तौसीफ़ कुरैशी

दुनिया में अगर आए है तो जाना ही पड़ेगा जीवन है जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा यह एक गाने के वो बोल है जो हक़ीक़त बयान करते है सच को सच कहना आज के इस मुनाफिक दौर में कितना मुश्किल है यह तो हम सब जानते है पर अमल नही करते किसी की कोई मजबूरी होती है तो किसी की कुछ यह बात अपनी जगह है लेकिन अगर कोई सच बोलने की हिम्मत रखता है तो उसे हिक़ारत भरी नज़रों से देखा जाता है परन्तु जो सच बोलता है उसे हिक़ारत भरी नज़रों से देखने वालों से डर नही लगता बल्कि वही उस सच बोलने वाले का सामना करने से डरते है पीछे कहते है कि वह बहुत ख़राब इंसान है।हम जिस सूदखोर के मरने की बात कर रहे है उसने अपने ज़िन्दगी में बहुत लोगों को मामला कर लेने के बाद यह कहकर पीछे हट गया हाँ मैं अपनी बात से हट रहा हूँ सामने वाला इंसान यह सोचने पर मजबूर हो जाता था कि अब क्या किया जा सकता है सफ़ेद पोश इस सूदखोर की अपनी अलग पहचान बनी हुई थी किसी बड़े मौलाना के तुफैल से उन्हें सब अच्छा आदमी मानते थे ये वही मौलाना थे जिन्होंने इनको सूद लेने के लिए यह काम कराया इन्होंने देशभर के मौलानाओं को जमाकर इनके सूद लेने को जायज़ क़रार देने के लिए दबाव बनाया लेकिन इस मौलाना का दबाव भी मुफ़्तियों को मजबूर नही कर सका और बिना जायज़ क़रार दिए मुफ़्तियों की बैठक समाप्त हो गई थी।जायज़ क़रार नही देने के बाद भी उनके मरने तक सूद लेने का सिलसिला चलता रहा और इस सूदखोर ने मरने से पहले अपने बेटे को उस अदारे का मैनेजर बनाकर सब कुछ तय कर दिया था जिससे बाद में कोई वाद विवाद न हो यह बात अलग है कि उसके बाद भी कुछ हो जाए जिससे इंकार नही किया जा सकता है।एक बार का वाक़या है मैं खुद अपनी ज़रूरत को लेकर उनसे मिला अपनी ज़रूरत बतायी ज़ेवर गिरवी रख दिया गया लेकिन मैंने उनसे पैसे लेने से पहले यह बात कही कि मैं ज़ेवर रखकर जो पैसा लूँगा तो उसे वापिस करने पर आप जो पैसा अतिरिक्त (सूद) लेते हो मैं वह नही दूँगा अगर आपको मंज़ूर हो तो दो वरना न दो इसपर वह हँसते हुए बोले कि नही देना आप ले लो तो लिहाज़ा मेने पच्चीस हज़ार रू उधार ले लिए ज़ेवर गिरवी रख कर वैसे तो वहाँ सभी को ज़ेवर गिरवी रखकर ही सूद पर पैसा दिया जाता है यह बात अपनी जगह है।जब मैं लिए गए पच्चीस हज़ार को लौटाने गया तो मुझे हिसाब जुड़वाने के लिए कहा गया मेने हिसाब जुडवाया तो पता चला कि 35 हज़ार कुछ रूपये हो गए है मैं फिर उनके पास गया तो वह कहने लगे कि 35 कुछ रूपये ही जमा करने होगे मेने उनको अपने द्वारा कही गई बात व उनके द्वारा दी गई इसकी गारंटी देने की याद दिलाई कि आपने यह बात कही थी आपसे कोई अतिरिक्त (सूद) पैसा नही लिया जाएगा इस पर वो कहने लगे कि हाँ कहा था अब मैं अपनी बात से मुकर रहा हूँ तो मेने कहा कि ठीक है इंसान को इसी तरह पहचाना जाता और उस समय मेरे पास पैसे भी थे मुझे उसको झूठा और वादे से मुकरने का दोषी साबित करने में कोई परेशानी भी नही आई और मेने मय सूद के रक़म जमा कर दी।मैं एक बात कहकर उसके ऑफ़िस से बाहर निकला कि ज़िन्दगी में कभी आपसे बात नही करूँगा अल्लाह का शुक्र है मैं अपनी बात पर क़ायम रहा ।सूदखोर के जाने के बाद मुझे ख़्याल आया कि अब क्या होगा सबकुछ यही रह गया सुना है सूदखोर को इस्लाम में बहुत ग़लत माना गया लेकिन फिर भी सूद का कारोबार करते है अल्लाह हमें और सबको ग़लत कामों से बचाए रखे और सही रास्ते पर चलने की तौफीक़ फर्माए आमीन सुम्मा आमीन।