नई दिल्ली: रेमंड ग्रुप के पूर्व चेयरमैन विजयपत सिंघानिया ने अपने बेटे गौतम सिंघानिया को 3 साल पहले अपनी कंपनी का स्वामित्व सौंपा था. लेकिन आज वो अपने इस फैसले पर पछता रहे हैं क्योंकि जिस बेटे को उन्होंने अपना कारोबारी साम्राज्य सौंपा था आज उसी ने न सिर्फ उन्हें कंपनी से बल्कि अपने घर से भी निकाल दिया है.

विजयपत सिंघानिया ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है और 2007 में गिफ्ट की गई संपति को वापस पाना चाहते हैं. उनका आरोप है कि ग्रुप का मालिकाना हक पाते ही उनके बेटे ने धोखा देना शुरू कर दिया और उनसे ग्रुप के अवकाशप्राप्त चेयरमैन का तमगा भी छिन लिया.

विजयपत सिंघानिया ने 2015 में रेमंड ग्रुप का कंट्रोलिंग स्टेक (50 प्रतिशत से ज्यादा) अपने बेटे के नाम कर दिया. लेकिन उसके बाद उनके बेटे ने कंपनी पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के लिए उन्हें कंपनी से पूरी तरह दरकिनार कर दिया.

विजयपत सिंघानिया ने बहुत मेहनत से इस ग्रुप को खड़ा किया था. 80 साल पहले छोटे स्तर पर शुरू किया गया टेक्सटाइल बिज़नेस धीरे-धीरे हर घर तक पहुंच गया और देश में रेमंड एक प्रसिद्ध ब्रांड के रूप में पहचाने जाने लगा. विश्व स्तर पर रेमंड द्वारा बनाये जाने वाली कपड़ों की मांग बढ़ने लगी. टेक्सटाइल के अलावा सीमेंट, डेयरी और टेक्नोलॉजी सेक्टर में भी रेमंड का व्यापार चल रहा है.

विजयपत सिंघानिया ने 2007 के उस कानून के तहत अपने बेटे के खिलाफ कदम उठाने की सोच रहे हैं, जिसमें मूलभूत जरूरतें नहीं पूरा होने की स्थिति में अपने बेटे को उपहार में दिए गए संपति को वापस लिया जा सकता है. वो अपने बेटे को अपना बिज़नेस सौंपने के फैसले को मूर्खतापूर्ण बताते हैं.