नई दिल्ली: भारत के मोबाइल हैंडसेट सेक्टर को बीते दो सालों में ढाई लाख से ज्यादा नौकरियां खत्म करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उद्योग जगत के एक्सपर्ट मानते हैं कि इसकी दो प्रमुख वजह हैं। पहली यह कि ई कॉमर्स वेबसाइट के बढ़ते असर की वजह से रिटेल दुकानों पर बेहद बुरा असर पड़ा है। वहीं, चीनी कंपनियों ने स्थानीय कंपटीटरों का एक तरह से सफाया कर दिया है।

अंग्रेजी अखबार इकॉनमिक टाइम्स ने उद्योग जगत के लोगों के हवाले से बताया है कि कुल वर्क फोर्स में 15 फीसदी कटौती की वजह तो हजारों छोटे बड़े फोन रिटेल शॉप का बंद हो जाना है। इसकी वजह से इन दुकानों में काम करने वाले ब्रांड प्रमोटर्स की नौकरियां चली गईं। भारत में छोटे-बड़े मिलाकर कुल 4 लाख से ज्यादा रिटेल शॉप थे। इनमें से हर एक दुकान में तीन से पांच मोबाइल कंपनियों के प्रतिनिधियों को नौकरी मिलती थी।

हैंडसेट इंडस्ट्री में नौकरियों के घटने की एक वजह यह भी है कि मुनाफा बढ़ाने के लिए भारतीय और विदेशी, दोनों ही हैंडसेट कंपनियों ने खुदरा बिक्री पर खर्च कम कर दिया है। मैनुफैक्चरिंग की भी बात करें तो माइक्रोमैक्स और इंटेक्स जैसी कंपनियों ने लोगों को नौकरियों से निकाला है।

इंडियन सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स असोसिएशन (ICEA) के प्रेसिडेंट पंकज महिंद्रू ने बताया, ‘2.5 लाख से ज्यादा नौकरियां बीते दो साल में गई हैं। इसकी वजह यह है कि कई रिटेल शॉप बंद हो गए, इन शॉप में मौजूद रहने वाले प्रमोटरों की नौकरियां चली गईं। यहां तक कि डिस्ट्रीब्यूटरों ने भी दुकानें बंद कर दीं।’ उन्होंने बताया कि हैंडसेट मैनुफैक्चरिंग के क्षेत्र में भी 20 से 25 हजार लोगों की नौकरियां गई हैं। हालांकि, रिटेल और डिस्ट्रीब्यूशन बिजनेस पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है।

वहीं, ऑल इंडिया मोबाइल रिटेलर्स असोसिएशन (AIMRA) का कहना है कि ICEA के आंकड़े पूरी तरह सही तस्वीर नहीं पेश करते। असोसिएशन की मानें तो करीब आधे रिटेल शॉप बंद हो चुके हैं क्योंकि अब ग्राहक दुकान पर मोबाइल फोन खरीदने जाने से पहले ऑनलाइन रिसर्च करता है। ऐसे में खुदरा दुकानदार के सामने ग्राहक को लुभाकर अपना सामान बेच पाने की गुंजाइश बेहद कम होती है। AIMRA के नैशनल प्रेसिडेंट अरविंदर खुराना बताते हैं कि ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते चलन और कई ब्रैंड के अपने दुकानों को बंद करने की वजह से हैंडसेट इंडस्ट्री में नौकरियां जानी बढ़ गई हैं।

बता दें कि भारतीय मोबाइल हैंडसेट इंडस्ट्री में बीते दो साल में आया बदलाव हैरान करने वाला है। चीनी कंपनियों का 75 फीसदी बाजार पर कब्जा है। वहीं, रिलायंस जियो इन्फोकॉम के सस्ते 4जी फीचर फोन ने माइक्रोमैक्स और लावा जैसे स्थानीय मोबाइल निर्माताओं को हाशिए पर ढकेल दिया है। वहीं, इंटेक्स और कार्बन जैसी कंपनियां दौड़ से बाहर हो चली हैं।