अदबी नशिस्तें ही उर्दू ज़बान को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं: डॉक्टर वज़ाहत रिज़वी

साहित्य और संस्कृति समाज को जोड़ते हैं: प्रतुल जोशी

दबिस्ताने अहले क़लम के तत्वाधान काकोरी में शानदार तरही मुशायरे का आयोजन

लखनऊ: अदबी नशिस्तें ही उर्दू ज़बान को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं वर्ना विश्वविद्यालयों में तो केवल कारोबार होता हैं। बड़े बड़े सेमिनारों में, लेखक बड़े परिश्रम से लेख तैयार करता है, और श्रोता महत्वपूर्ण विषयों के बारे में सुनने और सीखने के उद्देश्य से आते हैं, सेमिनार में लेखक को कहा जाता है कि आप आरम्भ और अंत का भाग पढ़ दीजिये । यह श्रोता और लेखक दोनों का अपमान और शोषण है। फिर इन सेमिनारों में उन्हें ही आमंत्रित किया जाता है जो उन्हें अपने यहाँ आमंत्रित करते हैं । इस प्रकार, उर्दू के नाम पर एक खेल है जो खेला जा रहा है। यह बातें दबिस्तान अहले क़लम के तत्वाधान संस्था के अध्यक्ष डॉक्टर मख्मूर काकोरवी के निवास पर आयोजित तरही मुशायरे में सूचना विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने कहीं |

मुशायरे की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने सभी शायरों की रचनाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि इन संगोष्ठियों और मुशायरों का एक फायदा यह भी है कि इसमें नई रचनाये सुनने को मिलती हैं । उन्होंने उर्दू अखबार और उर्दू पत्रिकाओं को खरीदने पर ज़ोर देते हुए कहा कि जब आप स्टाल वाले या हाकर से उर्दू अख़बार और उर्दू की पत्रिकाएं को माँगना शुरू करेंगे तो उसे उर्दू पत्रिकाओं और समाचार पत्रों को रखने के लिए मजबूर होना पड़ेगा । मशायरे में विशिष्ट अतिथि के रूप उपस्थित आकाशवाणी उर्दू विभाग के श्री प्रतुल जोशी ने कहा कि साहित्य और संस्कृति समाज को जोड़ते हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास मानव विकास नहीं है। संभव है कि जो व्यक्ति महंगी कार में सफर कर रहा हो वह भीतर से खोखला हो । यह साहित्य ही है जो मनुष्यों को अध्यात्म की शक्ति प्रदान करता है और इंसान को इंसान से जोड़ता है । उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आज का मिसरा पाकिस्तान के शायर अहमद जावेद था | उन्हें जानकारी भी नहीं होगी कि उनके मिसरे पर काकोरी में इतना महत्वपूर्ण मुशायरा हो रहा है | इसी तरह कल किसी और क़स्बे में, गाँव में और शहर में इसी प्रकार के कार्यक्रम हों |

इससे पूर्व मुशायरे का शुभारम्भ आसिम काकोरवी ने पवित्र कुरान के पाठ से किया जबकि खलील अख्तर शब्बू ने डॉ मख्मूर काकरोवी की नात पेश की ।शारिब कौसर अल्वी ने ग़ज़ल के मिसरे पर नात पेश की । इसके बाद पाकिस्तान के शायर अहमद जावेद के मिसरे 'लंगर से रोटी लेते हैं , पानी सबील से ।पर डॉ हारून रशीद के सञ्चालन में मुशायरे की औपचारिक शुरुआत हुई जिसके चुनिंदा शेअर प्रस्तुत हैं —

अब बूढी दादी के भी लबों पर नहीं रहे

वह पहले जैसे रात के क़िस्से तवील से

शारिक लाहरपूरी

मुंसिफ मिज़ाज शख्स अगर हुक्मरां न हो

इन्साफ ख़ाक होगा सबूतों दलील से

उससे नवाज़िशों की तवक़्क़ो फ़िज़ूल है

हक़ भी न मिल रहा हो जहाँ जिस ज़लील से

मख्मूर काकोरवी

शब् में नमूद सुबह की ख्वाहिश ख़याल खाम

इन्साफ की उम्मीद और इक बेअदील से

इरफ़ान जंगी पूरी

उसकी हयात प्यास का उन्वान बन गयी

निस्बत है जिसको ख़ास अता सलसबील से

क्यों एतमाद इतना है सामाने जंग का

क्या दर्स कुछ मिला नहीं असहाबे फेअल से

डॉटर हारुन रशीद

दो चार लफ्ज़ शेअर में रखके सक़ील से

और शूर कर दिया कि हैं शायर असील से

अच्छे दिन आ गए हैं तो क्यों लोग आजभी

लंगर से रोटी लेते हैं पानी सबील से

सिराजुद्दीन सैफ़

हम हैं सुख़नवराने अदब के क़बील से

बाहर नहीं गए कभी अपने फ़सील से

मुईद रहबर

वो भो गदागरों की सफ़ों में खड़े मिले

जो लोग लग रहे थे बड़े खुदकफील से

डॉक्टर जुबेर सिद्दीक़ी

हमसे फ़क़ीरे इश्क़ भी सदक़े में आपके

लंगर से रोटी लेते हैं पानी सबील से

शारिक कौसर अल्वी

मेरी पतंग ज़द पे मुख़ालिफ़ हवा के थी

तेरी पतंग कट गयी थोड़ी सी ढील से

मंज़र मलीहाबादी

कितने ही सिर कटे हैं तअस्सुब की रेल से

यह हादसे हुए हैं निगह्बां की ढील से

आज़म सिद्दीक़ी

किस किसको आईने में दिखाता फिरूं भला

क्या काम सारे बनते हैं हुस्ने जमील से

शम्स आसीनवी

अबतक तो मेरे दर्द का दरमाँ नहीं हुआ

मैं भी मरीज़ इश्क़ हूँ उम्रे तवील से

अरशद तालिब लखनवी

छोटा तो हूँ ज़रूर प कमतर न जानिये

पंक्चर तो गाड़ी होती है छोटी सी कील से

आसिम काकोरवी

इस अवसर पर विशेष रूप से अनवर हबीब अलवी, जमाल अहमद, अब्दुल रहीम, राजीव प्रकाश साहिर , शफ़ीक़ अहमद, मुहम्मद तारिक, मुजीब अहमद, शहाब अहमद, ओवैस अहमद, मोहम्मद साकिब, मोहम्मद अकीब, और जिया अहमद आदि उपस्थित थे। अंत में दबिस्ताने अहले क़लम के जनरल सेक्रेटरी, मोइद रहबर ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद अदा किया।