लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।सियासत भी एक ऐसा दर्पण है जिसमें सबकुछ साफ दिखाई देने लगता है लेकिन सियासत करने वाले भी अपनी हार आखिर तक नही मानते है अपनी शातिराना चालों से यह उम्मीद करते रहते है कि शायद अब रूख हवा का हमारे पक्ष में हो जाएगा यह बात अलग है कि जनता उनके द्वारा बुने गए मकड़जाल में न फँस जो दिशा उसने तय की हो उसी पर चलती रहे।2014 में जिस उम्मीदों से मोदी की भाजपा की सरकार बनाई थी कि रोज़गार के नए अवसर प्रदान किए जाएँगे विकास होगा भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी किसान की आमदनी दो गुना हो जाएगी इन्हीं उम्मीदों को लेकर देश की जनता ने बम्पर बहुमत दिया था कई राज्य तो ऐसे थे जहाँ की जनता ने राज्य की सभी सीटें मोदी की भाजपा की झोली में डाल दी थी चार राज्यों की 168 सीटों में से 132 सीटें मोदी की भाजपा को दी थी देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश जहाँ से 80 सीट आती है वहाँ की जनता ने मोदी की भाजपा को 71 सीटें दी और 2 सीट उसकी सहयोगी पार्टियों को दी यानी 73 सीट।झारखंड में 14 में से 13 सीट जीतने में कामयाब रही।अब बात करते है महाराष्ट्र की जहाँ से 48 सीटों में से मोदी की भाजपा व शिवसेना गठबंधन को 41 सीट मिली जिसमें 18 शिवसेना को और 23 मोदी की भाजपा को यानी यहाँ भी एक तरफ़ा जीत मिली।यही हाल गुजरात में भी रहा यहाँ 26 लोकसभा सीटें है सभी सीटें मोदी की भाजपा को मिली।अब बात करते है बदले-बदले हालातों की सबसे पहले यूपी यहाँ जितने भी उपचुनाव हुए सभी में मोदी की भाजपा के झूट के दर्पण को सच्चाई का दर्पण दिखाया गया और सभी उपचुनावों में मोदी की भाजपा हार गई यहाँ तक की उसके हिन्दू सम्राट योगी की सीट भी नही बची। यही हाल झारखंड में भी हुआ तीन उपचुनाव हुए तीनों में हार का सामना करना पड़ा मोदी की भाजपा को।महाराष्ट्र में भी तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में दो पर शर्मनाक हार हुई वही शिवसेना प्रमुख से भी सम्बंध अच्छे नही कह सकते वह भी कह रहे है कि चौकीदार चोर है राफ़ेल वाले मामले को लेकर रही बात गुजरात की वहाँ वह किसी तरह तिगडमी से उपचुनाव जीत गई हालात वहाँ भी बेहतर नही है कांग्रेस का पप्पू मोदी की भाजपा के गप्पू पर जिस तेज़ी ताबड तौड हमले कर रहा है और उनकी झूट की बुनियाद को हिला रहा है हर रोज़ एक दल भागने की धमकी दे रहा या भाग रहे है।जिस राहुल को मोदी व उनके चाणक्य अमित शाह अनाप सनाप भाषा का प्रयोग कर संभोधित करते थे आज वही राहुल जी कहने को विवश हो रहे है तो इसे क्या कहा जाएगा क्या ये बदले-बदले हालात की और इसारा नही कर रहे ख़ैर यह तो समय आने पर पता चलेगा कि इस बदलाव की आँधी में कौन-कौन रूकावटें पैदा करता है यह भी जनता बड़ी गंभीरता से देख रही है।
मृतको में एक ही परिवार की दो सगी बहने, परिजनो में मचा कोहरामएसडीएम-सीओ समेत पुलिस…
बाइक सवार मित्रों को गांव से घसीटते हुए एक किलो मीटर दूर ले गई,सहमे लोग…
मुंबईएचडीएफसी बैंक के मोबाइल ऐप पेज़ैप (PayZapp) को 'सेलेंट मॉडल बैंक' अवार्ड मिला है। एचडीएफसी…
-कम सैलरी में पत्रकारों का 24 घंटे काम करना सराहनीयः पवन सिंह चौहान -यूपी वर्किंग…
(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा) हम तो पहले ही कह रहे थे, ये इंडिया वाले क्या…
(अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर विशेष आलेख : संजय पराते) आजादी के आंदोलन में ट्रेड यूनियनों…