नई दिल्ली: भारत सरकार ने संविधान से अनुच्छेद 370 हटाकर भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर का विशेषाधिकार ख़त्म कर दिया है. सरकार का ये फ़ैसला पूरी तरह ग़ैर क़ानूनी और असंवैधानिक है. ये कहना है संविधान विशेषज्ञ एजी नूरानी का.

नूरानी ने बीबीसी से बातचीत में इस फैसले को गैरकानूनी बताते हुए कहा कि ये एक तरह से धोखेबाज़ी है. दो हफ़्ते से आप सुन रहे थे कि पाकिस्तान से कश्मीर में हमले की योजना बनाई जा रही है और इसीलिए सुरक्षा के इंतज़ाम किए जा रहे हैं. लेकिन ये समझ में नहीं आ रहा था कि अगर पाकिस्तान की तरफ़ से हमला होने की आशंका थी तो इससे अमरनाथ यात्रियों को क्यों हटाया जा रहा था. और क्या आप इतने नाक़ाबिल हैं कि पाकिस्तान की तरफ़ से आने वाले हमले को रोक नहीं सकते हैं.

ये वही हुआ है जो कि शेख़ अब्दुल्लाह ( जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री, उस समय उन्हें प्रधानमंत्री कहा जाता था) के साथ हुआ था. उन्हें आठ अगस्त 1953 को गिरफ़्तार कर लिया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने एक आर्मी ऑपरेशन के तहत उन्हें हटाकर गिरफ़्तार कर लिया था और उनकी जगह बख़्शी ग़ुलाम मोहम्मद को राज्य का नया प्रधानमंत्री बनाया गया था.

इस बार भी यही हुआ इसीलिए कश्मीर के सारे नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था. वो भी भारत के समर्थक नेताओं को जिन्होंने अलगाववादी नेताओं के ठीक उलट हमेशा भारत का साथ दिया है.

ये एक ग़ैर-क़ानूनी और असंवैधानिक फ़ैसला है. अनुच्छेद 370 का मामला बिल्कुल साफ़ है. उसे कोई ख़त्म कर ही नहीं सकता है. वो केवल संविधान सभा के ज़रिए ख़त्म की जा सकती है लेकिन संविधान सभा तो 1956 में ही भंग कर दी गई थी. अब मोदी सरकार उसे तोड़-मरोड़ कर ख़त्म करने की कोशिश कर रही है. इसका एक और पहलू है. दो पूर्व मंत्रियों ने साफ़ कहा था कि अगर आप अनुच्छेद 370 को ख़त्म करेंगे तो आप भारत और कश्मीर के बीच लिंक को ही ख़त्म कर देंगे. उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे ग़ैर-क़ानूनी नहीं कहेगी. सुप्रीम कोर्ट क्या फ़ैसला करेगी ये तो पता नहीं. इन्होंने कश्मीर को तोड़ा है जो कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी (जनसंघ के संस्थापक) का हमेशा से एजेंडा था.

कुछ लोगों की हमदर्दी हासिल करने के लिए ये किया गया है. असल में इनकी नीयत और ही है. जब से जनसंघ बनी है तब से ये अनुच्छेद 370 को ख़त्म करना चाहते थे.