नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए आखिरी चरण का प्रचार थम चुका है. अब 19 मई को सातवें और अंतिम चरण के लिए वोट डाले जाएंगे और 23 मई को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का परिणाम आएगा. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेंस करके पूर्ण बहुमत के साथ जीत का दावा किया है तो वहीं विपक्ष एक बार फिर गठबंधन की कवायद में जुट गया है.

विपक्ष ये मान चुका है कि इस लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं होगा. इसलिए विपक्षी खेमा अपने पाले में नंबर जुटाना शुरू कर चुका है. शायद इसी के तहत तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्‍यमंत्री चंद्रबाबू नायडू 'मिशन गठबंधन' के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.

चंद्रबाबू नायडू शनिवार को दिल्‍ली में कांग्रेस के अध्‍यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की. उसके बाद लखनऊ जाकर बसपा सुप्रीमो मायावती से मुलाकात करेंगे. इससे पहले नायडू ने शुक्रवार देर शाम दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की. आम आदमी पार्टी ने इसे शिष्‍टाचार भेंट बताया.

नायडू विपक्ष के नेताओं से सिलसिलेवार तरीके से मुलाकात कर रहे हैं. सूत्रों के अनुसार, उन्‍होंने शुक्रवार को कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी और माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी से भी मुलाकात की. ऐसा भी कहा जा रहा है कि आज नायडू शरद यादव से भी मुलाकात कर सकते हैं.

वहीं दूसरी तरफ, लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण के मतदान से पहले ही कांग्रेस ने सरकार बनाने को लेकर मास्टर प्लान तैयार करना शुरू कर दिया है. इस प्लान में कई किरदार हैं, कोई राजा, कोई रानी, कई मोहरे और कई प्यादे. और मिशन यह है कि अगर बीजेपी बहुमत तक नहीं पहुंचती है तो कांग्रेस किसी तरह से सभी पार्टियों को साथ लाकर सरकार बनाने का जादुई आंकड़ा पा सके.

इस प्लान की शुरुआत UPA प्रमुख और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से करते हैं. सोनिया गांधी की वजह से 2004 में कांग्रेस ने 145 सीट पर ही मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बना ली थी. कांग्रेस का ये इतिहास रहा है कि 100 पार होते ही सरकार बनाने की रणनीति में कांग्रेस का कोई मुकाबला नहीं है. और इस बार भी ये काम सोनिया गांधी ने अपने हाथों में ले लिया है.

इसके साथ ही सोनिया गांधी और उनकी टीम एक बार फिर सक्रिय हो गई है, क्योंकि उन्हें भी ये अहसास है कि कई क्षेत्रीय पार्टियां ऐसी हैं, जो सीधे राहुल गांधी से संवाद करने में असहज होंगी. इसलिए रणनीतिक तौर पर सोनिया गांधी को एक बार फिर आगे लाया गया है. 23 मई के नतीजे से पहले ही कांग्रेस पूरी तैयारी कर रही है.