नई दिल्ली: पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने रविवार को आरोप लगाया कि वित्तीय दिक्कतों से जूझ रही नरेंद्र मोदी सरकार चुनावी बेला में खुले हाथों से धन खर्चने के लिये भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का आरक्षित कोष हड़पना चाहती है. चिदंबरम ने इंदौर प्रेस क्लब में "प्रेस से मिलिये" कार्यक्रम में कहा, "नोटबंदी के मामले में नाकाम होने के बाद सरकार की अब आरबीआई के आरक्षित कोष पर नजर है. अगले लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिये सरकार के पास प्रभावी तौर पर अब केवल चार महीने बचे हैं." पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, "सरकार को पिछले साढ़े चार साल के दौरान आरबीआई से कोई समस्या नहीं थी. लेकिन अब उसे आरबीआई से दिक्कत हो रही है क्योंकि चुनावी बेला में वह खुले हाथों से धन खर्च करना चाहती है." उन्होंने कहा, "फिलहाल सरकार धन पाने के लिये बेचैन है, क्योंकि उसका कर राजस्व घटा है जबकि वित्तीय घाटा बढ़ रहा है." चिदम्बरम ने कहा कि चूंकि आरबीआई अपने सारे वित्तीय फायदों को सरकार को पहले ही स्थानांतरित कर रहा है. लिहाजा सरकार के पास कोई कारण नहीं है कि वह आरबीआई को लेकर कोई शिकायत करे. उन्होंने कहा, "लेकिन यह सरकार लालची है. अब वह आरबीआई का आरक्षित कोष भी हड़पना चाहती है." चिदम्बरम ने आरोप लगाया कि सरकार आरबीआई अधिनियम की धारा-सात के इस्तेमाल की धमकी देकर केंद्रीय बैंक को उसके आगे घुटने टेकने को मजबूर कर रही है.

आरबीआई के संचालक मंडल की 19 नवंबर को होने वाली अहम बैठक के बारे में पूछे गये सवाल पर पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, "अगर सरकार आरबीआई संचालक मंडल के सदस्यों पर दबाव डालकर इस बैठक के दौरान अपने पक्ष में कोई प्रस्ताव पारित करा लेती है, तो केंद्रीय बैंक के गवर्नर (उर्जित पटेल) के पास केवल दो विकल्प होंगे. पहला यह कि वह इस प्रस्ताव को अमली जामा पहनाते हुए सरकार को (वांछित) धन स्थानांतरित करें या अपने पद से इस्तीफा दे दें. मैं पूरी दृढ़ता से कह सकता हूं कि इन दोनों में से कोई भी स्थिति विनाशकारी होगी."

उन्होंने कहा, "हालांकि, मैं उम्मीद करता हूं कि सरकार को सद्दबुद्धि आयेगी और वह आरबीआई संचालक मंडल पर अपने पक्ष में कोई प्रस्ताव पारित करने के लिये दबाव नहीं डालेगी." चिदम्बरम ने कहा, "आरबीआई एक केंद्रीय बैंक है. यह कोई प्राईवेट लिमिटेड कंपनी या पब्लिक लिमिटेड कम्पनी नहीं है. इसके साथ किसी संचालक मंडल प्रबंधित कम्पनी की तरह बर्ताव नहीं किया जा सकता. आरबीआई की सारी शक्तियां और परिचालन संबंधी तमाम अधिकार केवल इसके गवर्नर में निहित हैं." उन्होंने कहा, "पिछले 70 साल में पहली बार कोई सरकार कह रही है कि आरबीआई गर्वनर इसके संचालक मंडल का कर्मचारी है." विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे भगोड़े उद्योगपतियों को पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के राज में बड़े कर्ज दिये जाने को लेकर भाजपा के आरोपों पर पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, "वर्ष 2014 से पहले दिये गये ऋणों की वर्तमान स्थिति और वर्ष 2014 के बाद बांटे गये ऋणों के डूबत कर्ज (एनपीए) में तब्दील हो जाने के बारे में मेरे द्वारा संसद में उठाये गये सवालों का मौजूदा सरकार ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है."

उन्होंने कहा, "पूर्ववर्ती अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में भी कुछ कर्ज एनपीए में बदल गये थे और बाद की सरकारें इस स्थिति से निपटती रही थीं. लेकिन मोदी सरकार एनपीए के संकट से निपटने में अक्षम है." चिदंबरम ने कहा, "सूचनाओं के मुताबिक, आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर बताया था कि एनपीए के बड़े मामलों में कुछ लोग बैंकिंग धोखाधड़ी को अंजाम दे सकते हैं. सरकार ने इस पत्र को अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किया है? हम जानना चाहते हैं कि इस पत्र में किन लोगों के नाम थे?" पूर्व वित्त मंत्री ने नोटबंदी और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की कथित विसंगतियों को लेकर भी नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला किया. उन्होंने कहा, "नोटबंदी से देश के आर्थिक परिदृश्य में समस्याओं की शुरूआत हुई थी. त्रुटिपूर्ण जीएसटी ने इन समस्याओं को और विकराल कर दिया है. मैं इस बात को लेकर चिंतित हूं कि बढ़ती बेरोजगारी के कारण देश किसी ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है."