-असलम ख़ान

नारा एक मंत्र है, एक ऐसा मंत्र जो ज़ुबान पर चढ़ जाए, दिलो-दिमाग़ पर छा जाए, तो जीत का प्रतीक बन जाता है. नारे पार्टी को जनमानस से जोड़ने का काम करते हैं. ये नारे ही हैं, जो पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भर देते हैं. वक़्त के साथ नारे बदलते रहते हैं. हर बार सियासी दल नये नारों के साथ चुनावी मैदान में उतरते हैं.

नारे लिखने का काम किसी पेशेवर कंपनी या नामी लेखक को दिया जाता है, लेकिन इस बार कांग्रेस ने नारे लिखने की ज़िम्मेदारी उन लोगों को दी, जो पार्टी के नेता हैं, कार्यकर्ता हैं, पार्टी के समर्थक हैं.

कांग्रेस ने इस आम चुनाव के लिए शक्ति एप के ज़रिये कार्यकर्ताओं से नारों को लेकर सुझाव मांगे थे. इसे लेकर कार्यकर्ताओं में इतना उत्साह देखा गया कि देशभर से विभिन्न भाषाओं में तक़रीबन 15 लाख नारे पार्टी को मिले. पार्टी की प्रचार समिति ने इनमें क़रीब 60 हज़ार नारों को चुना. अब इनमें से प्रदेशों की क्षेत्रीय भाषाओं के हिसाब से पांच-पांच नारे चुनाव में इस्तेमाल किए जाएंगे, जबकि हिन्दी के 0 नारे कांग्रेस की आवाज़ बनेंगे. इसी बीच स्टार न्यूज़ एजेंसी की संपादक फ़िरदौस ख़ान ने एक नारा दिया है- राहुल हैं, तो राहत है.

ग़ौरतलब कि शायरा, कहानीकार व पत्रकार फ़िरदौस ख़ान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर एक ग़ज़ल भी लिख चुकी हैं.