नई दिल्ली: भारत में पहले ही धीमी विकास दर के साथ-साथ नौकरियों की किल्लत है। लेकिन, जिस रास्ते अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है उसमें नौकरियों का हाल और भी बुरा होने वाला है। द टेलिग्राफ के मुताबिक GFCF (Gross fixed Capital Formation) में लगातार गिरावट, जीएसटी से उम्मीद के मुताबिक टैक्स का नहीं मिलना और कैपिटल एक्सपेंडिचर में कमी आने का खामियाजा अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ सकता है। 2019 में पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश करते हुए दावा किया था कि 2022 तक हम न्यू इंडिया बनाएंगे और इस दौरान किसानों की आयो दोगुनी होगी तथा नौजवानों को बेहतर अवसर मिलेंगे। लेकिन, वर्तमान आंकड़े बताते हैं कि GFCF में गिरावट के चलते जीडीपी की वर्तमान दशा दर्शाती है कि देश में निवेश कम पैमाने पर हुआ है। इसका मतलब युवाओं के लिए नौकरियों के अवसर भी कम तैयार हुए हैं।

अर्थव्यवस्था को दूसरी सबसे बड़ी चोट टैक्स कलेक्शन के मामले में है। जितना टैक्स कलेक्शन का अनुमान सरकार ने लगाया था, उससे कम की आपूर्ति हो पाई है। 2018-19 में 14,84,406 करोड़ रुपये तय हुआ था। लेकिन, वास्तिक रूप में यह 13,16,951 रहा। इसका मतलब है कि 1,67,455 करोड़ की टैक्स कलेक्शन में कमी रह गई। इसका मतलब साफ था कि जीएसटी से जिस मद में टैक्स कलेक्शन की अंदाजा लगाया जा रहा था वह नहीं हो पाया। जबकि, 2019 में अंतरिम बजट पेश करते हुए गोयल ने कहा था कि जीएसटी के लागू होने से टैक्स कलेक्शन दायरा बढ़ेगा और इसमें इजाफा भी होगा।

इसके अलावा सरकार ने तय लक्ष्य से 145,813 करोड़ रुपये कम खर्च किए। जबकि, पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट के दौरान इंफ्रास्ट्रक्चर डिवलपमेंट पर विशेष तवज्जो देने की बात कही थी।