लखनऊ: समुद्र से संभावित दवाओं (समुद्र से औषधि) के विकास के लिए सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस एमओयू (MoU) दस्तावेज़ का आदान-प्रदान, सीएसआईआर-सीडीआरआई के निदेशक प्रोफेसर तपस कुमार कुंडू, एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से संयुक्त सचिव (प्रशासन) डॉ. विपिन चंद्रा ने किया।
इस अवसर पर, डॉ. चंद्रा ने कहा, अपने 8000 किमी के समुद्र तट के साथ भारत एक समृद्ध समुद्री जीव-जन्तु एवं वनस्पति से संपन्न एक देश है। भारतीय समुद्र विविध वनस्पतियों और जीवों का एक विशाल भंडार है, जिसे उसके व्यावसायिक उपयोग के नजरिए से व्यवस्थित रूप से नहीं देखा गया है। हालांकि समुद्री जीवों जैसे कि स्पंज, मूंगा, मोती, सीप आदि का आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा पद्धतियों में प्राचीन समय से उपयोग किया जा रहा है एवं प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इनका उल्लेख "प्रवाल/मुक्ता पिष्टी एवं प्रवाल/मुक्ता भस्म" के रूप में बहुतायत से उल्लेखित है। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के समुद्र से उत्पन्न उत्पादों के औषधीय गुणो का वैज्ञानिक विश्लेषण होना अभी बाकी है। उन्होंने आगे उल्लेख किया कि, इस शोध-क्षेत्र को विकसित करने एवं समुद्री सम्पदा के चिकत्सीय महत्व का डीहन करने के लिए ही महासागर विकास विभाग (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय), नई दिल्ली द्वारा "समुद्र से दवाओं" पर राष्ट्रव्यापी बहु-केंद्रित (मल्टी-सेंट्रिक) कार्यक्रम शुरू किया गया है।

इस समझौते पर हस्ताक्षर समारोह के दौरान, निदेशक, सीएसआईआर-सीडीआरआई ने बताया कि संस्थान पूरे देश के अन्य भागों से समुद्र से उत्पन्न उत्पादों के नमूनों/अंशों का एन्टीकैंसर, एन्टीइन्फ़्लेमेट्रि, जीवाणुरोधी और एंटीफंगल एंजियोजेनिक, स्टेम सेल विभेदन और कई अन्य रोगों से संबन्धित जैवविज्ञानिक विश्लेषण कर उनकी औषधि निर्माण में उपयोगिता का आंकलन इस परियोजना के अंतर्गत करेगा। सीएसआईआर-सीडीआरआई आवश्यकतानुरूप बायो-एक्टिव प्रोफायलिंग हेतु जांच के नए तरीकों का विकास एवं रखरखाव करेगा। ऐसे उत्पाद या नमूने जिन्हें औषधि निर्माण के लिए योग्य पाया जाएगा या जिन्हें हिट/लीड मोलिक्युल के रूप में पहचाना जाएगा उन्हें प्रत्याशी दवाओं के विकास के लिए इस परियोजना में शामिल कर औषधि निर्माण की ओर ले जाया जाएगा।