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अखिलेश-प्रियंका और यूपी का मुसलमान, किसे नफ़ा किसे नुकसान

लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।सियासत में कब क्या हो जाए कुछ कहना मुश्किल होता है क्षेत्रीय क्षत्रपों को साथ लेने के बाद सपा के नेता मुलायम सिंह यादव ने सपा को एक सियासी जेबी संस्था बनाकर अपने लख्ते जिगर अखिलेश यादव उर्फ़ टीपूँ को सौंप दी और खुद संरक्षक बन गए या बना दिए गए ये बात अलग है इस पर भी बहुत कुछ लिखा गया लेकिन आने वाले समय में सपा के भविष्य पर संकट के बादल मँडराने वाले है ? सियासत पर नज़दीक से नज़र रखने वालों को ये दिखाई देने लगा है उनका मानना है कि जैसे-जैसे कांग्रेस मज़बूत होगी वैसे-वैसे ही सपा का सियासी भविष्य ख़तरे में पड़ता जाएगा।राजनीति के जानकार यह भी मानते है कि अब इसमें ज़्यादा दिन नही लगेगे क्योंकि प्रियंका गांधी के इरादे देख यही लग रहा है उनकी चहल कदमी बता रही है कि यूपी में अब काँग्रेस मज़बूत होगी और सपा कंपनी खतम होने के कगार पर चली जाएगी ? क्योंकि सपा से उसका सबसे बड़ा वोटबैंक मुसलमान कांग्रेस के साथ चला जाएगा ? ऐसे क़यास लगने अभी से शुरू हो गए है हालाँकि 2019 के लोकसभा चुनाव में इसके चांस न के बराबर है।इसी लिए मुलायम सिंह यादव कांग्रेस से दूरी बनाए रखते थे और किसी को एहसास भी नही होने देते थे कि मैं कांग्रेस विरोधी हूँ यूपी के विधानसभा चुनाव में जब अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ चुनावी समझौता किया था और नारा दिया था कि यूपी को ये साथ पसंद है तब भी मुलायम सिंह यादव ने मना किया था कि कांग्रेस से समझौता न किया जाए लेकिन अखिलेश ने पिता की बात नही मानी थी यह बात अलग है इस गठबंधन का दोनों को ही नुक़सान हुआ था सपा की स्थापना के बाद का सबसे ख़राब प्रदर्शन रहा था लेकिन मुलायम का तर्क ये नही था वह चाहते थे कि मुसलमान को कांग्रेस का घर न दिखाया जाए कही ये फिर वही न चला जाए जहाँ से मैं इनको लाया था इनके जज़्बातो के साथ खेलकर और दिया इन्हें कुछ नही सिर्फ़ बयानबाजी से ही इनका यानी मुसलमान का उल्लू बनाए रखा 2012 में आरक्षण का वादा किया गया सरकार चली गई परन्तु मुसलमानों से किया वादा पूरा नही किया लेकिन मुसलमान फिर भी सपा के ही पाले में खड़ा रहा एक बँधवा मज़दूर की तरह वोटबैंक बनकर ये मुलायम सिंह यादव की कला ही थी कि वह हटा नही एक और वजह थी दूसरा कोई दल नही था वह जिसकी साथ जाता जहाँ तक बसपा का सवाल है उसकी नेता मायावती मुसलमानों को अपने साथ लाने का प्रयास ही नही करती या मुसलमान उसे पसंद नही करता हालाँकि वह मुसलमानो को बसपा से टिकट देकर यह संदेश देने का प्रयास ज़रूर करती रही है कि आओ हमारे साथ पर वह मुलायम सिंह यादव की तरह ड्रामेबाज़ी नही करती इस लिए वह उसके साथ नही जाते बहुत कम मात्रा है जो बसपा को सही मानते है वैसे देखा जाए तो बसपा अपने आप में सही है लेकिन मुसलमान को तो जज़्बाती बातें पसंद है न कि काम की बात।रही बात कांग्रेस की तो उसका उसके साथ जुड़ाव आजादी से पहले से है इस लिए वह आसानी से उसके साथ जा सकता है प्रियंका गांधी के सियासत में आने और यूपी की ज़िम्मेदारी मिलने के बाद यह क़यास लगने लगे है कि सबसे पहले कांग्रेस के साथ जाने वाला अगर कोई वोटबैंक होगा तो वह मुसलमान होगा और अगर ये वहाँ चला गया तो सपा खतम हो जाएगी ? और ये सच भी है अगर मुसलमान ने अँगड़ाई ली तो सपा के बुरे दिन समझो शुरू हो जाएँगे ?मुसलमान को सपा ने कुछ नही दिया यह बात सब जानते है मुसलमान 2019 लोकसभा चुनाव के बाद अब नए या पुराने घर की तलाश में है फिलहाल बसपा-सपा के बीच गठबंधन होने की वजह से वह गठबंधन को पसंद कर रहा है मुसलमान को गठबंधन से फिलहाल हटना भी नही चाहिए अगर हटा तो मोदी की भाजपा को जीतने से कोई नही रोक पाएँगा।मुसलमान इसी वजह से अब गठबंधन के साथ ही रहेगा ऐसा ही लग रहा है।कांग्रेस का ये ख़्वाब 2019 में पूरा नही होने जा रहा है उसके लिए उसे 2022 का इंतज़ार करना होगा,उसकी सबसे बड़ी वजह मुसलमान 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की भाजपा को यूपी में हराना चाहता है दलितों में अपनी पकड़ रखने वाली बसपा ने सपा से समझौता सिर्फ़ मुस्लिम वोटबैंक की वजह से ही किया है।यादव तो 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की भाजपा के साथ भाग गया था पर मुसलमान सपा के साथ ही खड़ा रहा था इसकी वजह से बसपा ने सपा के साथ समझौता किया है ये गठबंधन हो जाने की वजह से मुसलमान गठबंधन के साथ ही जाने की संभावना है वह कह रहा है कि गठबंधन का प्रत्याशी दलितों का वोटबैंक लेकर चलेगा उसमें हमारा वोट शामिल होने के बाद गठबंधन का प्रत्याशी मोदी की भाजपा को हराने की स्तिथि में होगा और उनका यह तर्क ग़लत भी नही है कोई भी गठबंधन का प्रत्याशी तीन लाख वोटों से गिनती शुरू करेगा और उसमें मुसलमानों के या दलितों के वोट मिल जाने के बाद ये आँकड़ा पाँच लाख को पार करता दिखाई देगा ऐसा ही माना जा रहा है नही तो मुसलमान कांग्रेस के साथ चला जाता दूसरी वजह ये है कि यूपी में कांग्रेस के पास फिलहाल हिन्दू वोट नही है इस लिए वह इस बार कांग्रेस के साथ नही जाएगा।वैसे मुसलमान ने कांग्रेस से 1992 में बाबरी मस्जिद शहीद होने के बाद जो दूरी बनाई थी अब वह दूरी और नफ़रत में कमी आई है।अब कांग्रेस से उतनी नफ़रत नही करता जितनी पहले करता था जिसे मुलायम सिंह यादव ने भुनाया था और आज तक भुनाते चले आ रहे दिया कुछ नही सिर्फ़ बातों से पेट भरते आ रहे है।

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