नई दिल्ली: केंद्र सरकार की एक एजेंसी को निर्देश दिया गया है कि वो उस डेटा की दोबारा से जांच करे, जिसके मुताबिक, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 3 साल में 1.12 करोड़ अतिरिक्त नौकरियों पैदा करने का आकलन किया गया है। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। बता दें कि नई नौकरियां पैदा करने को लेकर हो रही आलोचना के बचाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने इस योजना के तहत दी गई जॉब्स का हवाला दिया था। रिपोर्ट के मुताबिक, कई एक्सपर्ट्स को शक है कि बिना जांच किए केंद्र सरकार नौकरियों से जुड़े इस डेटा को जारी नहीं करेगी। इसकी वजह यह है कि आंकड़े सरकार के उम्मीद के मुताबिक नहीं हैं।

द टेलिग्राफ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 1 फरवरी तक मुद्रा योजना के तहत 7.59 लाख करोड़ की रकम के जरिए करीब 15 करोड़ 73 लाख कर्ज दिए गए। एक्सपर्ट की मानें तो इतनी ज्यादा रकम खर्च होने के बाद 1.12 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां पैदा होने का आकलन उम्मीद से काफी कम है। एक्सपर्ट को शक है कि बहुत सारे कामगारों ने कर्ज तो ले लिया, लेकिन इससे नए रोजगार के अवसर नहीं पैदा हुए।

बता दें कि मुद्रा (माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड) एक नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी है जो लघु उद्योगों की मदद के लिए बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के जरिए कर्ज के तौर पर आर्थिक मदद देती है। यह कर्ज नए या पहले से चल रहे आय संबंधित गतिविधियों की मदद के लिए होता है। कर्ज की रकम 10 लाख रुपये तक हो सकती है, लेकिन कहा जा रहा है कि बहुत सारे लाभांवितों ने एक बार में 50 हजार रुपये ही लिए। मोदी सरकार इस योजना को रोजगार की संभावनाएं पैदा करने के जरिए के तौर पर प्रचारित करती रही है।

हाल ही में रिपब्लिक टीवी पर दिए एक इंटरव्यू में पीएम ने मुद्रा योजना का जिक्र किया था। पीएम ने कहा था कि कम से कम 4 करोड़ लोगों ने पहली बार कर्ज लिया है। पीएम ने संभावना जताई थी कि कर्ज लेने वाले इन लोन्गों ने जरूर कुछ रोजगार के अवसर पैदा किए होंगे, जरूर किसी को रोजगार दिया होगा। टेलिग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर 4 करोड़ लोगों के कर्ज लेने का आंकड़ा सही है और पुर्नसत्यापित डेटा भी ऐसा ही बताता है तो इससे यह संकेत मिलते हैं कि कर्ज लेने वाले कुछ लोग पहले से ही कहीं और नौकरी कर रहे थे। किसी भी हालत में अगर 16 करोड़ लोगों को कर्ज दिया गया है तो अतिरिक्त रोजगार पैदा होने का आंकड़ा आदर्श तौर पर 1.12 करोड़ से ज्यादा होना चाहिए। अगर सरकार की ओर से आधिकारिक डेटा जारी किया जाता तो तस्वीर साफ हो सकती थी।

बता दें कि मुद्रा के जरिए 1.12 करोड़ अतिरिक्त नौकरियों का डेटा सरकारी एजेंसी लेबर ब्यूरो की उस कवायद का हिस्सा है, जिसके तहत एक राष्ट्रव्यापी सर्वे में 96000 लोगों से ली गई प्रतिक्रियाओं के आधार पर डेटा इकट्ठा किया था। लेबर ब्यूरो को मुद्रा योजना के लाभांवितों का सर्वे करने कहा गया था ताकि उनकी कारोबारी गतिविधियों से उत्पन्न हुई नौकरियों के बारे में पता लगाया जा सके। 9 महीने तक चली यह कवायद इस साल जनवरी में खत्म हुई। हालांकि, पिछले हफ्ते, एक एक्सपर्ट कमेटी ने लेबर ब्यूरो से इन आंकड़ों की दोबारा जांच करने के लिए कहा। सूत्रों के मुताबिक, पैनल चाहता था कि यह काम जल्द से जल्द खत्म हो लेकिन इसके लिए कोई डेडलाइन नहीं तय की गई। कमिटी ने रिपोर्ट को जारी करने की मंजूरी नहीं दी। लेबर ब्यूरो अब इन आंकड़ों की दोबारा से जांच कर रहा है। चूंकि, डेडलाइन नहीं है इसलिए यह साफ नहीं हो पाया है कि आंकड़े चुनाव से पहले जारी हो पाएंगे कि नहीं।