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बुलंदशहर हिंसा: नेताओं की फैलाई नफरत ने ली मेरे पिता की जान

दिवंगत इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के बेटे ने धार्मिक उन्मादता पर उठाये सवाल

बुलंदशहर : भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, कोई धर्म नहीं होता। पर अक्‍सर यह भीड़ धार्मिक उन्‍माद में बेकाबू हो जाती है और सही-गलत सब भूल जाती है। यूपी के बुलंदशहर में भी सोमवार को वही हुआ, जब उन्‍मादी भीड़ ने एक पुलिस कर्मचारी की हत्‍या कर दी। भीड़ महाव गांव के वन क्षेत्र में कथित तौर पर गायों के अवशेष मिलने पर उन्‍मादी हो गई थी। धार्मिक उन्‍माद इस कदर उनके सिर चढ़कर बोल रहा था कि वे भूल गए कि उनका यह उन्‍माद किसी का घर उजाड़ देगा, किसी पत्‍नी को विधवा बना देगा, बच्‍चे के सिर से पिता का साया उठा देगा।

देशभर में विगत कुछ वर्षों में दो खास समुदायों के बीच गहराती खाई वास्‍तव में सिर्फ इंसानों को लील रही है और अब दिवंगत पुलिसकर्मी के बेटे ने भी इसे लेकर सवाल उठाए हैं। भीड़ के धार्मिक उन्‍माद का शिकार हुए पुलिसकर्मी सुबोध कुमार के बेटे अभिषेक अपने पिता की इस तरह से हुई मौत के लिए उस नफरत को जिम्‍मेदार मानते हैं, जिसे समय-समय पर समाज में हमारे नेताओं ने अपनी बेतुकी बयानबाजियों से बढ़ावा दिया। इस हिंसा के बाद अभिषेक का एक ही सवाल है, 'आज मेरे पिता की जान गई, कल किसकी जाएगी, किसके सिर से उठेगा पिता का साया?'

अभिषेक 12वीं के छात्र हैं, पर उनकी गहरी सोच बताती है कि प‍िता ने उनमें किस तरह की सोच विकसित की और कैसे उनकी परवरिश की। पिता की मौत के बाद अभिषेक की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। गहरे दुख और पीड़ा के साथ वह कहते हैं, 'मेरे पिता चाहते थे कि उनके बच्‍चे अच्‍छे नागरिक बनें, ऐसे नागरिक, जो धर्म को लेकर किसी तरह का पक्षपातपूर्ण रवैया न रखता हो और न ही इसके नाम पर समाज में हिंसा न फैलाए। उनका मानना था कि सभी नागरिक समान हैं और उन्‍हें एकजुट रहना चाहिए। उन्‍होंने यही सीख हमें भी दी।'

हालांकि किसी ने शायद ही सोचा होगा कि सामाजिक व सांप्रदायिक सौहार्द की सीख देने वाला शख्‍स एक दिन इसी हिंसा की भेंट चढ़ जाएगा। मौजूदा हालात के बीच अभिषेक का यह सवाल हमारे राजनेताओं से लेकर समाज के अन्‍य लोगों के लिए एक सबक भी है, जिसमें वह कहते हैं, 'आज हिन्‍दू-मुस्लिम विवाद में मेरे पिता की जान गई, कल किसके पिता की जान जाएगी?'

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