नई दिल्ली:सुरक्षा क्षेत्र की सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (एचएएल) इन दिनों आर्थिक परेशानियों में घिरी हुई है। स्थिति ये है कि कंपनी के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी फंड नहीं है। फिलहाल कंपनी को उधार लेकर अपने कर्मचारियों की तन्खवाह देनी पड़ रही है। कंपनी इस बात से भी चिंतित है कि उनके पास फिलहाल कोई काम नहीं है और बीते साल अप्रैल से कंपनी में कोई काम नहीं हुआ है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, एचएएल के पास बीते अक्टूबर में अपने 29,000 कर्मचारियों की 3 माह की सैलरी देने के ही पैसे बचे थे, जो कि करीब 1000 करोड़ रुपए थे। अब स्थिति और भी खराब हो गई है और कंपनी के पास अपने कर्मचारियों की सैलरी देने अन्य खर्चे पूरे करने और यहां तक कि अपने वेंडर्स को भुगतान करने के पैसे भी नहीं बचे हैं।

एचएएल के सीएमडी आर.माधवन ने बताया कि ‘हमारे पास नकदी खत्म हो चुकी है और हमने ओवरड्राफ्ट द्वारा 1000 करोड़ रुपए लिए हैं। 31 मार्च तक हमारे पास 6000 करोड़ रुपए की कमी हो जाएगी, जिससे परेशानी बढ़ेगी। हम फिलहाल अपने दिन-प्रतिदिन के खर्चे तो चला सकते हैं, लेकिन किसी प्रोजेक्ट के लिए खरीद नहीं कर सकते।’ बता दें कि एचएएल का भारतीय वायुसेना पर बड़ा बकाया बचा हुआ है। भारतीय वायुसेना ने बीते सितंबर, 2017 से एचएएल को कोई भुगतान नहीं किया है और बकाए की यह रकम करीब 14,500 करोड़ रुपए है। सुरक्षा बलों पर एचएएल के कुल बकाए की बात करें तो यह 15,700 करोड़ रुपए है। एचएएल के अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा बलों पर जो रकम बकाया है, उसके प्रोडक्ट और सर्विस डिलीवर हो चुकी है। इस बकाए में से 14500 करोड़ रुपए अकेले वायुसेना पर बकाया है, वहीं बची हुई रकम भारतीय सेना, नौसेना और कोस्ट गार्ड पर बकाया है।

एचएएल का बिजनेस अधिकांशतः मिनिस्टरी ऑफ डिफेंस पर निर्भर है, जो कि एचएएल को सुरक्षा बलों से संबंधित कामों की जिम्मेदारी देती है। एचएएल के सीएमडी का कहना है कि एचएएल हमेशा से ही पैसों के मामले में धनी रही है, लेकिन यह पहली बार है कि उन्हें पैसा उधार लेना पड़ा है। एचएएल का एक माह का खर्च करीब 1300-1400 करोड़ रुपए है, जिसमें से 358 करोड़ रुपए कर्मचारियों की सैलरी देने में खर्च होते हैं। एचएएल के पास पैसे की कमी के कारण उसके वेंडर्स, जो कि छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योग हैं, उन्हें भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल 2000 के करीब ये छोटे उद्योग अपनी आर्थिक स्थिति के लिए पूरी तरह से एचएएल पर निर्भर हैं। यदि एचएएल के सामने पैसों का संकट खड़ा होगा तो यकीनन इन छोटी बड़ी कंपनियों पर भी इसका असर पड़ना स्वभाविक है।