आईवीएफ उपचार को लेकर भ्रांतियां तोड़ रहा है नोवा IVI फर्टिलिटी

लखनऊ: देश के 20 सेंटरों में 25 हज़ार दम्पतियों को सफल आईवीएफ उपचार के द्वारा संतान प्राप्ति में मददगार बनने वाले नोवा इवी फर्टिलिटी सेंटर लखनऊ की फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉक्टर आँचल गर्ग ने देश में बढ़ती इनफर्टिलिटी की समस्या पर चिंता ज़ाहिर की है|

लखनऊ में आज इस गंभीर विषय पर आयोजित पत्रकार वार्ता में उन्होंने आईवीएफ उपचार के बारे में फैली भ्रांतियों और मिथकों के बारे में विस्तार से चर्चा की | उन्होंने कहा कि इनफर्टिलिटी दरअसल 1 वर्ष तक के असुरक्षित यौन संबंध (किसी भी गर्भनिरोधक तरीके का बिना उपयोग किये) बनाने के बावजूद गर्भधारण न कर पाने की अक्षता को बताता है। इनफर्टिलिटी की समस्या भारत में बढ़ती चिंता का कारण बन चुका है और यह लगभग 14 प्रतिशत से बढ़कर वर्तमान में 20 प्रतिशत तक हो चुका है। इसके निहित कारण के लिए पुरूष और महिला में से कोई भी जिम्मेवार हो सकता है। चूंकि पुरूष और महिला में से कोई भी इन समस्याओं के शिकार हो सकते हैं, ऐसे में मां-बाप बनने की उनकी मनोदशा बाद में बाधित हो सकती है।

डाॅ. आँचल गर्ग ने कहा, ‘‘इच्छानुरूप समय पर बच्चे को जन्म देने की असमर्थता काफी तनावपूर्ण एवं व्यक्तिगत अनुभव है। मानव जीवन के इस पहलू से जुड़े कई मिथक भी हैं। यद्यपि चिकित्सा विज्ञान में गर्भधारण में लोगों की मदद करने हेतु अनेक हस्तक्षेप एवं तकनीकें तेजी से बढ़ी हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश को लेकर गलतफहमियां व्याप्त हैं। जब कोई जोड़ा प्राकृतिक रूप से गर्भधारण कर पाने में असमर्थ होता है, तो उन्हें इस समस्या के मूल कार को समझने और इसे ठीक करने के लिए फर्टिलिटी उपचार का सहारा लेना चाहिए और स्वयं के माथे पर लांछन एवं कलंक सहने के बजाये आवश्यक उपचार का सहारा लेना चाहिए।’’

उन्होंने इनफर्टिलिटी के सामान्य कारण बताते हुए कहा, पुरूषों की इनफर्टिलिटी के सबसे सामान्य कारणों में से है, उनके शुक्राणु की गणना एवं गतिशीलता। वीर्य के विश्लेषण से सामान्य तौर पर यह पता लग पाता है कि क्या पुरूष साथी ओलिगोजस्पर्मिया (उनके वीर्य में शुक्राणु की कम मात्रा) या अजूस्पर्मिया (वीर्य में शुक्राणु की अनुपस्थिति) से पीड़ित तो नहीं, हालांकि मामूली से असामान्य परिणाम आवश्यक रूप से इनफर्टिलिटी का संकेत नहीं देते हैं। इस स्थिति वाले मरीजों की सहायता के लिए अनेक उपचार उपलब्ध हैं।

महिलाओं में, एनोव्युलेशन इनफर्टिलिटी के सबसे सामान्य कारणों में से एक है। एनोव्युलेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें मासिक चक्र के दौरान अंडाशयों से ऊसाइट नहीं निकलता है, जिससे अण्डोत्सर्जन बाधित हो जाता है। एनोव्युलेशन के उपचार के लिए अनेक पद्धतियां उपलब्ध हैं। जीवन शैली संबंधी कुछ बदलाव जैसे-शरीर का 10 प्रतिशत वजन कम करना आदि से भी मोटी या अधिक वजन वाली महिलाओं को मदद मिल सकती है। इस हेतु गोलियों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसमें आपको सावधानी बरतनी पड़ेगी और आप मामूली प्रभाव वाली खुराक का उपयोग करें, जो 6 महीने से अधिक तक नहीं किया जाना चाहिए।

कुछ महिलाओं में अण्डाणु पैदा करने वाली कोशिकाओं की संख्या अत्यल्प हो सकता है या हो सकता है कि उनमें ऐसी कोशिका मौजूदा ही न हो, ऐसी स्थिति में, उपचार के लिए दाता अण्डाणुओं का उपयोग किया जा सकता है।

उपचार शुरू करने से पहले गर्भाशय एवं गर्भनाल की उपयुक्तता देखने हेतु इनका आकलन किया जाना चाहिए।

अण्डोत्सर्जन विकार

लगभग एक-तिहाई इनफर्टिलिटी के मामले अण्डोत्सर्जन संबंधी विकारों के चलते होते हैं। यदि किसी महिला को अण्डोत्सर्जन संबंधी विकार है, तो हो सकता है कि अण्डोत्सर्जन कभी-कभार हो या फिर न के बराबर हो। पाॅलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) अण्डोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले सबसे सामान्य विकारों में से एक है। अण्डोत्सर्जन विकारों के अन्य कारणों में अण्डाशय अपर्याप्तता और हाइपोथैल्मिक एमेनोरिया शामिल हैं।

जीवनशैली संबंधी पसंद

इनफर्टिलिटी के मूल कारण हमेशा विशिष्ट चिकित्सकीय स्थितियां ही नहीं होती हैं। अल्कोहल का अत्यधिक सेवन, धूम्रपान, नशीले पदार्थ का सेवन और एनाबोलिक स्टेराॅयड्स का उपयोग ऐसे कुछ कारण हैं जिनके चलते मर्दों के शुक्राणु की गुणवत्ता एवं क्षमता घटती है। सामान्य से कम वजन वाली या सामान्य से अधिक वजन वाली महिलाओं में इनफर्टिलिटी का अधिक खतरा होता है और सामान्य वजन वाली महिलाओं की तुलना में सफल आईवीएफ चक्र की कम गुंजाइश होती है।

हाल के वर्षों में, आईवीएफ की सफलता दरों में भारी सुधार हुआ है, जिसका श्रेय असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलाॅजी (एआरटी) में हुई महत्वपूर्ण प्रगतियों को जाता है। यद्यपि आईवीएफ की सफलता की कहानियां अनेक हैं, फिर भी इस प्रक्रिया से जु़ड़े कई मिथक भी हैं।