नई दिल्ली: वर्तमान मिग फ्लीट की जगह नए लड़ाकू विमानों के लिए भारतीय वायुसेना का इंतजार और लंबा हो सकता है। भारत में बनने वाले लड़ाकू एअरक्राफ्ट की चयन प्रक्रिया का इस साल होने वाले आम चुनावों से पहले शुरू हो पाना मुश्किल है। उच्‍च-पदस्‍थ सूत्रों के हवाले से एक अंग्रेजी अखबार ने यह जानकारी दी है। 2016 में जब 36 राफेल विमान खरीदने का सौदा हुआ था, उसी समय निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए नई रणनीतिक समझौता नीति के तहत फैसला लिया गया था कि 110 लड़ाकू विमान बनाए जाएंगे। इन विमानों की निर्माण प्रक्रिया में देरी की बड़ी वजह राफेल लड़ाकू विमान के सौदे पर खड़ा हुआ विवाद है।

(ईटी) ने विभिन्‍न अधिकारियों से बातचीत के आधार पर इस बात की पुष्टि की है कि इस संबंध में सात कंपनियों की ओर से जवाब दिया गया है। अधिकारियों के अनुसार, मिले इनपुट्स के आधार पर वायु सेना के हिसाब से तकनीकी जरूरतों को पूरा करने की दिशा में शोध हो रहा है। जिन विदेशी वेंडर्स ने जवाब सौंपे हैं, उनका अध्‍ययन कर वायु सेना यह जांच रही है सौदे में कितने स्‍वदेशी निर्माण का प्रावधान रखा जाए।

वायु सेना की योजना यह है कि भारत में बनने वाले विमानों में स्‍थानीय हिस्‍सा 45 फीसदी से कम न हो। अखबार ने सूत्र के हवाले से लिखा, “जैसी स्थिति है, उसमें तेजी से आगे बढ़ना संभव नहीं होगा क्‍योंकि मामले पर अध्‍ययन हो रहा है। अब आगामी चुनावों के बाद नई सरकार बनने के बाद ही कंपनियों के बीच स्‍पर्धा शुरू की जा सकती है।”

अब तक जिन कंपनियों ने इन विमानों के निर्माण में दिलचस्‍पी दिखाई है, उनमें अमेरिका की बोइंग F/A 18 और लॉकहीड मार्टिन F 16, स्‍वीडन की SAAB, रूस की मिग 35 औ सू 35 तथा ब्रिटेन/इटली/जर्मनी की यूरोफाइटर टायफून का नाम शामिल है। बोइंग ने महिंद्रा और एचएएल, लॉकहीड ने टाटा तथा SAAB ने अडानी डिफेंस को भारतीय पार्टनर चुना है।

वायु सेना लड़ाकू विमानों की भारी कमी से जूझ रही है। आने वाले महीनों में जितने मिग विमान रिटायर होने जा रहे हैं, उनके मुकाबले में 36 राफेल विमान पर्याप्‍त नहीं होंगे। इस साल मार्च तक वायु सेना के पास 29 स्‍क्‍वाड्रंस रह जाएंगे।