-आशीष वशिष्ठ-

जैसे-जैसे 2019 के आम चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे देश में नकारात्मक राजनीति की हवाएं तेजी से बहने लगी हैं। वर्तमान में भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में सड़क से लेकर संसद तक नकारात्मक राजनीति ही दिखाई दे रही है। पिछले दिनों पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों ने नकारात्क राजनीति को ईंधन उपलब्ध कराने का काम बखूबी किया है। हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली सफलता के बाद से नकारात्मक राजनीति की हवाएं ज्यादा तेजी से चलने लगी हैं। विपक्ष देश में ऐसा नकारात्मक माहौल बनाने में जुट गया मानो देश में आपातकाल जैसे हालात हैं। देश में राजनीतिक विरोध इतना नकारात्मक हो चुका है कि सांविधानिक संस्थाओं से जुड़े प्रत्येक मुद्दे को, जिस पर कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है, नजर अंदाज कर उसे सामाजिक तनाव के रूप में परिणत कर सरकार पर थोपने की नकारात्मक राजनीति विपक्ष द्वारा की जा रही है।

अकले कुछ ही महीनों में देश में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में विपक्ष ने लामबंद होने के साथ ही साथ मोदी सरकार को घेरने के लिये संसद से सड़क तक नकारात्मक राजनीति करने के लिये कमर कस ली है। पिछले साढ़े चार साल के कार्यकाल में मोदी सरकार ने देश में तेजी से पनप रहे भ्रष्टाचार के खात्मे और आर्थिक सुधारों की दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं जिसमें से नोटबन्दी और जीएसटी पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। मोदी सरकार इन कदमों को भ्रष्टाचार खत्म करने की दिशा में सबसे बड़ा कदम मानती है लेकिन दूसरी तरफ विपक्ष इन्हें सरकार की सबसे बड़ी विफलता साबित करने में लगा हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन निर्णयों से जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ा है और यही वजह है कि विपक्ष इन निर्णयों के सहारे सरकार पर हावी होने की कोशिश कर रहा है। असल में मोदी सरकार की प्रशंसा इस आधार पर होनी चाहिये कि हमेशा चुनावी मूड में रहने वाले देश में लम्बी अवधि में असर दिखाने वाले जीएसटी, नोटबन्दी और आधारभूत ढांचे में सुधार जैसे फैसले लेने की हिम्मत उसने दिखाई है।

एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष ने अपने झूठ व दुष्प्रचार से ऐसा माहौल बनाया कि मोदी सरकार आरक्षण खत्म करने जा रही है। जिससे देश में तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी। विपक्ष की नकारात्मक राजनीति व प्रचार के चलते देशभर में दलित संगठन लामबंद होकर आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े। दलित वोट बैंक को साधने की नीयत से मोदी सरकार ने अध्यादेश लाकर पूर्वस्थिति कायम कर दी। वास्तव में मोदी सरकार को एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों की बाबत देश की जनता को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये थी, लेकिन विपक्ष की नकारात्मक राजनीति से घबराई मोदी सरकार ने जो कदम उठाया उससे सुप्रीम कोर्ट का मानमर्दन तो हुआ ही वहीं देश में तनाव, भय, भ्रम व असुरक्षा का माहौल कायम हुआ।

हाल ही में राफेल विमान सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद भी कांग्रेस मोदी सरकार पर हमलावर मुद्रा में है। सवाल यह है कि अगर कांग्रेस के पास राफेल डील में भ्रष्टाचार से जुड़े दस्तावेज हैं तो वो सुप्रीम कोर्ट में पार्टी क्यों नहीं बनीं। लेकिन कांग्रेस को कोर्ट की बजाय सड़क से संसद तक राफेल-राफेल चिल्लाने में सियासी नफा दिखाई दे रहा है। वो अलग बात है कि जो आरोप राहुल गंाधी व कांग्रेस के नेता लगा रहे है उससे जुड़ा एक भी दस्तावेज वो आज तक सार्वजनिक नहीं कर पाये हैं। संसद में भी राफेल का शोर थमने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार राफेल मुद्दे पर संसद में चर्चा का तैयार है लेकिन कांग्रेस जेपीसी की मांग पर अड़ी है। असल में कांग्रेस रणनीति के तहत राफेल के मुद्दे को झगड़े की बजाय रगड़ा बनाने में जुटी है। तीन राज्यों में जीत ने उसके हौसलों को बुलंद कर रखा है।

जब देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू में देश-विरोधी नारे गूंजेे, तब विपक्ष के नेताओं द्वारा छात्रों को समझाने की जरूरत थी कि नारे देशहित में लगाने चाहिए, पर वे देश-विरोधी नारे लगने को ही सरकार की विफलता के रूप में प्रचारित करने लगे। राहुल गांधी से लेकर विपक्ष के तमाम नेताओं ने देश विरोधी विचारधारा का साथ दिया बल्कि इस आग को और भड़काने के लिये घी और लकड़ी का इंतजाम भी किया। जब कुछ लेखकों ने सोची-समझी रणनीति के तहत पुरस्कार वापसी का अभियान चलाया, तब विपक्ष को सकारात्मक भूमिका निभाते हुए आगे आकर कहना चाहिए था, पर विपक्ष ने उसे भी सामाजिक तनाव का विषय बना दिया। अभिनेता शाहरूख खान, आमिर खान को देश के हालात डरावने लगने लगे थे। ताजा घटनाक्रम में अभिनेता नसीरूद्दीन शाह ने देश के वर्तमान माहौल पर सवाल उठाये हैं। विपक्ष ऐसे तमाम मुद्दों पर मौन साधे रहता है। असल में ये बयानबाजी, अवार्ड वापसी, देशविरोधी नारे विपक्ष द्वारा प्रायोजित उस दुष्प्रचार व प्रोपेगंडा का हिस्सा है जिसका मकसद मोदी सरकार को बदनाम करना और देश में भय और भ्रम का माहौल बनाना है। सत्ता की हवस में विपक्ष की राजनीति परले दर्जे तक नकारात्मक हो चुकी है। राहुल गांधी ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स की उपमा दी थी। क्या राहुल नहीं जानते हैं कि जीएसटी कांग्रेस का ही विचार है और मनमोहन सिंह चाहते थे कि जीएसटी लागू किया जाये लेकिन इसके लिये वो हिम्मत नहीं जुटा पाये। दुनियां के सैंकड़ों देश जीएसटी को अपना चुके हैं और बाकी बचे देश भी देर सवेर इसे अपने यहां लागू कर ही देंगे क्योंकि इसका मकसद ही है कि विभिन्न करों को समाप्त करके पूरे देश में एक कर लगाया जाये और जो लोग कर चोरी कर रहे हैं उन्हें किसी भी प्रकार कर के दायरे में लाया जाये। क्या केंद्र में कांग्रेस की सरकार आने के बाद राहुल गांधी जीएसटी को हटाकर पूर्वस्थिति कायम करेंगे?

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान ही किसानों का बड़ा जमावड़ा दिल्ली में हुआ था। इस जमावड़े का मकसद मोदी सरकार को किसान विरोधी साबित करना था। किसानों के मंच पर चढ़कर विपक्ष के नेताओं ने फोटो खिंचवाने के अलावा किसानों के लिये कुछ नहीं किया। विधानसभा चुनाव के दौरान हजारों किसानों का दिल्ली में जमावड़े के टाइमिंग कई सवाल पैदा करती है। राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान सरकार बनने पर दस दिनों में किसानों से कर्जमाफी का वादा किया था। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों प्रदेशों के कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने वादे का पूरा कर दिया है। लेकिन इस सारी सियासत के बीच एक बड़ा व अहम सवाल यह है कि क्या कर्जमाफी किसानी व खेती का रामबाण इलाज है ? राहुल गांधी अपने भाषणों व बयानबाजी में किसानों की सारी समस्याओं का एकमात्र हल कर्जमाफी मानते हैं। उन्हें लगता है कि कर्जमाफी से किसान आत्महत्या करना बन्द कर देंगे जबकि सच्चाई यह है कि जहां-जहां कर्जमाफी की गई है वहां केवल कुछ दिनों के लिये ही आत्महत्याएं कम हुई है लेकिन कुछ ही समय पश्चात उनमें दोबारा और तेजी आई है। किसानों की समस्याएं बेहद जटिल हैं। उनसे निबटने में सालों लगने वाले हैं क्योंकि इन्हें पैदा होने में भी सालों लगे हैं।

आजादी के सात दशकों में साधनों व संसाधानों का असंतुलित बंटवारे ने इण्डिया और भारत की खाई को और चैड़ा किया है। वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या विकास की नहीं, साधनों के समान बंटवारे की है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी सरकार ने इसका ध्यान रखा है कि साधनों का बंटवारा अंतिम व्यक्ति तक समान रूप से हो। बिजली के लिए सौभाग्य योजना, चिकित्सा के लिए इंद्रधनुष योजना, आर्थिक सशक्तिकरण के लिए जन-धन योजना, सरकारी सहायता में भ्रष्टाचार रोकने के लिए आधार’ योजना-साधनों के समान वितरण हेतु ऐसी बहुत-सी योजनाएं इस सरकार द्वारा लागू की गई हैं। अनेक कर के बजाय एक कर हो, इसके लिए जीएसटी लाया गया। पर इन मुद्दों पर विपक्ष की तरफ से कभी कोई तार्किक चर्चा प्रस्तुत नहीं की गई। विपक्ष ने उन्हीं विषयों को मुद्दा बनाया, जो समाज में तनाव पैदा करते हों। विपक्ष जनता की परेशानियों को समझता है तो उसे इन परेशानियों को दूर करने में सरकार की मदद करनी चाहिये लेकिन विपक्ष अपनी अलग ही ढपली बजाने और भ्रम फैलाने में जुटा हुआ है। राफेल पर कांग्रेस के दुष्प्रचार के अलावा मोदी सरकार के दामन पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं है। कांग्रेस व विपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि पांच तीन राज्यों में भाजपा ने सत्ता जरूर गंवाई है, लेकिन उसका वोट प्रतिशत गिरा नहीं है। मध्य प्रदेश में मुकाबला लगभग बराबरी पर ही छूटा है।

फिलवक्त विपक्ष नकारात्मक राजनीति पर उतारू है। जबकि आज देश के सामने स्वास्थ्य, शिक्षा, खेती-किसानी, उद्योग, रोजगार एवं विकास के तमाम मोर्चाांे पर चुनौतियों का पहाड़ है। विपक्ष को सरकार की नीतियों के खिलाफ अपने कार्यक्रम को लाना चाहिये। उसे बताना चाहिये कि सरकार कहां गलत कर रही है और क्या करना चाहिये लेकिन विपक्ष तो सिर्फ गलतियां निकालने में लगा हुआ है। सरकार को विकास के मुद्दे पर घेरने की बजाय विपक्ष गैर-जरूरी मुद्दों पर ऊर्जा खपा रहा है। वहीं वो बड़ी चालाकी से देश की जनता के सामने अपना विकास का एजेण्डा भी पेश करने से बच रहा है। लोकतंत्र में विपक्ष का हक है कि वो सरकार की गलतियों के लिये उस पर निशाना लगाये लेकिन देशहित में उठाये गये कदमों पर नुक्तचीनी करना ठीक नहीं है। विपक्ष को नकारात्मक राजनीति छोड़कर अपने एजेंडे के साथ जनता के पास जाना चाहिये। आखिरकर लोकतंत्र में जनता ही असली मालिक है। विपक्ष की नकारात्मक राजनीति स्वयं उसके लिये आने वाले समय में मुसीबत साबित हो सकती है।


-आशीष वशिष्ठ
स्वतंत्र पत्रकार
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