे पहले आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल और सरकार के बीच आरबीआई में अधिशेष राशि की सीमा तय करने को लेकर गतिरोध की स्थिति बन गई थी। इसकी वजह से आरबीआई ने नवंबर, 2018 की अहम बोर्ड बैठक में रिजर्व बैंक की ईसीएफ की समीक्षा के लिए एक समिति के गठन का फैसला किया था। हालांकि, समिति के गठन से पहले ही पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

कई अर्थशास्त्री और एक्सपर्ट पैनल पूर्व में इस बात पर काफी बहस कर चुके हैं कि क्या आरबीआई ने खतरों को कवर करने और संकटकालीन स्थिति से निपटने के लिए जरूरत से जयादा फंड अपने पास रख रखा है? पूर्व चीफ इकॉनमिक अडवाइजर अरविंद सुब्रमण्यम ने इकॉनमिक सर्वे 2016-17 में कहा था कि आरबीआई के पास रखे 4 लाख करोड़ रुपये का इस्तेमाल बैंकों को दोबारा पूंजीगत ताकत देने या दूसरे अहम कामों में हो सकता है। तत्कालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने इस बात का विरोध किया था।

बता दें कि फिलहाल रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल ने बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने के बाद यह कदम उठाया है। समिति को यह तय करने को कहा गया था कि केंद्रीय बैंक के पास कितनी आरक्षित राशि होनी चाहिए। सरकार की तरफ से वित्त सचिव राजीव कुमार इस समिति में शामिल थे। समिति ने 14 अगस्त को अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया था।

जानकार मानते हैं कि आरबीआई से हासिल रकम से सरकार को अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की कोशिशों में मदद मिलेगी। बता दें कि देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पांच साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। रिजर्व बैंक 2013- 14 से ही अपनी खर्च योग्य आय में से 99 प्रतिशत राशि सरकार को देता आया है। सरकार को राजकोषीय घाटे को अंकुश में रखने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।