लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।कांग्रेस को लोकसभा चुनाव 2019 में मिली करारी हार के बाद आदर्शवादी शख़्सियत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को क़रीब से जानने वाले जानते है कि आम जनता में जो उनकी छवि है वह उससे बिलकुल अलग है राहुल गांधी एक ऐसी शख़्सियत है जो दबे कुचले समाज के प्रति बहुत ज़्यादा लगाव रखते है सियासत में इस तरह की सोच वाला कोई दूसरा नाम दिखाई नही देता है पहली बात तो इस तरह की सोच वाले लोगों की संख्या न के बराबर है और अगर कोई है तो आज के समाज को ऐसी शख़्सियतों की ज़रूरत नही ये एक कड़वी सच्चाई है चाहे कोई माने या न माने।राहुल गांधी अपने दिल में दलितों के लिए ख़ास जगह रखते है वह बराबरी की बात करते है ग़ैर सियासी लोगों को सियासत में आगे लाने पर ज़ोर देते है सियासत में आज जिन लोगों की भरमार है जैसे सियासत को अपनी रोज़ी रोटी का ज़रिया बनाने वालों के खिलाफ है आज की सियासत में झूट ही बुनियाद है उसके भी वो सख़्त खिलाफ है उनका मानना है कि झूट की बुनियाद पर महल खड़ा करने से अच्छा है झोपड़ी में ही रहकर अपनी सही बात लोगों तक पहुँचाते रहो सत्ता की चकाचौंध पाने के लिए झूट का सहारा नही लेना चाहिए। जनता के द्वारा दी गई ज़िम्मेदारी को दिल से निभाने के हामी है राहुल गांधी। वैसे तो गांधी परिवार त्याग और बलिदान की पहचान मानी जाती है लेकिन आज के उन्मादी माहोल ने सब कुछ पीछे छोड दिया है जिस परिवार पर आज के स्वयंभू कामदार तरह-तरह के आरोप लगाते है कि नामदार ऐसे है नामदार वैसे है जिस परिवार की सदस्य ने प्रधानमंत्री बनने की बात को नकार सिख समुदाय के क़ाबिल होनहार डाक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवाया और मनमोहन सिंह ने देश को प्रगति तरफ़ ले जाने में काफ़ी कुछ किया जिसको पूरी दुनिया ने माना यह सच है।राहुल गांधी जैसी शख़्सियत को वंशवाद जैसी बीमारी से सख़्त नफ़रत है ग़रीब को आगे बढ़ाना चाहते है जवाबदेही चाहते है पार्टी में मठाधीशी नही लोकतंत्र के हामी है एनएसयूआई और युवक कांग्रेस जैसे संगठनों में अमूलचूल परिवर्तन कराते है दोनों संगठनों में चुनाव के ज़रिए पदाधिकारियों के चयन को प्राथमिकता देते है 2014 के आम चुनाव में टिकट को लेकर प्रत्याशियों के बीच चुनाव कराने का पायलट प्रोजेक्ट लाते है ये सब मामलात ऐसे है जो आज की सियासत करने वालों में दूर-दूर तक दिखाई नही देती है लेकिन इतनी ख़ूबियों के मालिक होने के बाद भी राहुल गांधी असफल क्यों है ? जबकि सही मायने में देश को ऐसी ही शख़्सियत की सख़्त ज़रूरत है ये भी सच है असल में राहुल गांधी को अपने घर कांग्रेस में भी अपने इन आदर्शो का ही ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है कांग्रेस के अंदर नागपुरिया सोच के लोगों की भरमार है वही लोग राहुल गांधी के आदर्शो के खिलाफ है।सियासी ज़मीन पर राहुल गांधी के प्रोग्राम क्यों नही चल पाते आखिर क्यों आदर्शवाद ज़मीनी हक़ीक़त के सामने दम तोड़ देता है ? उसी आदर्शवादी राहुल गांधी ने हार की ज़िम्मेदारी को लेते हुए पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर अड गए न माँ सोनिया गांधी और न बहन प्रियंका गांधी सहित पूरी कांग्रेस आदर्शवादी राहुल गांधी को अपने अध्यक्ष पद छोड़ने के फ़ैसले को वापिस लेने को नही मना सकी ये बात वो सभी लोग जानते थे जो राहुल गांधी को क़रीब से जानते है उनमें उनकी माँ व बहन भी शामिल थी कि राहुल गांधी जब कोई फैसला कर लेते है तो उससे पीछे नही हठते हालाँकि मां और बहन ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के कहने पर राहुल को अपने फ़ैसले पर विचार करने के लिए प्रयास किए वो सब लोग नाकाम रहे और आख़िरकार नए अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गई है दस जनपद ने कांग्रेस के वफ़ादारों की सूची बनानी शुरू कर दी है जिसमें हिन्दी भाषी को प्राथमिकता दिए जाने की संभावना है पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी का नाम अध्यक्ष पद दावेदारों की सूची से हटाया गया क्योंकि एंटनी सही तरह से हिन्दी नही बोल सकते है अन्यथा ए के एंटनी अध्यक्ष पद के सबसे सशक्त दावेदारों में शामिल थे।इसके बाद अब नए अध्यक्ष पद के नामो में ज्योतिरादित्य सिंधिया , कांग्रेस के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल , राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत , और प्रमोद तिवारी का नाम चर्चा में चल रहा है इन सभी दावेदारों में सिंधिया और तिवारी का नाम सबसे ऊपर चल रहा है दोनों ही दस जनपद के काफ़ी क़रीब है। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए दस जनपद प्रमोद तिवारी को प्राथमिकता दे सकता है जिससे यूपी में कांग्रेस को फिर से खड़ा किया जा सके और ये सही भी है इससे यूपी में कांग्रेस को संजीवनी मिल सकती है माना जा रहा है कि संसद के सत्र शुरू होने से पहले नए अध्यक्ष का चयन हो जाए इस वर्ष कई राज्यों में होने वाले विधानसभा के चुनावों को ध्यान में रखते पार्टी जल्द से जल्द नए अध्यक्ष का चयन कर लेना चाहती है जिससे संगठन में फेरबदल कर चुनावों की तैयारी की जा सके इसके साथ ही कांग्रेस ने ये स्ट्रेटेजी बनाई है जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ-साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए जाएगे इस देश की चार पहचान है हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई इन चारों समुदायो में से नए कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाएगे जिसमें सभी वर्गों की हिस्सेदारी हो सके हिन्दू-मुसलमान-सिख व ईसाई से जुडे कांग्रेस नेताओ को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष की कमान सौंपी जाए।जिन चार नेताओ का नाम कार्यकारी अध्यक्ष पद के लिए लिया जा रहा उनमे अगर प्रमोद तिवारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने जिसकी संभावना अधिक है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम कार्यकारी अध्यक्ष में शामिल किया जा सकता है दूसरे कार्यकारी में मुसलमान का नाम आएगा जिसमे गुलाम नबी आजाद के नाम पर मोहर लग सकती है ईसाई समुदाय में से ए के एंटनी का कांग्रेस में ऐसा नाम है जो अपने आप में बहुत भारी है अगर हिन्दी बोलनी आती तो राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने मे सबसे मजबूत दावेदार थे इस लिए कार्यकारी अध्यक्ष में उनका नाम पक्का माना जा रहा है इसके बाद सिख समुदाय से गांधी परिवार के सबसे नजदीक माने जा रहे मोदी की भाजपा से कांग्रेस में आए नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी के राष्टीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जा सकते है।