नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने लगभग 64 करोड़ रुपए के बोफोर्स घोटाला मामले में आगे की जांच से जुड़ी याचिका वापस ले ली है। गुरुवार (16 मई, 2019) को यह बात उसने दिल्ली स्थित एक कोर्ट से कही, जिस पर कोर्ट ने एजेंसी की दरख्वास्त बात मान ली। सीबीआई बोली कि वह बोफोर्स मामले में आगे की जांच संबंधी याचिका वापस लेना चाहती है। बता दें कि फरवरी 2018 में सीबीआई ने कोर्ट में आगे की जांच के लिए याचिका दाखिल की थी। दरअसल, एजेंसी का कहना था कि उसके पास मामले से जुड़े कुछ और सबूत हैं। पर अब उसने कोर्ट के फैसले के पहले ही यू-टर्न ले लिया।

वहीं, ताजा मामले में निजी याचिकाकर्ता अजय अग्रवाल भी इस मसले में आगे की जांच से जुड़ी याचिका वापस लेना चाहते हैं। हालांकि, इस बाबत अग्रवाल के वकील से पूछताछ की गई है। अब मामले में अगली सुनवाई छह जुलाई को होगी।

इससे पहले, चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट नवीन कश्यप ने सवाल उठाया था, ‘आखिर सीबीआई को इस मामले में आगे की जांच के लिए कोर्ट की अनुमति क्यों चाहिए?’ कोर्ट ने तब यह भी कहा कि सीबीआई को केस से जुड़ा रिकॉर्ड पेश करना होगा, जिसमें जांच एजेंसी को बताना होगा कि उसे आगे की जांच के लिए कोर्ट की मंजूरी चाहिए।

दरअसल, 24 मार्च 1986 को भारत और स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी एबी बोफोर्स के बीच लगभग 1,437 करोड़ रुपए का करार हुआ था। भारतीय सेना के लिए इस डील के तहत 155 एमएम वाली 400 होवित्जर बंदूकें देश में पहुंचाई जानी थीं।

बाद में 16 अप्रैल, 1987 को स्वीडन के रेडिया ने दावा किया था कि एबी बोफोर्स ने भारत के शीर्ष राजनेताओं और रक्षाकर्मियों को घूस दी थी। सीबीआई ने इस बाबत 1990 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और प्रिवेन्शंस ऑफ करप्शन एक्ट के तहत आपराधिक साजिश रचने, धोखाधड़ी करने और फर्जीवाड़े जैसे आरोपों को लेकर स्वीडिश कंपनी के तत्कालीन मुखिया मार्टिन आर्दबो के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।

इनके अलावा एक एफआईआर कथित मध्यस्थ विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ भी दर्ज की गई थी। इस मामले में चड्ढा, ओट्टावियो क्वाटरोच्ची, तत्कालीन रक्षा सचिव एस.के.भटनागर, आर्दबो और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ पहली चार्जशीट 22 अक्टूबर, 1999 को दाखिल की गई थी।