नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार चाहती है कि देश के चार सरकारी बैंकों पर बेसल-3 (Basel-III) मानकों के दिशा-निर्देश लागू हो जाएं। सरकार ने इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से दरख्वास्त भी की थी। मगर सोमवार (19 नवंबर) को आरबीआई ने अपनी केंद्रीय बोर्ड बैठक में सरकार के अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया। बता दें कि बेसल-3, बैंकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियामक तंत्र है। केंद्र का इन मानकों को लेकर कहना है कि आरबीआई को बैंकों में पूंजी पर्याप्तता के हालिया सख्त दिशा-निर्देशों की जगह पर बेसल-3 से संबंधित पूंजी पर्याप्तता के नियम लागू करने चाहिए।
आरबीआई ने मौजूदा दौर में जो नियम रखे हैं, वे बेसल-3 से भिन्न हैं। ऐसे में बैंकों को कर्ज के समक्ष अधिक पूंजी को अलग रखना पड़ता है। आरबीआई निर्देशानुसार, देश के बैंकों को साझा इक्विटी टियर-1 को 5.5 फीसदी रखना पड़ा है, जबकि बेसल-3 में यह आंकड़ा 4.5 होना चाहिए। इससे पहले, आरबीआई बोर्ड ने सोमवार को बेसल-3 नियम पर अमल के लिए बैंकों को एक साल का वक्त दिया था। इस कदम से बैंकों को पूंजीगत लाभ की उम्मीद है।
आरबीआई का बोर्ड ऑफ फाइनैंशियल सुपरविजन (बीएफएस) इसके अलावा अब सरकार के उस प्रस्ताव पर विचार करेगा, जिसमें प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) तंत्र का जिक्र है। आरबीआई इसकी समीक्षा दो अतिरिक्त पैमानों के आधार पर करेगा, जो कि संपत्तियों के रिटर्न के रूप में होंगी। इन पैमानों में नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) और प्रॉफिटेबिलिटी शामिल हैं। गौरतलब है कि पीसीए के तहत आने वाले बैंकों के ऋण देने पर सख्ती बरती जाती है।
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