नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार जिस नोटबंदी को कई बार ऐतिहासिक कदम बता चुकी है, उसी पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के कई बोर्ड सदस्य राजी नहीं थे। उन्होंने सरकार को तभी चेता दिया था कि इससे कालेधन पर रोक नहीं लगेगी। दरअसल, सरकार ने 500 और 1000 के पुराने नोट प्रचलन से बाहर करने के पीछे बड़ा तर्क दिया था कि इससे कालेधन पर नकेल कसेगी। साथ ही नकली मुद्रा पकड़ में आएगी और ई-पेमेंट्स को बढ़ावा मिलेगा। पर जानकारों और आंकड़ों की मानें तो कालेधन पर लगाम लगाने में सरकार का यह निर्णय नाकाफी रहा।

‘टीओआई’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आठ नवंबर 2016 को शाम साढ़े पांच बजे आरबीआई बोर्ड बैठक हुई थी, बैठक में सरकार ने कहा था कि बड़े नोटों (500 और 1000) की संख्या हमारे आर्थिक विस्तार से भी तेजी से बढ़ रही है, जबकि जवाब में बोर्ड सदस्य बोले थे- महंगाई के लिहाज से आप इस अंतर को देखेंगे तो अधिक फर्क नहीं पाएंगे।

सरकार का तर्क था कि 2011-12 से 2015-16 में अर्थव्यवस्था का 30 फीसदी फैलाव हुआ, जबकि 500 के नोटों में 76 प्रतिशत और 1000 के नोटों में 109 फीसदी बढ़ोतरी हुई। आरबीआई के बोर्ड सदस्यों ने इसी पर कहा था कि अर्थव्यवस्था की जिस विकास दर का जिक्र किया गया है, वह रियल रेट (असली दर) है, जबकि मुद्रा में हई प्रगति नाममात्र की है। ऐसे में सरकार का तर्क नोटबंदी की सिफारिश का समर्थन न कर सका।

आगे कई बोर्ड सदस्यों ने कहा था कि अधिकतर कालाधन कैश में नहीं होता है। लोग उसे सोने और रियल एस्टेट के रूप में रखते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार के प्रस्तावित कदमों से अर्थव्यवस्था को विस्तार देने और पेमेंट के ई-मोड्स का इस्तेमाल बढ़ने को लेकर बड़े स्तर पर अवसर खुलेंगे।

वहीं, कुछ बोर्ड सदस्यों ने चेतावानी दी थी कि इससे थोड़े समय के लिए जीडीपी (2016-17) पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इस सबके बाद भी बोर्ड ने नोटबंदी को हरी झंडी दी, जिसके लगभग तीन घंटे बाद पीएम ने नोटबंदी को लेकर ऐलान कर दिया था।