आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में बाल मजदूरी करने वाले ज़्यादातर बच्चे किसी फैक्टरी या वर्कशाॅप में काम नहीं करते, न ही वे शहरी क्षेत्रों में घरेलू नौकर या गलियों में सामान बेचने का काम करते हैं; इसके बजाए ज़्यादातर बच्चे खेतों में काम करते हैं, वे फसलों की बुवाई, कटाई, फसलों पर कीटनाशक छिड़कना, खाद डालना, पशुओं और पौधों की देखभल करना जैसे काम करते हैं। 2016 में जारी 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र के 62.5 फीसदी बच्चे खेती या इससे जुड़े अन्य व्यवसायों में काम करते हैं। आंकड़ों की बात करें तो काम करने वाले 40.34 मिलियन बच्चों और किशोरों में से 25.23 मिलियन बच्चे कृषि क्षेत्र में काम करते हैं। हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 152 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी करते हैं और मजदूरी करने वाले हर 10 में से 7 बच्चे खेती का काम करते हैं। भारत के मौजूदा रूझानों से भी कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आई है, भारत में 60 फीसदी से अधिक बच्चे खेती या इससे अन्य गतिविधियों में काम करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार खेती दुनिया भर में दूसरा सबसे खतरनाक व्यवसाय है। भारत के कुछ राज्यों में हालांकि ये आंकड़े भारतीय औसत की तुलना में अधिक हैं। हिमाचल प्रदेश में खेती करने वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक 86.33 फीसदी है, वहीं छत्तीसगढ़ और नागालैण्ड में यह क्रमशः 85.09 फीसदी एवं 80.14 फीसदी है। बड़े राज्यों की बात करें तो मध्यप्रदेश में यह संख्या 78.36 फीसदी, राजस्थान में 74.69 फीसदी, बिहार में 72.35 फीसदी, उड़ीसा में 69 फीसदी और आसाम में 62.42 फीसदी है। कुल मिलाकर भारत में 5-19 वर्ष के 40.34 मिलियन बच्चे और किशोर कम करते हैं। इनमें से 62 फीसदी लड़के और 38 फीसदी लड़कियां हैं।क्राई-चाइल्ड राईट्स एण्ड यू द्वारा 2011 की जनगणना के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि खेतो में मजदूरी करने वाले ज़्यादातर बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते। 5-19 वर्ष के 40.34 मिलियन काम करने वाले बच्चों और किशोरों में से मात्र 9.9 मिलियन बच्चे ही स्कूल जा पाते हैं, यानि काम करने वाले 24.5 फीसदी बच्चे ही स्कूल जाते हैं। आसान शब्दों में कहें तो काम करने वाले हर चार में तीन बच्चों से उनकी शिक्षा का अधिकार छीन लिया जाता है।आंकड़ों की बात करें तो बच्चों के काम और शिक्षा के बीच संतुलन बनाने में कई बड़ी चुनौतियां हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार शिक्षा के अधिकार के प्रावधान के बावजूद खेतों में मजदूरी करने वाले बहुत कम बच्चे ही अपनी पढ़ाई जारी रख पाते हैं। प्रीति महारा, डायरेक्टर, पाॅलिसी एडवोकेसी एण्ड रीसर्च, क्राई ने कहा, ‘‘बाल मजदूरी के कानूनों के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चे स्कूल के बाद ही अपने परिवार के कारोबार में मदद कर सकते हैं।’’बच्चों के परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो खेतों में मजदूरी करना बच्चों के लिए खतरनाक है, इस क्षेत्र की अपनी चुनौतियां हैं जैसे कीटनाशकों के स्प्रे, खेती के उपकरणों के इस्तेमाल से बच्चों के विकास में बाधा आ सकती है, उनके शरीर पर बुरा असर पड़ सकता है। ‘पिछले चार दशकों के अनुभव बताते हैं कि हमारे देश में खेती का ज़्यादातर काम ऐसी परिस्थितियों में किया जाता है, जब काम और जीवन के बीच विशेष सीमा नहीं होती। खेतों में काम करने वाले बच्चे खतरनाक कीटनाशकों तथा इनकी वजह से प्रदूषित हुए पानी एवं भोजन के संपर्क में रहते हैं। खेतों में लम्बे समय तक काम करने के दौरान बच्चों को कम उम्र में बहुत ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जैसे लम्बे समय तक ख्ड़े रहना, झुकना और भारी बोझ उठाना।’’ महारा ने कहा।