नई दिल्ली: सरकार की तरफ से किए जा रहे खर्च के साथ ही चुनाव संबंधी खर्चों के कारण देश के बैंकिंग सिस्टम में नकदी का संकट (liquidity deficit) बढ़ गया है। इस संकट से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी हैरान है जिसने सिस्टम में नकदी को बढ़ाने के लिए रिकॉर्ड संख्या में बॉन्ड की खरीददारी के साथ ही डॉलर-रुपया स्वैप किया था। रिजर्व बैंक ने खुले बाजार की गतिविधियों के जरिये 2.8 लाख करोड़ रुपये की बॉन्ड की खरीदारी की थी। यह रकम सरकारी प्रतिभूतियों की आपूर्ति के करीब 75 फीसदी है।

इसके साथ ही केंद्रीय बैंक की तरफ से हालिया बैंक दरों में कटौती भी प्रभावी नहीं दिखाई दे रही है। ईटी की खबर के अनुसार इस नकदी के संकट से नीतिगत बदलाव भी रुके से लग रहे हैं। इस बारे में एक्सिस बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट सौगत भट्टाचार्य ने कहा, ‘सिस्टम में नकदी का संकट और बढे़गा जो फिलहाल इस साल अभी सामान्य दिखाई दे रहा है।’

उन्होंने कहा, ‘इसका संभावित कारण आरबीआई के साथ सरकार का संभावी अधिक बकाया है, जिसका कारण कम खर्च हो सकता है। नकदी संकट के अन्य कारणों में अधिक नकदी की निकासी, विदेशी एक्सचेंज इनफ्लो का कमजोर होना और बैंकों की राशि पर नकद रिजर्व अनुपात का अधिक होना है।’

ब्लूमबर्ग इंडिया बैंकिंग लिक्विडिटी गेज के डाटा के अनुसार 16 अप्रैल को यह घाटा 3 अप्रैल के 31,396 करोड़ की तुलना में 16 अप्रैल को बढ़कर 31,396 करोड़ रुपये हो गया था। इस दौरान समान अवधि में सिस्टम में सरप्लस कैश 33400 और 84,600 करोड़ रुपये था। हालांकि, सरकार के करेंसी स्वैप प्रोग्राम से भी उस अवधि में बैंकिंग सिस्टम में नकदी बढ़ी थी।

कोटक महिंद्रा बैंक की सीनियर इकोनॉमिस्ट उपासना भारद्वाज के अनुसार नकदी संकट बढ़ने की सूरत में यह मौद्रिक नीति के बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। उन्होंने कहा कि अप्रैल में नकदी संकट का एक कारण सरकार की तरफ से अप्रत्याशित रूप से खामोशी से किया जा रहा खर्च है। भारद्वाज का कहना है कि इस सप्ताह के अंत तक जीएसटी कलेक्शन्स नकदी भुगतान के संकट को और अधिक बढ़ा देगा और खर्च नहीं होने की सूरत में यह संकट और गंभीर हो जाएगा।