नई दिल्ली: अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने के प्रावधान वाले विधेयक पर असम के कुछ वर्गों की आशंकाओं और धार्मिक आधार पर नागरिकता दिये जाने के आरोपों को निराधार बताते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि असम की जनता की परंपराओं, संस्कृति को संरक्षित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है और हम इसके लिए प्रतिबद्ध हैं। सिंह ने संसद की संयुक्त समिति द्वारा यथाप्रतिवेदित नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पर सदन में हुई चर्चा के जवाब में यह बात कही। उनके जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया। कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया।

यह विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। इस विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।

गृह मंत्री ने कहा कि नागरिकता विधेयक के संबंध में गलतफहमी पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है और असम के कुछ भागों में आशंकाएं पैदा करने की कोशिश हो रही हैं। सिंह ने कहा, ‘‘इस विधेयक को लेकर तरह तरह की आशंकाएं, भ्रम पैदा करने की कोशिशें निर्मूल हैं, निराधार हैं। असम के लोगों की परंपराओं, संस्कृति को संरक्षित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है और हम इसके लिए प्रतिबद्ध हैं।’’ उन्होंने कहा कि यह गलतफहमी पैदा की जा रही है कि इस विधेयक का बोझ असम सहेगा। ऐसा नहीं है, पूरा देश इसे सहेगा। सरकार और पूरा देश असम की जनता के साथ खड़े हैं।

सिंह ने जोर दिया कि पाकिस्तान में राष्ट्र एवं समुदाय के स्तर पर अल्पसंख्यकों के साथ सुनियोजित तरीके से भेदभाव किया जाता है। उन्हें बुनियादी अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है। गृह मंत्री ने कहा कि ऐसे में इन लोगों के पास भारत में रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का जिक्र करते हुए कहा कि इसे उचित ढंग से लागू किया जा रहा है। इसके तहत शिकायत करने का प्रावधान किया गया है। हम प्रक्रिया पूरी करने को प्रतिबद्ध हैं। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा।

सिंह ने कहा कि 1947 में मजहब के आधार पर विभाजन नहीं होता तो अच्छा होता। अखंड भारत रहता। विडंबना रही कि धर्म के आधार पर विभाजन हुआ। भारत, पाकिस्तान सबको इस बात की चिंतस थी कि धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान की तत्कालीन सरकारों के बीच समझौतों के बावजूद पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को समान अधिकार नहीं मिल पाए।

सिंह ने कुछ सदस्यों के सवालों पर कहा कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। उसके लिए एक प्रोटोकॉल है। उन्हें दीर्घकालीन वीजा दिया जा सकता है। भारत में पाकिस्तान के लोगों को न केवल दीर्घकालीन वीजा देने के उदारहण हैं, बल्कि नागरिकता भी दी गयी। उन्होंने कहा, ‘‘धार्मिक आधार पर नागरिकता के आरोप निराधार हैं। बड़ी संख्या में बहुसंख्यक लोगों को भी भारत में नागरिकता मिलती रही है।’’

सिंह ने नागरिकता दिये जाने के समर्थन में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन नेता सुचेता कृपलानी के बयानों को भी उद्धृत किया। सिंह ने कहा कि भारत का जो भी मूल निवासी है भले ही वह ईसाई रहा हो अगर उसका पाकिस्तान आदि देशों में धार्मिक उत्पीड़न हो रहा हो तो उसे भारत की नागरिकता दी जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार बोडो समुदाय की मांगों के बारे में न केवल चिंता करती है बल्कि इसके लिये प्रतिबद्ध भी है।

वहीं, संसद की संयुक्त समिति द्वारा यथाप्रतिवेदित नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पर लोकसभा में चर्चा शुरू होने पर सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि इसमें कई कमियां हैं। इसे विचार के लिये प्रवर समिति के पास भेजा जाए। इसके बाद अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस की सुष्मिता देव का नाम चर्चा में हिस्सा लेने के लिये पुकारा। इस दौरान विधेयक को पेश किये जाने के विरोध में कांग्रेस सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया।

तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने कहा कि यह बांटने की प्रकृति वाला विधेयक है। इससे असम में अशांति फैल रही है। दिल्ली में गृह मंत्री को पता नहीं है लेकिन वह इस बारे में बताना चाहते हैं। केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के एस एस अहलूवालिया ने कहा कि बांग्लादेश, पश्चिमी पाकिस्तान से जो अपना घर छोड़ने पर मजबूर हुए हैं, उन देशों के अल्पसंख्यकों के लिये यह विधेयक लाया गया है। बीजद के बी महताब ने विधेयक के दायरे से बांग्लादेश को हटाये जाने की मांग करते हुए कहा कि जब श्रीलंका को इसमें शामिल नहीं किया गया है तो बांग्लादेश को क्यों शामिल किया गया है जहां से पूर्वोत्तर क्षेत्र में अवैध घुसपैठ में अपेक्षाकृत सुधार हुआ है।

शिवसेना के अरविंद सावंत ने कहा कि इस विधेयक के लागू होने के बाद इस समस्या का समाधान निकलना चाहिए। माकपा के मोहम्मद सलीम ने कहा कि यह विधेयक समस्या का समाधान नहीं है, इससे नयी समस्या पैदा होगी। असम में आज वही स्थिति देखने को मिल रही है। सपा के मुलायम सिंह यादव ने भी चर्चा में हिस्सा लिया। एआईयूडीएफ के बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि यह विधेयक वापस लिया जाना चाहिए क्योंकि यह संविधान और असम समझौते के खिलाफ है।एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि विधेयक को ‘संविधान के खिलाफ’ बताते हुए कहा कि सरकार को यह समझना चाहिए कि भारत इस्राइल नहीं है जहां धर्म के आधार पर नागरिकता दी जाए।

भाजपा की मीनाक्षी लेखी ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है तथा उनकी आबादी वहां घट गई, जबकि भारत में अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि 1947 के बाद से जिस तरह की राजनीति हो रही थी, उसकी वजह से पूर्वोत्तर में जनसंख्या का अनुपात बिगड़ गया जो देश के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने के खिलाफ है। भाजपा के सुनील कुमार सिंह, राजद से निष्कासित राजेश रंजन और राजद के जयप्रकाश नारायण यादव ने भी चर्चा में भाग लिया।