नई दिल्ली: आरबीआई और सरकार के बीच गतिरोध और बढ़ सकता है. सूत्रों के मुताबिकि, सरकार अधिक कर्ज देने के लिए नियमों में ढील देने और 9.6 लाख करोड़ रुपये की आरक्षित राशि में से कम-से-कम एक तिहाई राशि के हस्तानांतरण के लिए केंद्रीय बैंक पर दबाव देना जारी रखेगी. हाल के दिनों में विभिन्न मुद्दों को लेकर आरबीआई और सरकार के बीच दरार और चौड़ी हो गई है. सरकार ने हाल में एनपीए नियमों में ढील देकर कर्ज सुविधा बढ़ाने सहित कई मुद्दों के समाधान के लिए आरबीआई अधिनियम के उस प्रावधान का उल्लेख किया है, जिसका उपयोग पहले कभी नहीं किया गया.

आरबीआई कानून की धारा 7 के तहत सरकार चाहती है कि आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल तीन चिंताओं को दूर करे. ये चिंताएं अधिशेष कोष, कर्ज और वृद्धि को गति देने के लिये एनपीए नियमों में ढील तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के समक्ष नकदी संकट को दूर करने से जुड़ी हैं. आरबीआई निदेशक मंडल की 19 नवंबर को आयोजित होने वाली बैठक में इस मुद्दे को उठाये जाने की संभावना है.

सूत्रों के मुताबिक सरकार कर्ज सुविधा बढ़ाने के लिए एनपीए नियमों में ढील देने और 9.6 लाख करोड़ रुपये की आरक्षित राशि में से कम-से-कम एक तिहाई के हस्तानांतरण के लिए सरकार पर दबाव बनाना जारी रखेगी. मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक केंद्रीय बैंक इससे सहमत नहीं है और वह अपने बही-खाते को मजबूत रखने के लिए अपने पास लाभांश रखना चाहती है.

आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की 19 नवंबर को प्रस्तावित बैठक के भी पिछली बैठक की ही तरह हंगामेदार रहने के आसार हैं. गत 23 अक्टूबर को मुंबई में हुई पिछली बोर्ड बैठक ने वित्त मंत्रालय और आरबीआई के आपसी मतभेदों को खुलकर सार्वजनिक कर दिया था. आरबीआई के बोर्ड में शामिल सरकार के प्रतिनिधि आगामी बैठक में वित्त मंत्रालय की तरफ से रखे गए सभी छह सुझावों को मानने के लिए केंद्रीय बैंक को राजी करने की कोशिश करेंगे. मंत्रालय ने गत 10 अक्टूबर को प्रेषित पत्र में रिजर्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल को ये सुझाव दिए थे. उस पत्र में आरबीआई अधिनियम की धारा 7 के प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए आरबीआई गवर्नर के साथ परामर्श का उल्लेख किया था.