– प्रदीप कुमार सिंह, लेखक, लखनऊ

(1) संसार में धन, वैभव, पद तथा शक्ति ही सब कुछ नहीं है। यदि इनकी दिशा लोक कल्याण की तरफ नहीं हुई तो ये कांटों की तरह हैं। जो संसार में रहते हुए परहित की शरण में जाता है उसकी झोली परहित रूपी फूलों से भर जाती है और जो दूसरों को पीड़ा पहुँचाने की राह पर चलकर समाज से दूरियाँ बनाता है उसकी झोली कांटों से भर जाती है अर्थात उसका सामाजिक रूप से विनाश हो जाता है। मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है। आत्मविश्वास वह मजबूत आधार है जिस पर खड़े होकर कोई भी व्यक्ति अपनी सपनों को साकार रूप दे सकता है, लेकिन दुनिया में अधिकांश लोग ऐसे हैं, जिनमें इस आत्मविश्वास की कमी होती है, जिसके कारण किसी भी दिशा में वे अपने कदम आगे बढ़ाने से घबराते हैं, आशंकाओं से घिरे रहते हैं और स्वयं को कमजोर महसूस करते हैं। ऐसे लोगों को सदैव दुनियावालों की फिक्र होती है, उन्हें लगता है कि यदि वे असफल हो गए तो समाज में उनकी छवि खराब होगी। इसलिए ऐसे लोग किसी भी नए कार्य की शुरूआत नहीं कर पाते, पहल नहीं कर पाते और न ही किसी समूह का कुशल नेतृत्व कर पाते हैं। ये लोग नई सोच तो रखते हैं, लेकिन उसे कार्य रूप में परिणित नहीं कर पाते जिनमें प्रबल आत्मविश्वास तथा भरपूर उत्साह होता है वह ही नये विचार को कार्य में परिणित कर पाते है। चर्चित मनोवैज्ञानिक लुईस एल हे ने अपनी पुस्तक ‘सेल्फ एस्टीम एफर्मेशन्स’ में आत्मविश्वास को सफलता का मूलमंत्र मानते हुए कहा है- यदि व्यक्ति को कामयाबी हासिल करनी है तो आत्मविश्वास के इस कवच को धारण करना ही होगा।

(2) ऐसे ही एक सच्ची कहानी गहलौर, गया (बिहार) के दशरथ माँझी की है, जिन्हें आज दुनिया ‘माउंटेनमैन’ के नाम से भी जानती है। यह सच्ची कहानी एक ऐसे इनसान की है, जिसे लोग सनकी मानते थे। उसके बारे में तरह-तरह की बातें कहते थे, उसका मजाक उड़ाते थे, लेकिन उसने लोगों की परवाह नहीं की और अपने अकेले दम पर 22 साल तक पहाड़ को काटने का कार्य किया और 27 फीट ऊँचे पहाड़ के बीच से 30 फीट चौड़ा रास्ता बना दिया। दशरथ माँझी के इस लोक कल्याणकारी अथक प्रयास से 80 किलोमीटर की वह दूरी, जिसे पार करना लोगों की मजबूरी बन गई थी, तीन किलोमीटर में सिमट गई। दशरथ माँझी का मजाक बनाने वाले गाँव के किसी भी व्यक्ति में इतनी हिम्मत नहीं थी कि लोक कल्याण से भरे इस असंम्भव कार्य को संम्भव करने के बारे में सोच भी सके।

(3) लोक कल्याण के आत्मविश्वास के बल पर दशरथ माँझी को जो प्रेरणा मिलती गई, उसी के सहारे उन्होंने वह कार्य कर दिखाया, जिसकी सराहना आज पूरी दुनिया करती है। उसके कार्य की सफलता का उपयोग गाँववासी करते हैं और मन से दशरथ माँझी का बारम्बर हार्दिक आभार प्रकट करते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास होने तथा मार्ग कठिन होने पर भी आगे बढ़ने के रास्ते स्वयमेव बनते चले गए और उस व्यक्ति के आगे परिस्थितियों को हार माननी पड़ी।

(4) खुद पर अटूट विश्वास के कारण ही ‘जोन ऑफ आर्क’ जैसी फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व एक ग्रामीण लड़की ने किया। इतना ही नहीं, उसके इस प्रबल आत्मविश्वास के कारण ही फ्रांस के राजा को भी उसके आदेशों का पालन करना पड़ा। विलियम पिट को जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री पद से हटाया गया, तब उन्होंने डेवनशायर के डयूक से बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा कि- ‘इस देश को मैं ही बचा सकता हूँ, इस कार्य को मेरे सिवा कोई दूसरा नहीं कर सकता।’ इंग्लैंड में 11 हफ्ते तक बिना प्रधानमंत्री के ही काम चलता रहा और अंत में पिट को ही योग्य मानते हुए शासनाधिकार सौंप दिया गया।

(5) ऐसा ही एक उदाहरण बेंजामिन डिजारायली का है, जिनको ‘यहूदी’ कहकर उनका निरादर किया जाता था। ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्यों ने उनके तिरस्कार में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी, पर वह उनके मध्य आत्मविश्वास के साथ बैठे रहे और इसी के बल पर वे इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने। बेंजामिन ने अपना तिरस्कार करने वालों को भी वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया। इसी तरह नेपोलियन, लूथर वैस्ले, बिस्मार्क और सेवोनारोला जैसे सामान्य लोग अपने प्रबल आत्मविश्वास के कारण महान लोगों की श्रेणी में आ गए और अपने जीवन में आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त कर सके।

(6) जीवन में बाधाओं का हर व्यक्ति सामना करता है। बाधाएँ हमारी राह में आने वाली वो रूकावटें हैं, जो हमें आगे नहीं बढ़ने देतीं। बाधाओं का रोना रोने वालों की कमी नहीं है, पर वे भूल जाते हैं कि यदि जीवन है तो बाधाएँ आएँगी ही, ये तो प्रकृति का नियम है। विख्यात मनोवैज्ञानिक रेमंड कैटल का कहना है कि बाधाओं से डरें नहीं, बल्कि उन पर हँसना सीखें। ऐसे में बाधाओं में व्यक्ति को दरारें पड़ती दीखेंगी। उनके अनुसार, बाधाएँ कुछ नहीं हैं, वे तो केवल मृग-मरीचिका हैं, जिन्हें हम सच मान लेते हैं और उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, मानो वे सच का मूर्तिमान रूप हों। सही मायने में बाधाएँ या तो हमारे पैरों तले कुचली जाएँगी या वे हमें पीछे हटने पर मजबूर कर देंगी और यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम बाधाओं को किस रूप में स्वीकार करते हैं। उनसे डरने वाले पीछे हटने को मजबूर होते हैं; जबकि उनसे लड़ने वाले बाधाओं को ही डरा कर दूर कर देते हैं।

(7) अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन बाधाओं से निपटने के बारे में कहते थे-‘हमेशा चीजों को चिकने हैंडल की तरफ से पकड़ो।’ उनके इस कथन का अर्थ था कि शुरूआत हमेशा ऐसी जगह से करनी चाहिए, जहाँ से कार्य करने में आसानी हो और प्रतिरोध की गुंजाइश कम हो और हमारी सोच सदा सकारात्मक हो। विज्ञानी एरिक बर्लो का कहना है-‘‘कोई भी कार्य जटिल क्यों समझा जाता है, इसका जवाब एक ही है कि व्यक्ति के अंदर बाधाओं को पार करने की गहन, प्रबल और सच्ची इच्छा नहीं होती।’’ आज के प्रेरक वक्ताओं में से एक जोसेफ मर्फी का कहना है कि यदि व्यक्ति के अंदर जटिल समझे जाने वाले काम को सरलता से करने की प्रबल इच्छा है तो इसका मतलब है कि मार्ग की आधी दूरी तय की जा चुकी है और बाकी दूरी कार्य करते ही पूर्ण हो जाएगी।

(8) प्रसिद्ध मानव व्यवहार विशेषज्ञ ग्रेस फ्लेमिंग, आत्मविश्वास को सफलता की कुंजी मानते हैं। उन्होंने कहा है कि ‘यदि मनुष्य अपना आत्मविश्वास बढ़ाना चाहते हैं तो सबसे पहले वे अपनी कमजोरियों को पहचानें तथा उन्हें दूर करने की खुद में शक्ति पैदा करें। ये कमजोरियाँ हमारे व्यक्तित्व में किसी भी प्रकार की हो सकती हैं, जैसे-हमारा खराब स्वास्थ्य, रूप-रंग, पारिवारिक पृष्ठभूमि, रहन-सहन, वजन, गुण, बुरी आदतें, गरीबी आदि। हमें अपनी कमजोरियों की तह में जाकर इनके कारगर समाधान ढूँढ़ने चाहिए। अपनी इन कमजोरियों का मुकाबला करने में सबसे पहले हमें डर लगेगा, लेकिन इस डर को दूर करके ही हम अपनी कमजोरियों को दूर कर सकेंगे और अपने आत्मविश्वास को बढ़ा सकेंगे।’ इसलिए कहा जाता है कि आत्मविश्वास सबसे बड़ी शक्ति तथा आत्महीनता सबसे बड़ी कमजोरी है। अपने दीपक स्वयं बनना चाहिए। सत्य की स्वयं की अनुभूति की सुगन्ध स्थायी होती है सत्य की खोजी ज्ञान की खोज कहीं बाहर नहीं बल्कि स्वयं में करता है और जीवन के सत्य को पा लेता है।

(9) आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है हृदयों की एकता की हैं। एकता के वृक्ष पर ही शान्ति के फल लगते हैं। हृदय की एकता के लिए पवित्रता आवश्यक है। केवल पवित्र हृदय ही मिलकर एक हो सकते हैं। चाहे वह परिवार हो या समाज। हृदय पवित्र नहीं है तो एकता स्थापित नहीं हो सकती। पवित्र हृदय वह है जो पूर्णतया स्वार्थ से रहित हो। उस हृदय में लेशमात्र भी स्वार्थ न हो। पूर्णतया पवित्र हृदय ही परिवार तथा समाज में एकता स्थापित कर सकता है। इस प्रकार वह परिवार तथा समाज को सुखी बनाने में अपना योगदान दे सकता है। यदि किसी मनुष्य में 1000 गुण हां किन्तु एक स्वार्थ का अवगुण भी आ जाये तो उस व्यक्ति के सभी 1000 गुण समाप्त हो जायेंगे और केवल स्वार्थ का अवगुण ही रह जायेगा।

(10) स्वार्थ एक लाइलाज बीमारी है जो मनुष्य के सभी गुणों को पूर्णतया नष्ट कर देती है और मनुष्य में एक भी गुण शेष नहीं रह जाता। ऐसा व्यक्ति अच्छा कार्य भी करता है तो उसमें भी केवल स्वार्थ की छिपी भावना रहती है। लोक हित तथा समाज सेवा की भावना नहीं रह जाती। व्यक्तिगत जीवन, परिवार तथा समाज में अशान्ति का कारण स्वार्थ होता है। स्वार्थी व्यक्ति स्वयं तो नष्ट तथा भ्रष्ट हो जाता है साथ ही अपने परिवार तथा समाज को भी नष्ट तथा भ्रष्ट करने में पूरा योगदान देता है।