नई दिल्ली: अमित शाह ने केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल लिया है. गुरुवार को उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ पद और गोपनीयता की शपथ ली थी. इस लिहाज से सरकार में उनकी भूमिका अब एक तरह से नंबर दो की होगी. अमित शाह के गृहमंत्री बनने के साथ ही उनकी प्राथमिकताओं को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है. खासकर जम्मू-कश्मीर में धारा-370 और आर्टिकल 35-ए पर सरकार का रुख देखने लायक होगा. लोगों की निगाहें इस बात पर होंगी कि बतौर गृह मंत्री अमित शाह इस मसले पर क्या रुख अपनाते हैं, क्योंकि वे लगातार इसको हटाने की बात करते हैं. आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में इसी साल नवंबर में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं. ऐसे में उससे पहले धारा-370 और आर्टिकल 35-ए पर गृह मंत्रालय का रुख राज्य की सियासत में काफी उतार-चढ़ाव लाने वाला साबित हो सकता है.

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में तीन सीटों पर जीत दर्ज की है. बीजेपी राज्य में लगातार अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर रही है. इस कड़ी में भी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का गृह मंत्री बनना काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इसके अलावा अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद पश्चिम बंगाल की सियासी स्थिति पर भी सबकी निगाहें होंगी. खासकर बीजेपी और ममता बनर्जी की टीएमसी के तल्ख रिश्तों के बीच देखना दिलचस्प होगा कि बतौर गृह मंत्री अमित शाह और 'दीदी' के बीच कानून व्यवस्था और अन्य मामलों पर कैसा संबंध रहता है. आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में लगातार टीएमसी-बीजेपी के कार्यकर्ता आमने-सामने हैं. राजनीतिक हिंसा की खबरें आती रही हैं. खुद अमित शाह के खिलाफ बंगाल में एक मामला दर्ज है.

गौरतलब है कि पीएम मोदी के शपथ ग्रहण के बाद विभागों का बंटवारा किया गया. एनडीए-1 में गृहमंत्री रहे राजनाथ सिंह को अब रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है और वित्त मंत्रालय अब निर्मला सीतारमण को दिया गया है. वहीं पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाया गया है. यानी सरकार की सबसे महत्वपूर्ण समिति सुरक्षा मामलों की समिति सीसीएस में पीएम मोदी के अलावा ये चार चेहरे प्रमुख तौर पर रहेंगे. इस फैसले के बाद प्रधानमंत्री के बाद अमित शाह दूसरे सबसे शक्तिशाली मंत्री रहेंगे और पीएम मोदी के विदेश दौरों के दौरान देश की बागडोर अमित शाह के हाथों में होगी. डीओपीटी, एटॉमिक एनर्जी मंत्रालय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास रहेंगे. इसके साथ ही सभी अहम नीतिगत मुद्दों से जुड़े मंत्रालय तथा अनावंटित मंत्रालय भी प्रधानमंत्री के पास ही रहेंगे.