"शेअरी नशिस्तों के साथ अफसानवी गोष्ठियां भी आयोजित हों: प्रतुल जोशी

डा0 आमिर क़िदवई के लखनऊ आगमन पर दबिस्ताने अहले क़लम ने किया सम्मानित

लखनऊः दबिस्ताने अहले क़लम के तत्वाधाम डाॅक्टर आमिर क़िदवाई (कुवैत) के सम्मान में एक तरही नशिस्त का आयोजन डाॅ0 मखमूर काकोरवी की सरपरस्ती में सऊद राही के निवास पर किया गया। नशिस्त की अध्यक्षता उर्दू मासिक नया दौर के पूर्व सम्पादक डाॅक्टर वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने की। अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में उन्होंने कहा कि शेअरो अदब में नई नस्ल की नुमाइन्दगी सन्तोषजनक भी है और स्वागतयोग्य भी। इनका उत्साहवर्धन नितान्त आवश्यक है, आगे चलकर बड़ी ज़िम्मेदारियां अपने कांधों पर उठाने वाले है। इस प्रकार की शेअरी नशिस्तें और मुशायरे ही अदब परवरी का सबब हैं।

आकाशवाणी लखनऊ के उर्दू प्रोग्रामर प्रतुल जोशी विशेष अतिथि के रूप में मुशायरे में शरीक हुए। उन्होंने शायरों कर रचनाओं को सराहते हुए कहा कि मौजूदा ज़माने में नस्र की तरफ़ तवज्जो कम की जा रही है इसलिये शेअरी नशिस्तों के साथ साथ अफ़सानवी नशिस्तों का आयोजन भी किया जाय क्योंकि शायरों को तो तरबियतगाहें मयस्सर आ जाती है लेकिन जिनका मैदान नस्र की तरफ़ है उनकी तरबियत की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। इस अवसर पर डाॅक्टर आमिर क़िदवाई की अदबी खि़दमात के एतराफ़ में उन्हें ‘‘राही प्रतापगढ़ी एवार्ड’’ से सम्मानित किया गया। मोहम्मद इस्लाम की तिलावत और सऊद राही की नात से मुशायरे का आग़ाज़ हुआ। नशिस्त की निज़ामत डाक्टर हारून रशीद ने की। नशिस्त में जिन अशआर को काफ़ी पसन्द किया गया पेश हैं-

अमीरे शहर अगर कुछ गुमान रखते हैं–फ़क़ीरे शहर भी मुंह में ज़बान रखते हैं

ज़रा संभल के मियां हमसे बात कीजियेगा–हम अपने सिर पे कई आसमान रखते हैं

-डाॅ0 आमिर क़िदवाई

जो सरफ़रोश है उनको हक़ीर मत समझो–ज़मीं पे मरतबए आसमान रखते हैं

-मख़मूर काकोरवी

हुए हैं यूंही नहीं अहले लखनऊ मुम्ताज़–ज़बान रखते हैं तर्जे़ ज़बान रखते हैं

-डा0 हारून रशीद

खुदाए पाक हमारा है हामियो नासिर–उसी को अपना फ़क़त निगहेबान रखते हैं

-रफ़त शैदा सिद्दीक़ी

हमारी सुलहापसन्दी की ये अलामत है–न कोई तीर न कोई कमान रखते हैं

-इरफ़ान बाराबंकवी

जो ठोकरों में सफ़र की तकान रखते हैं–कहां वो मील के पत्थर का ध्यान रखते हैं

-शुएब अनवर

उन्हें नसीब नहीं रिश्ते बेटियों के लिये–नज़र में जो भी बड़ा ख़ानदान रखते हैं

-अतीक सिद्दीक़ी

जिन्हें यक़ीं है खुदा से मिलेगा अजरे अज़ीम–वो लोग अपने बुज़ुर्गों का ध्यान रखते हैं

-सग़ीर नूरी

ग़मों की धूम में जारी है ज़िन्दगी का सफ़र–न सिर पे छत है न हम सायबान रखते हैं

-अहसन काज़मी

तसव्वुरात का बस इक जहान रखते हैं–ज़मीन पास नहीं आसमान रखते हैं

-रिज़वान फ़ारूक़ी

उन्हें ग़रज़ कहां दुनिया के उन हाक़ायक़ से–जो अपने ज़हन में वहमो गुमान रखते हैं

-ख़ालिद सिद्दीक़ी

हमारे कुन्बे के हैं लोग सारी दुनिया में –हम उर्दू वाले बड़ा ख़ान्दान रखते हैं

-जफ़र इक़बाल

मैं उस नगर में भी ख़ानाबदोश हूं यारो –जहां परिन्दे भी अपना मकान रखते हैं

-इरशाद बाराबंकवी

शऊरो फ़िक्र की ऐसी उड़ान रखते हैं–कि हम नज़र में सदा आसमान रखते हैं

-मुईद रहबर

ख़्याल आपका परवरदिगार क्यों रखे–नसीर आप पड़ोसी का ध्यान रखते हैं

-नसीर अहमद नसीर

कई तबक़ हैं ज़मीने हमारे क़दमों तले–हम अपने सर पे कई आसमान रखते हैं

-आशिक रायबरेलवी

वही लिखेंगे ज़माने में इक नयी तारीख़–कफ़न जो सर पे हथेली पे जान रखते हैं

-अरशद तालिब लखनवी

इनके अलावा भी बहुत से शायरों ने अपनी रचनाये पेश कीं।