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ठग्‍स ऑफ हिंदोस्‍तान: ऊंची दूकान फीका पकवान

मिस्‍टर परफेक्‍शन‍िस्‍ट आमिर खान की फिल्म ठग्‍स ऑफ हिंदोस्‍तान से दर्शकों को बहुत उम्‍मीद थी। फ‍िल्‍म का ट्रेलर खासा इंप्रेस‍िव था जिसके आधार पर ठग्‍स ऑफ हिंदोस्‍तान को पहले द‍िन अच्‍छी ओपन‍िंग मिली। गौरतलब है क‍ि दीवाली की अगली सुबह होने के बावजूद मॉर्न‍िंग शोज में दर्शकों की खासी भीड़ थी।

लेक‍िन पहले शो के खत्‍म होने के बाद ही ठग्‍स ऑफ हिंदोस्‍तान के रिव्‍यू सामने आने लगे और ये यशराज जैसे बड़े बैनर के अलावा अमिताभ बच्‍चन, आमिर खान, कैटरीना कैफ और फातिमा सना शेख के लिए निराश होने की बात ही है कि फ‍िल्‍म को नेगेटिव रिव्‍यूज मिल रहे हैं। फ‍िल्‍म के म्‍यूज‍िक से तो दर्शक पहले से ही निराश थे लेकिन पूरी फ‍िल्‍म सामने आई तो ऊंची दुकान फीका पकवान के मुहावरे को ही सच साबित कर रही है।

ठग्‍स ऑफ हिंदोस्‍तान में डायरेक्‍टर विजय कृष्‍ण आचार्य ने बुरी तरह निराश किया है। इससे पहले वह आमिर खान और कैटरीना कैफ को धूम 3 में डायरेक्‍ट कर चुके हैं। धूम 3 ने जोरदार कमाई तो की थी लेकिन विजय के काम को तब भी ज्‍यादा सराहा नहीं गया था। फ‍िल्‍म में देशभक्‍त‍ि जैसा जबदरदस्‍त इमोशन था लेकिन अफसोस क‍ि ठग्‍स ऑफ हिंदोस्‍तान के साथ इस मामले में इक्‍वेशन बैठ नहीं पाती। लगता है कि इतने समय में वह अभी अपनी गलतियों से सीख नहीं पाए हैं।
ठग्‍स ऑफ हिंदोस्‍तान का जब ट्रेलर सामने आया था तो आमिर खान और अमिताभ बच्‍चन के पहली बार स्‍क्रीन स्‍पेस शेयर करने के अलावा पानी के जहाजों ने भी दर्शकों का ध्‍यान खींचा था। इसके बाद से फ‍िल्‍म की तुलना हॉलीवुड की मशहूर सीरीज पाइरेट्स ऑफ कैर‍िबियन से होने लगी थी। लेकिन फ‍िल्‍म में इसी अट्रैक्‍शन पर ज्‍यादा फोकस नहीं हुआ।

ठग्‍स ऑफ हिंदोस्‍तान जैसी फ‍िल्‍म के ल‍िए बेहद जरूरी है क‍ि वो ग्राफ‍िक्‍स और वीएफएक्‍स के मामले में खरी उतरे। लेकिन इस पहलू पर फ‍िल्‍म बहुत निराश करती है। फ‍िल्‍म में कई एक्‍शन सीन दिखाए गए हैं जिन पर अगर और मेहनत की जाती तो वे बेहद प्रभावी बनते। मगर ये बहुत हल्‍के रह गए हैं और साथ ही पुराने भी लगते हैं। खासतौर पर जब हिंदी फ‍िल्‍मों के दर्शक हॉलीवुड और साउथ की टेक्‍न‍िकल फ‍िल्‍मों को खूब देखते हैं तो ऐसे में ये पहले हल्‍का रखना समझदारी नहीं कही जाएगी।

ठग्‍स ऑफ हिंदोस्‍तान की कहानी में कोई भी एक ऐसा पहलू नहीं है जो आपको रोमांच‍ित या उत्‍साहित कर दे। दर्शक हर मोड़ को पहले ही समझ जाते हैं ज‍िस वजह से कहानी उनको बांध नहीं पाती। वहीं फातिमा सना शेख इस कहानी की धुरी हैं लेकिन उनका क‍िरदार पूरी तरह उभर कर नहीं आता। इसी तरह भावुक पल भी इतने कमजोर हैं क‍ि आप इमोशनल सीन में भी खुद को किरदारों के दर्द से जोड़ नहीं पाते हैं।

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