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NSSO का खुलासा, छह साल में 3.5 गुना बढ़ी ग्रामीण बेरोजगारी

नई दिल्ली: भारत में पिछले छह साल में ग्रामीण क्षेत्रों में साढ़े तीन गुना से ज्यादा बेरोजगारी बढ़ी है। वहीं, सबसे ज्यादा बेरोजगारी शहरी क्षेत्र की युवतियों की बीच है। यह खुलासा केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों से हुआ है। एनएसएसओ और पीएलएफएस के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2005-06 में ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं के बीच बेरोजगारी की दर 3.9 प्रतिशत थी। यह दर वर्ष 2009-10 में बढ़कर 4.7 प्रतिशत पर पहुंच गई। वर्ष 2011-12 में यह 5 प्रतिशत पहुंची और अगले छह वर्ष बाद 2017-18 में साढ़े तीन गुना से ज्यादा बढ़कर 17.4 प्रतिशत तक पहुंच गई।

ग्रामीण क्षेत्र के युवतियों की रोजगार की बात करें तो वर्ष 2005-06 में यह 4.2 प्रतिशत थी। वर्ष 2009-10 में थोड़ी सी बढ़त के साथ 4.6 प्रतिशत पर पहुंची। वर्ष 2011-12 में यह 4.8 प्रतिशत तक पहुंची। इसके बाद अगले छह वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 13.6 प्रतिशत पर पहुंच गई।

अब बात शहरी क्षेत्र की करते हैं क्योंकि वर्तमान में शहरी क्षेत्र की युवतियों के बीच ही बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है। वर्ष 2005-06 में शहरी क्षेत्र के युवतियों के बीच बेरोजगारी दर 14.9 प्रतिशत थी। 2009-10 में यह थोड़ी कम हुई और 14.3 प्रतिशत पर पहुंची। 2011-12 में बेरोजगारी दर कम होकर 13.1 प्रतिशत पर पहुंच गई। हालांकि, इसके बाद बेरोजगारी दर में तेजी से वृद्धि हुई और 2017-18 में यह बढ़कर 27.2 प्रतिशत तक पहुंच गई।

शहरी क्षेत्र के युवाओं को भी रोजगार मिलने में परेशानी हो रही है। इसकी गवाही भी आंकड़े दे रहे हैं। वर्ष 2005-06 में शहरी क्षेत्र के युवाओं के बीच बेरोजगारी की दर 8.8 प्रतिशत थी। वर्ष 2009-10 में यह थोड़ी कम हुई और 7.5 प्रतिशत पर पहुंची। वर्ष 2011-12 में यह थोड़ी बढ़कर 8.1 प्रतिशत पर पहुंची। इसके बाद बेरोजगारी दर में तेजी से इजाफा हुआ और यह बढ़कर 2017-18 में 18.7 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह कहानी उन युवाओं की है जो अपनी औपचारिक शिक्षा पर करीब 11 साल खर्च कर देते हैं।

ये आकड़े पुरानी धारणाओं को झूठा साबित करते दिख रहे हैं कि जिसमें कहा जाता था कि ग्रामीण क्षेत्रों में शहर की अपेक्षा ज्यादा बेरोजगारी होती है। मंत्रालय द्वारा जारी आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएनएफएस) में 15 साल से 29 साल के उम्र के युवाओं में बेरोजगारी के अलग से आंकड़े इकट्ठा किए गए। सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2017-18 में 15 से 29 वर्ष के शहरी युवाओं के बीच एलएफपीआर 38.5 प्रतिशत रहा जो कि वर्ष 2011-12 में 40.5 प्रतिशत था। एलएफपीआर के कम होने और बेरोजगारी दर बढ़ने का अर्थ है कि देश में रोजगार की दर कम हो रही है।

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