जैसे-जैसे 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का कार्यकाल पूरा होने को है, वैसे-वैसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ताकत कमजोर होती जा रही है क्योंकि एक-एक कर धीरे-धीरे एनडीए के 16 घटक दल गठबंधन छोड़ चुके हैं। अभी भी एनडीए के पांच घटक दल भाजपा पर दबाव बनाए हुए हैं और गठबंधन छोड़ने की दबी जुबान से चेतावनी दे रहे हैं। बता दें कि साल 2014 के चुनावों में भाजपा ने 28 दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उन चुनावों में भाजपा को 282 और 22 घटक दलों को कुल 54 सीटें मिली थीं। चुनाव के बाद भाजपा ने कई छोटे-छोटे दलों को एनडीए में शामिल करवाया था। इससे एनडीए के घटक दलों की संख्या बढ़कर 42 हो गई थी। अभी हाल ही में असम गण परिषद (एजीपी) ने नागरिकता (संशोधन) बिल के विरोध में एनडीए छोड़ दिया है।

साल 2018 एनडीए के लिए सबसे बुरा रहा क्योंकि कई बड़े क्षेत्रीय दलों ने गठबंधन को अलविदा कर दिया। साल के शुरुआत में ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने एनडीए छोड़कर विपक्षी महागठबंधन का हाथ थाम लिया। फरवरी, 2018 में ही नागालैंड विधान सभा चुनाव के दौरान एनडीए के पुराने सहयोगी नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने 15 साल पुराने रिश्ते को खत्म कर दिया। अगले ही महीने यानी मार्च, 2018 में आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने भी एनडीए को अलविदा कह दिया। नायडू आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने से भाजपा से खफा थे।

पश्चिम बंगाल में भी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने भाजपा पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए पिछले साल एनडीए छोड़ दिया था। कर्नाटक विधान सभा चुनाव के बाद कर्नाटक प्रज्ञावंत जनता पार्टी ने भी भाजपा के साथ गठबंधन तोड़कर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन का हाथ थाम लिया था। 2018 के अंत में मोदी सरकार में मंत्री रहे उपेंद्र कुशवाहा ने भी भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया और अपनी पार्टी आरएलएसपी को बिहार के विपक्षी महागठबंधन में शामिल कर लिया। साल 2018 में ही जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार चलाने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से खुद भाजपा ने गठबंधन तोड़ लिया था। वहां महबूबा मुफ्ती सरकार में भाजपा शामिल थी। इनके अलावा, बिहार के एक और क्षेत्रीय दल मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी ने भी एनडीए छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया।

साल 2014 में ही एकसाथ लोकसभा चुनाव लड़ने वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस ने कुछ महीने बाद ही एनडीए छोड़ दिया था और पार्टी के अध्यक्ष कुलदीप विश्नोई ने आरोप लगाया था कि भाजपा धोखा देनेवाली पार्टी है जो क्षेत्रीय दलों को खत्म करना चाहती है। तमिलनाडु की एमडीएमके, डीएमडीके और रामदॉस की पीएमके भी एनडीए छोड़ चुकी है। आंध्र प्रदेश में तेलुगु स्टार पवन कल्याण की पार्टी जन सेना पार्टी ने भी 2014 के आम चुनावों के कुछ महीने बाद ही एनडीए छोड़ दी थी। इनके अलावा केरल की रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (बोलशेविक), आदिवासी नेता सी के जानू की जनाधिपत्य राष्ट्रीय सभा और महाराष्ट्र के स्वाभिमानी पक्ष ने भी मोदी सरकार को किसान विरोधी बताते हुए एनडीए छोड़ दिया था।

अभी भी भाजपा पर साथियों का साथ छोड़ने का संकट टला नहीं है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल का अपना दल भाजपा पर लगातार दबाव बनाए हुए है। राजभर ने तो भाजपा को अल्टीमेटम थमा रखा है। उधर, महाराष्ट्र में शिव सेना हरेक दिन भाजपा के खिलाफ सियासी तलवार भांज रही है। भाजपा-शिवसेना की दोस्ती भी खतरे में है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह खुद पार्टी सांसदों को अपने दम पर लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए कह चुके हैं। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को फिलहाल अमित शाह और नीतीश कुमार ने एनडीए में बचा लिया है लेकिन राजनीतिक जानकार कहते हैं कि लोजपा का संकट अभी टला नहीं है। मेघालय के सीएम कोनार्ड संगमा (नेशनल पीपुल्स पार्टी) भी भाजपा को आंख दिखा रहे हैं।

बहरहाल, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर न केवल 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने का दबाव बढ़ गया है बल्कि सहयोगी दलों को भी एकजुट रखने और एनडीए का दायरा बढ़ाने की भी जिम्मेदारी बढ़ गई है। इसी कड़ी में पीएम मोदी ने तमिलनाडु में नए साथी की तलाश की संभावनाओं को बल दिया है और कहा है कि उनकी पार्टी अटल बिहारी वाजपेयी की गठबंधन संस्कृति को आगे बढ़ाती रहेगी। यानी पीएम मोदी ने भविष्य में एआईएडीएमके के साथ दोस्ती का विकल्प खोल दिया है। बता दें कि एआईएडीएमके तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी है। जयललिता की अगुवाई में यह पार्टी एनडीए का हिस्सा रह चुकी है।