दो नदियों के मिलन की तरह है हिंदी-उर्दू का संगम: प्रेमकांत तिवारी

न्यू किलयस एजूकेशनल एण्ड वेलफेयर सोसायटी ने ’’उर्दू और हिन्दी का रिश्ता’’ विषय पर किया सेमिनार का आयोजन

लखनऊ: हिंदी और उर्दू मुख्य भारतीय भाषाओं हैं यह महज संयोग नहीं है कि दोनों भाषाओं की उन्नति मुगल सरकार के पतन की आहट के साथ ही शुरू होती है। दोनों भाषाओं की व्याकरण लगभग एक होने की वजह से उन्हें बढ़ावा भी एक साथ ही शुरू हुआ मगर समय के साथ दोनों भाषाओं की शैली में थोड़ी बहुत बदलाव होता रहा है और इसलिए यह बात कही जा सकती है भाषाओं के स्तर पर जितना गहरा रिश्ता और निकटता उर्दू और हिंदी भाषाओं में दुनिया की किसी और भाषाओं में नहीं है। लिखावट और आगे बढ़कर साहित्य के क्षेत्र में उर्दू और हिंदी अलग-अलग भाषाएँ हैं लेकिन हिंदी और उर्दू एक दूसरे से सामान्य बोली में अलग नहीं हैं। यह विचार प्रोफेसर आसिफा ज़मानी ने न्यू किलयस एजूकेशनल एण्ड वेलफेयर सोसायटी द्वारा उ0प्र0 उर्दू एकेडमी के सहयोग से आयोजित एक दिवसीय “उर्दू और हिन्दी का रिश्ता“ विषयक सेमिनार में अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किये।

सेमिनार में मुख्य अतिथि प्रो0 अकील अहमद, वी0सी0 इन्टेगरल यूनिवर्सीटी ने कहां कि हिन्दी और उर्दू दो सगी बहनों की तरह हैं और उर्दू के कुछ शब्द ऐसे हैं जिनकी हम हिन्दी बना ही नहीं सकते है इस लिये भाषा का झगड़ा समाप्त करके दोनों भाषाओं के उत्थान हेतु प्रयत्न करें क्योंकि भाषा का संबंध किसी भी धर्म से नहीं होता।

सेमिनार में संबोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार प्रेम कांत तिवारी ने कहा कि किसी देश की सही मायने में राष्ट्रीय संस्कृति तभी आगे बढ़ती है जब सारे देश की भाषा एक हो जाती है, जब दो नदियों का संगम होता है तो दोनों नदियों धाराएँ गरजती हुई टकराती हैं लेकिन तुरंत ही मिलजुल कर एक धारा बहने लगती है। हिंदू-मुस्लिम और उर्दू हिन्दी टकरा कर मुहब्बत के संगम में मिल जाते हैं। इसलिए कि दोनों भाषाओं की संस्कृति एक समान है।

मौलाना कौसर नदवी ने कहा कि कुछ मामलों और स्थितियों में दोनों भाषाओं के अलग होने के बावजूद, दोनों भाषाओं ने एक समान भारतीय संस्कृति को एकजुट किया है। उस गंगा जमुनी तहजीब को एक नये अर्थ में पनपने का मौका तब मिला जब उर्दू ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फैलना शुरू कर दिया। उर्दू और हिंदी के इस रिश्ते को विद्वानो ने अलग अलग नाम दिए हैं महातमा गांधी ने उर्दू हिन्दी को भारत की दो आंखें कहा था जबकि उर्दू के प्रसिद्ध लेखक गोपीचंद नारंग उर्दू हिन्दी के इस रिश्ते को एक दूसरे की ताकत बताते हैं।

शोधपत्र लेखक डॉक्टर उमैर मंजर, डॉक्टर वसीउल्लाह खान, ओवैस संभली, ज़ियाउल्लाह सिद्दीकी और अतिया बी, सईद अख्तर और मो0 राषिद ने अपने शोध पत्रों में कहा कि स्वतंत्र भारत के संविधान में हिंदी और उर्दू को अलग अलग भाषाओं के रूप में रखा गया है लेकिन इसके बावजूद इन भाषाों का रिश्ता समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि हम कह सकते हैं कि ऐतिहासिक भाषाई दर्पण में इन भाषाओं का इतिहास और स्रोत एक ही हैं, अपने सभी विरोधों के बावजूद उर्दू और हिंदी के भाषाई संबंध लगातार स्थापित है।

कार्यक्रम के अंत में सोसाईटी की ओर से विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट सेवा देने के लिए अवार्ड व प्रमाणपत्र मेहमानों के द्वारा वितरित गए जिसमें पत्रकारिता के लिए अब्दुर्रहमान (बच्चे भारती, बहराइच), एम.आई. नादीम को शिक्षक पुरस्कार से सम्मनित किया गया।

सेमिनार का आयोजन पवित्र कुरान के पाठ से किया गया इसके बाद हम्द व नात प्रस्तुत की गयी। सेमीनार में उद्घाटन भाषण देते हुए कार्यक्रम संयोजक निसार अहमद ने मेहमानों का स्वागत करने के बाद सोसायटी के लक्ष्यो और उददेश्यों पर विस्तृत प्रकाश डाला और भविष्य का विजन भी पेश किया। इस अवसर पर सोसायटी के सदस्यों ने मेहमानों का गुलदस्तों और फूलों से स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन मौलाना आजाद विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर उमैर मंजर ने किया।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश उर्दू अकादमी के पूर्व सचिव मोहम्मद शमीम, ज़ियाउल्लाह सिद्दीकी, मोहम्म्द यूनुस सलीम, डॉक्टर मसीह उद्दीन खान, अब्दुल्ला बुखारी, रफी अहमद, राशिद खान, मुमताज़ अहमद, आमना खातून , सारिका वर्मा, अब्दुल नईम कुरैशी, शाहिन्दा किदवाई, सगीर अहमद, ख़ावर अंसारी, अताउल्लाह आदि विशेष रूप से उपस्थित थे। अन्त में सोसायटी के अध्यक्ष अब्दुल्ला बुखारी ने मेहमानों के धन्यवाद के साथ सेमिनार के अंत की घोषणा की।