लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।लोकसभा चुनाव हो या राज्यों के विधानसभा चुनाव हो ख़ासकर हिन्दी भाषी क्षेत्रों में 1989 से साम्प्रदायिक संगठन व इन्हीं की बी टीम सियासी पार्टी भाजपा देश की जनता को अयोध्या में राम मन्दिर बने इस मुद्दे पर बहुसंख्यक हिन्दूओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करती आई है राम मन्दिर के रथ पर सवार होकर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली भाजपा पीछे क्यों भाग रही है और साम्प्रदायिक संगठनों के रिमोट कंट्रोल आरएसएस खामौश या मजबूर क्यों है ? क्या आरएसएस ने यह महसूस कर लिया कि यह मुद्दा अब कारगर नही होने वाला है क्योंकि पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव से पूर्व इस मुद्दे को धध्काने की कोशिश की अयोध्या में धर्म संसद के बहाने लेकिन उसमें अपेक्षा के अनुरूप भीड़ न जुटना और पाँच में से तीन हिन्दी भाषी राज्यों में हार जाना कही न कही यह साबित करता है कि जनता अब ऐसे मुद्दों पर अपना वोट नही देने जा रही है उसको रोज़गार की विकास की किसान की बात ज़्यादा पसंद है ? जिस नरेन्द्र मोदी को साम्प्रदायिक शक्तियाँ यह सोच कर लाई थी कि नरेन्द्र मोदी हमारे जितने विवादित मुद्दे है उनको बड़ी आसानी से निपटा लेंगे लेकिन जिस तरह मोदी ने राम मन्दिर के मुद्दे से पल्ला झाड़ा उससे कई सवालों ने भी जन्म लिया। RSS ने जिस तरीक़े से सरकार को व देश की जनता को यह बताने की या समझाने की कोशिश की संघ 2019 के आमचुनाव से पहले राम मन्दिर निर्माण चाहता है उसके लिए सरकार को चाहे कुछ भी करना पड़े अध्यादेश लाए या कोर्ट से कुछ कराए या आपसी सहमति बनाए सरकार ने ऐसा कुछ नही किया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि राम मन्दिर बनेगा पर संविधान के दायरे में सरकार ऐसा कुछ नही करने जा रही जिसमें कुछ अलग से करना पड़े अब एक बात तो साफ हो गई कि दोनों में से कोई एक बहुसंख्यक वर्ग को मामू बना रहा है या दोनों की मिलीभगत है संघ की भी और नरेन्द्र मोदी की भी या संघ और नरेन्द्र मोदी के बीच में सबकुछ ठीक नही चल रहा जिसकी संभावना बहुत कम है कि नरेन्द्र मोदी और संघ के बीच में मतभेद है क्योंकि भाजपा में संघ की इतनी गहरी पकड़ है उसके शिकंजे से बाहर आना मुमकिन ही नही है लेकिन फिर भी सभी विषयों पर ग़ौर कर पड़ता है।संघ प्रमुख मोहन भागवत क्यों बार-बार यह कह कर सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे है कि राम मन्दिर के मुद्दे पर हिन्दू समाज के सब्र का बाँध टूट रहा है अब इंतज़ार नही किया जा सकता है सरकार को राम मन्दिर पर कानून बनाकर राम मन्दिर के निर्माण का रास्ता साफ करना चाहिए यह बात विजय दशमी पर कही थी यही बात संघ के नंबर 2 भैया जोशी ने कही विहिप ने तो सुप्रीम कोर्ट को भी कटघरे में खड़ा कर दिया था संघ के जानकार के नाम से प्रचारित किए गए इसी के चलते राज्यसभा तक पाने में सफल रहे राकेश सिन्हा ने भी कहा कि मैं प्राईवेट मेंबर बिल लेकर आऊँगा यह सब परिदृश्य देखने के बाद यह आकलन किया जाने लगा कि सरकार पर दबाव के बहाने संघ व उससे जुड़े लोग लोकसभा चुनाव 2019 के लिए माहौल बना रहे है और यह भी समझा जा रहा था कि पाँच राज्यों में हो रहे चुनावों में राम मन्दिर का तड़का लगाया जा रहा है लेकिन विधानसभा चुनावों के परिणामों ने संघ परिवार की सारी स्ट्रेटेजी को गहरा धक्का लगाया परिणाम विपरीत दिशा में बह गए जिसके बाद संघ व मोदी की भाजपा को अपनी स्ट्रेटेजी को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा। माना जा रहा है कि नागपुरिया आईडियोलोजी ने यही स्ट्रेटेजी बनाई है कि साम्प्रदायिक संगठन इसी तरह की बयान बाज़ी करते रहेंगे ताकि जो उनका साम्प्रदायिक वोटबैंक है उसमें निराशा पैदा न हो असल में बहुसंख्यक वर्ग में साम्प्रदायिक सोच रखने वाले इतनी संख्या में नही है कि उनकी पीठ पर सवार होकर सत्ता पर क़ाबिज़ हुआ जा सके यही वजह है संघ व भाजपा को अपने दोमुँहे आचरण पर ही चलना पड़ रहा है उसका पहले से ही यही चरित्र रहा है कि सामने से कुछ और पीछे से कुछ इसी दोमुँहे आचरण के चलते वह यहाँ तक पहुँच गई आजादी की लडाई में भी वह अंग्रेज़ों के साथ खड़ी थी उसका जन्म ही दोमुँहे आचरण के लिए हुआ ये कोई नई बात नही है।अब यह बात फैलायी जा रही है कि मोदी और संघ के बीच में मतभेद है जबकि यह तर्क किसी भी लिहाज़ से दिमाग़ में क्लिक नही करता है कि मोदी संघ की बात नही मान रहे जबकि एक नही सौ मोदी भी मिल जाए तब भी संघ की बात नही काट सकते यह इस लिए कहा जा रहा कि साम्प्रदायिक लोगों में यह संदेश जाए कि संघ तो चाहता है पर मोदी नही चाहते है बस और कुछ नही संघ के बयान वीर लगे है जनता में भ्रम पैदा करने में प्रधानमंत्री के प्रायोजित इंटरव्यू के बाद संघ के नंबर 2 भैया जोशी का कहना है कि हमने बहुसंख्यक लोगे के मन की बात सरकार तक पहुँचा दी अब यह सरकार तय करेगी कि वह उस पर अमल करती है या नही जब वह यह कह रहे थे तो उनकी फेश रिडिंग से बहुत कुछ पढ़ा जा सकता था क्योंकि उनके फेश पर वो रवानगी नही थी जैसे वह रामलीला के मैदान में लग रहे थे। क्या तीन हिन्दी भाषी राज्यों की हार से संघ और मोदी की भाजपा को यह एहसास हो चला है कि ज्जबाती मुद्दों के सहारे सत्ता वापिस नही मिलने जा रही है।